नेपाल का बवाल भारत के लिए खतरा? | समसामयिक लेख

डॉ. चेतन आनंद, (वरिष्ठ पत्रकार एवं कवि)

NATIONAL News (10/09/2025): नेपाल का बवाल भारत के लिए कई स्तरों पर खतरा साबित हो सकता है। यह खतरा केवल सीमा सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि कूटनीतिक, आर्थिक, सामरिक और आंतरिक राजनीति पर भी असर डाल सकता है। भारत और नेपाल की खुली सीमा (लगभग 1,770 किमी) से आतंकवादी, माओवादी या अन्य असामाजिक तत्व आसानी से आवाजाही कर सकते हैं। चीन इस स्थिति का फायदा उठाकर नेपाल के माध्यम से भारत पर दबाव बना सकता है। नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता से चीन को अपनी पकड़ मजबूत करने का अवसर मिलता है। चीन की बेल्ट एेंड रोड इनिशिएटिव और अन्य परियोजनाओं से नेपाल में उसकी रणनीतिक स्थिति भारत के लिए चुनौती बन सकती है।

सीमा विवाद जैसे लिपुलेख, कालापानी, लिम्पियाधुरा को भड़काकर नेपाल की राजनीति भारत विरोधी हो सकती है। नेपाल में बढ़ती राष्ट्रवादी राजनीति भारत के खिलाफ माहौल बना सकती है, जिससे दोनों देशों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रिश्ते प्रभावित होंगे। भारत-नेपाल के बीच व्यापार और ऊर्जा परियोजनाएँ बाधित हो सकती हैं। नेपाल में अस्थिरता का असर भारतीय निवेश और ट्रांजिट रूट पर भी पड़ेगा। नेपाल का बवाल भारत के सीमावर्ती राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, सिक्किम और पश्चिम बंगाल की सुरक्षा और सामाजिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है। माओवादी गतिविधियों को नई ऊर्जा मिल सकती है। कुल मिलाकर, नेपाल का बवाल भारत के लिए दोतरफा चुनौती है-बाहरी, चीन का प्रभाव, सीमा विवाद, सुरक्षा खतरे और आंतरिक, राजनीतिक दबाव, सीमावर्ती राज्यों की असुरक्षा, सामाजिक असर।

भारत को क्या करना चाहिए-

1-पहले 72 घंटों में नागरिक सुरक्षा और कंसुलर सहायता तेज करे। नेपाल में फँसे भारतीयों के लिए एमबेसी, कांसुलेट-हेल्पलाइन, अस्थायी आश्रय और निकासी-प्रबंध बढ़ाए। विदेश मंत्रालय ने इसी तरह की सलाह और हेल्पलाइन जारी की है।

2.सीमा पर निगरानी और बढ़ाई जाए। खुली सीमा पर पैट्रोंलंग बढ़ाए। स्थानीय पुलिस और बीएसएफ-कमान्डो के साथ तालमेल तय करे। ताकि गैरकानूनी आवाजाही और शरारती तत्वों की घुसपैठ रोकी जा सके।

3-इंटेल और साइबर-मॉनिटरिंग स्केल-अप की जाए। सोशल मीडिया-डिजिटल प्लेटफॉर्म पर फैलने वाले हिंसक उकसावे और गलत सूचनाओं की निगरानी करे और उनके स्रोतों पर कार्रवाई करे। आवश्यक कानूनी कदम उठाए।

4-वायु और वाहन मार्गों का बैक-अप तैयार रखे। हालिया उड़ान-डाइवर्जन और हवाई परिचालन व्यवधान ने दिखाया कि नागरिक आवागमन कठिन हो सकता है, ऐसे में एयरलाइन या एयरपोर्ट समन्वय और प्रभावित राज्यों में स्वागत-सेन्टर तैयार रखे जाएं।

5-रणनीतिक-कूटनीतिक कदम उठाए जाएं। सीधा संवाद किया जाए। उच्च-स्तरीय राजनयिक पहल हो। नेपाल के साथ शांत और तथ्यों-आधारित वार्ता पर जोर दे। भारत ने भी खुलकर संवाद का रास्ता बताया है, यही रास्ता रखा जाए।

6-तीरंदाज़ी से बचे। बहुपक्षीय ढाँचा काम में ले। यदि एक-एक समझौते को भावनात्मक मुद्दा बना दिया गया है तो दोतरफ़ा स्तर पर भरोसा बहाल करने के उपाय चलाए जाएं।

7-चीन के साथ पारदर्शी समन्वय स्थापित किया जाए। नेपाल-चीन-भारत त्रिकोण में चीन की भागीदारी वास्तविक है, इसलिए न्यू-दिल्ली चीन को बताए कि कोई भी क्षेत्रीय समाधान तीनों पक्षों की सुरक्षा व शांति में योगदान दे और बीजिंग से क्षेत्रीय स्थिरता के लिये जिम्मेदारी की अपेक्षा रखे।

8-सीमावर्ती विकास-पैकेज। उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, सिक्किम सीमा क्षेत्रों में विकास व निवेश तेज करे। ताकि स्थानीय आबादी में सुरक्षा-चिंताओं का असर कम हो।

9-नेपाल के साथ पारगमन-समझौतों को टिकाऊ बनाए। कस्टम-सहयोग और व्यापार-फेसिलिटेशन पर चर्चा तेज रखे।

10-सॉफ्ट-पॉवर और लोगों तक पहुँच बनाई जाए। हिंदुस्तानी सांस्कृतिक, शैक्षिक पहल की जाए। छात्रवृत्तियाँ, हेल्थ-कैंप, सीमा-सहयोग परियोजनाएँ बढ़ाई जाएं। ताकि नेपाल में जन-समर्थन मजबूत रहे।

11-स्थानीय मीडिया सहयोग और तथ्यों का आदान-प्रदान हो। गलत धारणा, नफे-नुकसान के मिथक तोड़ने के लिए सहायक मीडिया-विज्ञान चलाया जाए।

12-कानूनी-ऐतिहासिक ऑडिट की तैयारी की जाए। नक्शा, ऐतिहासिक दस्तावेजों का संकलन और सार्वजनिक हो। ऐतिहासिक दस्तावेज सार्वजनिक और कूटनीतिक चैनलों पर पेश किए जाए। इससे बहस तथ्य-आधारित बनेगी।

13-सीमा पर बड़े पैमाने पर आ रहे लोग या शरणार्थी संभालने के लिए अस्थायी केंद्र, स्वास्थ्य जाँच और पासपोर्ट-प्रक्रिया की व्यवस्था रखी जाए।

14-घुसपैठ या हिंसा की स्थिति में जवाब देने के बॉर्डश्र फोर्सेज़ को प्रशिक्षित और सुसज्जित रखे। साथ ही कूटनीतिक समाधान का द्वार खुला रखे।


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