राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के संबोधन पर विवाद: “शराब पर टिप्पणियों” से गरमाया माहौल | 99th AGM AIU
मेघा राजपूत
संवाददाता, टेन न्यूज़ नेटवर्क
नोएडा (25 जून 2025): एमिटी विश्वविद्यालय, नोएडा (Amity University, Noida) में आयोजित एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज़ (AIU) की 99वीं वार्षिक बैठक एवं कुलपतियों के राष्ट्रीय सम्मेलन 2024-25 के समापन सत्र को संबोधित करने पहुंची उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल (Governor Anandiben Patel) ने मंच से कुलपतियों से “शराब के सेवन” पर सवाल से लेकर पुलिस कर्मियों की शराब छुड़वाने तक पर टिप्पणी की।
इस कार्यक्रम में देशभर से एकत्रित 400 से अधिक कुलपति और शिक्षा विशेषज्ञों की उपस्थिति में राज्यपाल ने मंच से सीधे कहा, “मैं पहले मैं सुनती थी अब मैं सुनाती हूं , मै यहां आपको सुनने आई हूं और समाज की सच्चाई कहने आई हूं।”
उन्होंने मंच से आगे कहा कि” विश्वभर में कई यूनिवर्सिटियां हैं, भारत में भी कई नई यूनिवर्सिटियां बन गई है और ये यूनिवर्सिटी अपने- अपने क्षेत्र में अच्छा काम भी कर रही है…। लेकिन…क्या आप समाज के लिए और विविध प्रकार की जो समस्याएं हैं, अच्छाइयां हैं, भारत सरकार की योजनाएं हैं, राज्य सरकारों की भी योजनाएं हैं, बजट भी अरबों रुपया का मिलता है, सभी स्थान पर बजट जाता है। क्या इसका सही लाभ प्रजा को , महिलाओं को, बच्चों को , किसान को मिलता है?” इतना ही नहीं राज्यपाल ने अपने संबोधन में मंच से एक के बाद एक कई ऐसी टिप्पणियां की, जिनसे न केवल मंच पर बैठे विशिष्टजनों को असहजता हुई, बल्कि पूरे शैक्षिक और प्रशासनिक तंत्र की मर्यादा पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया।
भाषण के विवादास्पद अंश
शराब पर टिप्पणी और कुलपतियों से व्यक्तिगत सवाल:
राज्यपाल ने मंच से कहा कि “आप सब लोग, जो यहां बैठे हैं, आप में से यहां कितने लोग शराब पीते हैं? वह हाथ उठाइए?” इस सीधा और व्यक्तिगत सवाल ने वहां बैठे कुलपतियों को स्तब्ध कर दिया। कुछ ने नजरें चुरा लीं तो कुछ मुस्कराकर बात टाल गए। लेकिन राज्यपाल ने बात वहीं नहीं छोड़ी, उन्होंने आगे कहा कि “मुझे मालूम है, कई कुलपति शराब पीते होंगे, और फिर भी शिक्षा की बात करते हैं। ऐसे लोगों को पहले अपने जीवन की सफाई करनी चाहिए।” यह टिप्पणी न केवल व्यक्तिगत थी बल्कि मंच की गरिमा के प्रतिकूल भी मानी जा रही है।
पुलिसकर्मियों की शराब छुड़वाने पर बयान
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि वह गौतमबुद्ध नगर पुलिस के कार्यक्रम में शामिल हुई, जहां पर उन्होंने कुछ पुलिसकर्मियों को सम्मानित भी किया और वहां उन्होंने गौतमबुद्ध नगर पुलिस आयुक्त लक्ष्मी सिंह को कहा कि आपके विभाग में जो पुलिसकर्मी शराब के आदी हैं, उन्हें छुड़वाइए। आगे उन्होंने कहा कि, पुलिस आयुक्त लक्ष्मी सिंह से मैंने कहा कि, ऐसे कर्मियों की सूची बनाई जाए। इस बयान से पुलिस विभाग की आंतरिक व्यवस्था पर भी सवाल उठता है कि क्या इस प्रकार मंच से सार्वजनिक रूप से पुलिस बल की कमजोरी उजागर करना अनुचित नहीं है?
