“बिना बोले सब समझने वाली मां अब स्मृतियों में”: डॉ. नरेश शर्मा | स्व. ललिता शर्मा की श्रद्धांजलि सभा

टेन न्यूज नेटवर्क

NOIDA News (08 दिसंबर, 2025): नोएडा स्टेडियम सेक्टर–21A में आयोजित स्वर्गीय ललिता शर्मा की श्रद्धांजलि सभा में सोमवार को एक बार फिर भावनाओं का ऐसा ज्वार उमड़ा, जिसने उपस्थित हजारों नागरिकों को गहराई से छू लिया। गौतम बुद्ध नगर के सांसद एवं पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. महेश शर्मा के भाई डॉ. नरेश शर्मा ने अपनी माता को याद करते हुए जो श्रद्धा, वेदना और निर्भरताओं से भरे शब्द कहे, वे हर श्रोता के मन में सीधे उतर गए।

डॉ. नरेश शर्मा ने कहा कि मां उनके जीवन की आधारशिला थीं और आज जो भी वह और उनका परिवार है चाहे सांसारिक रूप से, धार्मिक रूप से या आध्यात्मिक रूप से सबकुछ माता-पिता के संस्कारों और आशीर्वाद की ही देन है। उन्होंने कहा “अगर हमारी कोई पहचान, कोई मान-सम्मान है, तो उसका समस्त श्रेय हमारे माता-पिता को जाता है।”

उनके शब्दों ने उन अनकहे रिश्तों की शक्ति को उजागर किया जिन्हें केवल मां ही समझ सकती है। उन्होंने कहा कि जब भी परिवार का कोई सदस्य उदास या परेशान होता, मां सिर्फ चेहरे को देखकर समझ जाती थीं “लाख समझाओ तो दुनिया नहीं समझती, पर मां बिना बोले सब समझ जाती है।” यह कहते हुए उनकी आवाज कई बार भारी हुई और सभा में मौजूद लोगों की आंखें भी नम हो गईं।

डॉ. नरेश ने भावुक होकर कहा कि मां का वह दिव्य स्पर्श, सिर पर रखा वह आशीष भरा हाथ अब स्मृतियों में बदल चुका है। “जब भी वह हाथ सिर पर पड़ता था, हर कठिनाई एक पल में दूर हो जाती थी। अब वह स्पर्श हमारे ऊपर से उठ गया है।” उन्होंने मां को एक पारसमणि बताया, जो हर कठिनाई का समाधान बन जाती थीं, और कहा कि उनकी उपस्थिति ही घर को घर बनाती थी।

उन्होंने मां के प्रेम की व्यापकता को याद करते हुए कहा कि केवल बेटों को ही नहीं, बल्कि बहुओं, पोते-परपोते और पूरे परिवार को मां ने समान प्रेम दिया। उन्होंने मुस्कुराकर कहा “कभी-कभी हम मज़ाक में कहते थे कि मां बहुओं को कभी सास जैसी लगती ही नहीं, वह तो उन्हें अपनी मां जैसी लगती थीं।” सभा में यह स्मरण एक मीठे-करुण उपहास की तरह गूंजा और फिर वातावरण फिर से भावुक हो उठा।

डॉ. नरेश ने कहा कि मां की अनुभूति वायु से भी तेज होती थी। सात समंदर पार कोई बच्चा संकट में हो तो भी मां को अनुभव हो जाता था “मां बिना संदेश, बिना फोन, परेशानी को महसूस कर लेती थी।” उन्होंने रेखांकित किया कि मां वही शक्ति हैं जिन्हें “परमेश्वर की जननी” कहा जाता है।

सभा के अंत में उन्होंने मार्मिक शब्दों में कहा “होती न मां कौशल्या, तो राम कहां से होते? होती न मां यशोदा, तो घनश्याम कहां से होते?”
और आगे जोड़ा “हम अपनी पूज्य मां के अनंत प्रेम और आशीर्वाद के लिए सदैव ऋणी रहेंगे। ओम शांति।”


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