मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर कांग्रेस को आपत्ति, क्या बोले राहुल गांधी?

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (18 फरवरी 2025): भारत के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति को लेकर गठित चयन समिति की बैठक में नेता प्रतिपक्ष (LoP) ने कड़ा विरोध जताया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व गृह मंत्री अमित शाह को एक असहमति पत्र (डिसेंट नोट) सौंपा। इस पत्र में उन्होंने केंद्र सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करने और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर खतरा पैदा करने का आरोप लगाया।

नेता प्रतिपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के उल्लंघन का लगाया आरोप

असहमति पत्र में LoP ने कहा कि “स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोग की सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कार्यपालिका के प्रभाव से मुक्त हो।” उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करते हुए चयन समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को बाहर कर दिया, जिससे चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठ गए हैं। सरकार के इस फैसले से करोड़ों मतदाताओं की चुनावी प्रक्रिया पर विश्वास और भी कमजोर हुआ है। लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि चुनाव आयोग स्वतंत्र रूप से काम करे, न कि सरकार के दबाव में।”

आधी रात को CEC की नियुक्ति को लेकर जताई नाराजगी

नेता प्रतिपक्ष ने केंद्र सरकार के फैसले को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का अपमान बताया। उन्होंने कहा कि “जब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई मात्र 48 घंटे बाद होनी है, तब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने आधी रात को CEC की नियुक्ति करने का फैसला किया। यह पूरी तरह से असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक है।” उन्होंने इसे “बाबासाहेब अंबेडकर और भारत के संविधान निर्माताओं के आदर्शों के खिलाफ” बताया और कहा कि विपक्ष का कर्तव्य है कि वह सरकार को जवाबदेह बनाए और लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा करे।

विपक्ष ने उठाए पारदर्शिता और निष्पक्षता पर सवाल

LoP ने इस नियुक्ति प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब चयन समिति की संरचना और प्रक्रिया खुद ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, तो सरकार को इतनी जल्दबाजी दिखाने की क्या जरूरत थी? उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि “यह फैसला चुनाव आयोग को पूरी तरह कार्यपालिका के नियंत्रण में लाने की साजिश का हिस्सा है।” विपक्ष इस मामले को सिर्फ संसद तक सीमित नहीं रखेगा, बल्कि “हम इसे जनता के सामने लेकर जाएंगे और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।” उन्होंने चुनाव आयोग को स्वतंत्र बनाने के लिए संवैधानिक सुधारों की भी मांग की और कहा कि “चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष होनी चाहिए, ताकि जनता का विश्वास बरकरार रहे।”

सरकार की तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं

सरकार की ओर से इस पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन विपक्ष के इस कड़े रुख से यह साफ हो गया है कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर राजनीतिक विवाद और भी बढ़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट की आगामी सुनवाई इस पूरे मामले में अहम साबित होगी और यह तय करेगी कि क्या सरकार का फैसला संविधान सम्मत है या नहीं। देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जहां सरकार और विपक्ष दोनों अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं। अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और सरकार की अगली प्रतिक्रिया पर टिकी हैं।।


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