विरासत भी, विकास भी: सांस्कृतिक पुनर्जागरण की स्वर्णिम गाथा | डिजिटोरियल
रंजन अभिषेक (टेन न्यूज नेटवर्क)
नई दिल्ली (06 जुलाई 2025): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के नेतृत्व में बीते 11 वर्षों में भारत सरकार ने “विरासत भी, विकास भी” के मंत्र को सिर्फ एक नारे के रूप में नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय दृष्टिकोण के रूप में अपनाया है। संस्कृति मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 2014 से 2025 का यह कालखंड भारतीय संस्कृति, परंपरा और धरोहर के संरक्षण और संवर्धन के लिए ऐतिहासिक रूप से निर्णायक साबित हुआ है।
तीर्थस्थलों का पुनरुद्धार
इस दौरान अयोध्या, काशी और उज्जैन जैसे प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का व्यापक पुनरुद्धार किया गया। काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर परियोजना के माध्यम से वाराणसी के गंगा घाटों से मंदिर परिसर तक का सौंदर्यीकरण और सुगम संपर्क सुनिश्चित किया गया। उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर परिसर का भव्य रूपांतरण ‘महाकाल लोक’ के रूप में हुआ, जिससे धार्मिक पर्यटन को नई ऊंचाइयां मिलीं। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जनवरी 2024 में रामलला की प्रतिष्ठा के साथ पूर्ण हुआ, जो भारत की आस्था और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन गया। इसके अतिरिक्त केदारनाथ, सोमनाथ, कामाख्या जैसे देशभर के तीर्थस्थलों का पुनरुद्धार और अधोसंरचना विकास भी एक सुविचारित सांस्कृतिक रणनीति का हिस्सा रहा।
राष्ट्रीय सांस्कृतिक डेटाबेस की शुरुआत
डिजिटल इंडिया अभियान से जुड़ते हुए सरकार ने ‘राष्ट्रीय सांस्कृतिक डिजिटल डेटाबेस’ की शुरुआत की, जिसमें 2 लाख से अधिक कलाकारों, सांस्कृतिक संस्थाओं और विरासत स्थलों का डिजिटल विवरण तैयार किया गया। इससे सांस्कृतिक डॉक्यूमेंटेशन को एक नया आयाम मिला। लोककलाओं के संरक्षण, युवा भागीदारी और पारंपरिक शिल्पों को वैश्विक पहचान दिलाने में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई। 100 से अधिक पारंपरिक शिल्पों और लोककलाओं को GI टैग मिलने से न सिर्फ उनकी सांस्कृतिक पहचान सशक्त हुई, बल्कि कारीगरों की आजीविका में भी सुधार आया।
“एक भारत श्रेष्ठ भारत” से मिली नई पहचान
“एक भारत श्रेष्ठ भारत” और “विरासत का उत्सव” जैसे अभियानों ने देश की सांस्कृतिक एकता को और भी सुदृढ़ किया। साथ ही, संग्रहालयों और सांस्कृतिक स्थलों के आधुनिकीकरण की दिशा में भी अहम पहल हुई। लाल किले में “आजादी का अमृत महोत्सव संग्रहालय” की स्थापना और बनारस में “संगीत संग्रहालय” का विकास इसी क्रम का हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त, देशभर में 500 से अधिक स्मारकों का संरक्षण कर उन्हें आधुनिक संदर्भ में पुनर्जीवित किया गया है।
सांस्कृतिक विरासत: भविष्य का पथप्रदर्शक
सरकार का यह स्पष्ट दृष्टिकोण है कि सांस्कृतिक विरासत केवल अतीत का गौरव नहीं है, बल्कि वह भविष्य का पथप्रदर्शक भी हो सकती है। “विरासत भी, विकास भी” की नीति ने यह साबित कर दिया है कि आधुनिक विकास और सांस्कृतिक संरक्षण परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। भारत आज एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां परंपरा और प्रगति का संतुलन वैश्विक पटल पर देश की एक नई सांस्कृतिक पहचान गढ़ रहा है। यह पुनर्जागरण न केवल सांस्कृतिक चेतना को जीवित करता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए गौरव और प्रेरणा का स्रोत भी बनता है।।
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