5 मिनट में लग्जरी SUV चोरी! GPS हैक कर दूसरे राज्यों में बेचते थे, नोएडा में ऑटो थिफ्ट गैंग का भंडाफोड़

टेन न्यूज नेटवर्क

नोएडा (6 जून 2025): नोएडा पुलिस ने एक बड़े ऑटो चोरी गिरोह का भंडाफोड़ किया है, जो उत्तर प्रदेश से लग्जरी SUV गाड़ियां चुराकर उन्हें राजस्थान, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में बेचते थे। गिरोह के तीन सक्रिय सदस्यों को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया गया, जिनमें फरमान नामक कुख्यात बदमाश भी शामिल है। मुठभेड़ के दौरान पुलिस की गोली लगने से फरमान घायल हो गया।

जांच में चौंकाने वाले खुलासे

नोएडा DCP यमुना प्रसाद ने बताया कि हाल ही में नोएडा और ग्रेटर नोएडा में लग्जरी SUV गाड़ियों की लगातार हो रही चोरी की घटनाएं पुलिस के लिए चिंता का विषय बनी हुई थीं। इन गाड़ियों के GPS भी ट्रेस नहीं हो पा रहे थे, जिससे पुलिस की राह मुश्किल हो रही थी। इसी सिलसिले में जब बुधवार रात थाना सेक्टर-113 की पुलिस टीम रूटीन चेकिंग कर रही थी, तब एक स्विफ्ट डिजायर कार को रुकने का इशारा किया गया। संदेह होने पर जब कार नहीं रुकी, तो उसका पीछा किया गया।

पुलिस और बदमाशों के बीच फायरिंग पर्थला डूब क्षेत्र में कब्रिस्तान सर्विस रोड पर हुई। जवाबी कार्रवाई में एक बदमाश के पैर में गोली लगी, जिसके बाद तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया। पकड़े गए आरोपियों में फरमान उर्फ छोटे, असलम और मकसूद शामिल हैं। फरमान पर 40 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं और उस पर 50,000 रुपये का इनाम घोषित था। पुलिस ने इनके कब्जे से करीब 1 करोड़ रुपये मूल्य की 3 लग्जरी SUV बरामद की हैं।

5 से 6 मिनट में हो जाती थी गाड़ी गायब

पुलिस पूछताछ में बदमाशों ने बताया कि एक लग्जरी SUV कार को चुराने में उन्हें महज 5 से 6 मिनट का वक्त लगता है। इसके लिए वे सार्वजनिक जगहों पर खड़ी कारों को निशाना बनाते थे, जैसे होटल, मॉल, मार्केट या पार्किंग एरिया। उनका तरीका काफी तकनीकी था:

सबसे पहले गाड़ी का बोनट खोलते थे।

फिर एक लैपटॉप के ज़रिए ECM (Electronic Control Module) को इंटरनेट से कनेक्ट कर रीप्रोग्राम करते।

इसके बाद नया की-मोड जनरेट कर डुप्लीकेट चाबी तैयार कर लेते।

इससे गाड़ी उनके पूरे कंट्रोल में आ जाती थी।

साथ ही GPS ट्रैकर को या तो निकाल देते या फिर उसे हैक कर देते थे ताकि लोकेशन ट्रेस न हो सके।

जंगी ऐप बना पुलिस के लिए चुनौती

गिरोह के सदस्य एक विशेष एन्क्रिप्टेड ऐप ‘जंगी’ के माध्यम से आपस में संवाद करते थे। इस ऐप को ट्रेस करना मुश्किल है, जिससे पुलिस को काफी समय तक गैंग की गतिविधियों की जानकारी नहीं मिल पाई। ये लोग इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन डिवाइस का बहुत ही सीमित प्रयोग करते थे और फोन कॉल से बचते थे।

कार चोरी कर देते थे नई पहचान

गाड़ियों की पहचान बदलने के लिए गैंग का एक अलग नेटवर्क था। चोरी के बाद:

गाड़ी को कुछ दिन तक किसी सुरक्षित स्थान पर छिपाया जाता।

फिर उसका इंजन नंबर और चेसिस नंबर बदला जाता।

इसके लिए ये लोग इंश्योरेंस कंपनियों से एक्सीडेंट में क्षतिग्रस्त गाड़ियां खरीदते थे, जिनके पूरे दस्तावेज उपलब्ध होते थे।

फिर उन्हीं दस्तावेजों के आधार पर चोरी की गाड़ी को वैध दिखाकर ग्राहक तक पहुंचाया जाता।

जिन गाड़ियों को बेचना संभव नहीं होता, उन्हें डिस्मेंटल कर पुर्जे अलग-अलग बेच दिए जाते थे।

मैकेनिक का पेशा बना हथियार

गिरोह के अधिकतर सदस्य पेशे से मैकेनिक हैं। इन्हें कार के प्रत्येक पुर्जे, तकनीक और सिक्योरिटी फीचर की गहरी जानकारी है। यही वजह है कि ये मिनटों में चोरी को अंजाम देकर फरार हो जाते थे। पुलिस फिलहाल यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि ये चोरी की गाड़ियां किन ग्राहकों को और किन माध्यमों से बेची जाती थीं। इसके लिए हरियाणा, राजस्थान और पंजाब पुलिस से समन्वय किया जा रहा है।

गाड़ी चोरी से कैसे बचें? पुलिस की सलाह

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि गाड़ियों के GPS ट्रैकर को हाई सिक्योरिटी मोड में रखें और चाबी की रेडियस रेंज को सीमित करें। साथ ही गाड़ी के आसपास किसी संदिग्ध गतिविधि की जानकारी मिलने पर तत्काल पुलिस को सूचित करें। ऐसे गिरोहों से निपटने के लिए केवल पुलिस सतर्कता ही नहीं, बल्कि आम जनता की जागरूकता भी बेहद जरूरी है। नई टेक्नोलॉजी जहां सुविधा देती है, वहीं अपराधियों के लिए नया रास्ता भी बन जाती है।


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