सामाजिक विषयों पर भावनात्मक लेकिन दिशाहीन बातें
राज्यपाल ने महिलाओं की भागीदारी, अनुसूचित जाति की सीटों के खाली रहने, योग दिवस की सीमित भागीदारी, बच्चों की आत्महत्याएं, घरेलू हिंसा और सोशल मीडिया की रील्स पर बढ़ते हिंसात्मक कंटेंट जैसे मुद्दे भी उठाए। उनका कहना था कि बेटियों को सही उम्र में सही शिक्षा और मार्गदर्शन देना जरूरी है। किताबें जीवन नहीं बनाती, अनुभव बनाते हैं। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह मंच व्यक्तिगत जीवन शैली या समाज सुधार का नहीं, बल्कि शिक्षा नीति, अनुसंधान और संस्थागत सहयोग का था।
राज्यपाल द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की आलोचना
अपने ही संबोधन में राज्यपाल ने यह भी कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की कई योजनाएं हैं, लेकिन क्या उनका लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुँच रहा है? क्या विश्वविद्यालय इसका आकलन कर रही हैं? यह बयान एक तरह से उनकी ही पार्टी की सरकार की कार्यप्रणाली पर अप्रत्यक्ष कटाक्ष माना जा रहा है।
लैंगिक असमानता पर सार्वजनिक तंज
राज्यपाल ने मंच और सभागार की उपस्थिति को देखकर कहा कि, मैं देख रही हूं कि मंच और हॉल में पुरुषों का बोलबाला है। कम से कम 70-30 का अनुपात तो होना ही चाहिए। यह बयान भले ही समानता की मांग को दर्शाता हो, लेकिन सार्वजनिक मंच से बार-बार जेंडर अनुपात पर टिप्पणी कई श्रोताओं को खटक गई।
समाज कल्याण के मुद्दों पर भी की बात
हालांकि उन्होंने अपने विवादित बयान के साथ-साथ कई जन कल्याण विषयों पर भी मंच से चर्चा की। आनंदीबेन पटेल ने कहा कि उन्होंने कई ट्रांसजेंडर को काम दिलवाया है। साथ ही आंगनवाड़ी में सरकार की मदद के बिना कई करोड़ का आर्थिक मदद दिलवाई है। साथ ही उन्होंने यूनिवर्सिटी से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों की मदद करने की भी बात कही और किस तरह से समाज के पिछड़े वर्ग को ऊपर उठकर आगे की ओर ले जाया जाए, इसपर भी गंभीर चिंता व्यक्त की।
राज्यपाल के भाषण पर शिक्षाविदों की प्रतिक्रिया
टेन न्यूज़ नेटवर्क से अनौपचारिक बातचीत में कई कुलपतियों ने निजी रूप से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। एक कुलपति बोले कि, राज्यपाल के संबोधन से लगभग आधे कुलपति असंतुष्ट दिखें। राज्यपाल का दृष्टिकोण सामाजिक हो सकता है, लेकिन इस तरह के व्यक्तिगत और भावनात्मक भाषणों की आवश्यकता ऐसे मंचों पर नहीं होती। चर्चा इस बात पर होनी चाहिए थी कि एआईयू शिक्षा के क्षेत्र में कैसे बड़ा योगदान दे सकता है।
वहीं एक अन्य कुलपति ने कहा कि, यह एक गंभीर, नीति आधारित आयोजन था। लेकिन राज्यपाल महोदय ने इसे नैतिक उपदेश और व्यक्तिगत जीवनशैली के भाषण में बदल दिया। उनके संबोधन से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनके सामने विश्वविद्यालयों के कुलपति नहीं बल्कि जिलाधिकारी एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारी बैठे हैं। एक अन्य कुलपति ने कहा कि, अमूमन इस तरह के शैक्षणिक कार्यक्रमों में राजनीतिक प्रतिनिधियों को आमंत्रित नहीं किया जाता क्योंकि ऐसे कार्यक्रम राजनीतिक चर्चा का नहीं बल्कि शिक्षा, अनुसंधान और आगामी नीतियों पर चर्चा का गंभीर मंच होता है।
इतना ही नहीं राज्यपाल के संबोधन के लिए निर्धारित समय पर भी चर्चा हो रही है क्योंकि मिली जानकारी के मुताबिक राज्यपाल के संबोधन के लिए 10 मिनट का समय पूर्व निर्धारित था, परन्तु राज्यपाल मंच से लगभग 50 मिनट तक कार्यक्रम को संबोधित किए।
राज्यपाल आनंदीबेन पटेल का एमिटी यूनिवर्सिटी में दिया गया भाषण शायद उनके इरादों में ईमानदार था, लेकिन मंच, संदर्भ और शैली की दृष्टि से यह भाषण एक “संवैधानिक पद की गरिमा” से मेल खाता हुआ नहीं दिखा। निजी नैतिकता की सीख देने और सार्वजनिक संस्थानों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने के लिए अधिक उपयुक्त मंच और तरीका अपेक्षित था। इससे संवैधानिक गरिमा, कार्यक्रम की गंभीरता और विषय की प्राथमिकता पर आघात हुआ है। एक संवैधानिक पद पर रहते हुए शिक्षा के मंच से व्यक्तिगत आदतों, पुलिस कर्मियों की शराब की लत, और प्रशासनिक कामकाज पर सार्वजनिक टिप्पणी करना कई स्तरों पर सवालों के घेरे में है।
अब सवाल यह है कि क्या विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और शैक्षणिक नीति निर्माताओं के बीच इस तरह के भाषण की कोई सार्थकता है? इस खबर पर आप अपनी क्या राय रखते हैं हमारे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।।
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