उद्यमी एवं समाजसेवी रोहित अग्रवाल ने मांगा सरकारों से दिल्ली 2041 मास्टर प्लान | Green Park Vidhan Sabha
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (05 जनवरी 2025): दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर टेन न्यूज नेटवर्क की टीम समाज में प्रभावशाली और जागरूक व्यक्तियों से बातचीत कर रही है और प्रबुद्ध लोगों के राजनीतिक विचार को जानने का प्रयास कर रही है। टेन न्यूज नेटवर्क विशेष साक्षात्कार (Ten News Special Interview) के माध्यम से ऐसे महानुभावों से बात कर रही है जो जनता की समस्याओं और उनके समाधान को लेकर स्पष्ट दृष्टिकोण रखते हैं। इसी सिलसिले में आज हमारे साथ ग्रीन पार्क विधानसभा (Green Park Assembly Constituency) से जाने-माने समाजसेवी एवं उद्यमी रोहित अग्रवाल (Rohit Aggarwal) मौजूद रहे। रोहित अग्रवाल ने न केवल समाज की वर्तमान समस्याओं पर बेबाकी से अपनी राय रखी, बल्कि दिल्ली के विकास और राजनीति में सुधार के लिए अहम सुझाव भी दिए। विकास में आ रही चुनौतियों और केंद्र व राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने दिल्ली के लिए सशक्त केंद्रीय प्रशासन की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि जनता को बार-बार चुनावों के माध्यम से असमंजस में डालने के बजाय, दिल्ली को सीधे केंद्र सरकार के अधीन कर देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि “अगर हम भारत का संरचनात्मक अध्ययन करें, तो 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं। इनमें से 5 केंद्र शासित प्रदेश सीधे केंद्र सरकार के अधीन हैं, जबकि 3 – जम्मू-कश्मीर, दिल्ली और पुडुचेरी – विशेष दर्जा रखते हैं। पुडुचेरी हमेशा से एक समस्या रही है, जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए हैं, और दिल्ली पिछले 10 सालों से प्रशासनिक जटिलताओं से गुजर रही है।
आगे उन्होंने कहा कि, 10 साल पहले कितने लोगों को पता था कि केंद्र और दिल्ली सरकार की शक्तियां क्या हैं। लेकिन अब हमें बताया जा रहा है कि कानून-व्यवस्था केंद्र के अधीन है, इसलिए दिल्ली सरकार काम नहीं कर पा रही। सवाल यह है कि अगर काम नहीं हो पा रहा तो चुनाव क्यों हो रहे हैं? अगर 8 में से 5 केंद्र शासित प्रदेश सुचारू रूप से काम कर रहे हैं, तो इन तीनों को भी सीधे केंद्र के अधीन क्यों नहीं कर दिया जाता? दिल्ली की जनता से यह खिलवाड़ क्यों?
बातचीत में अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली की स्थिति और भी पेचीदा है। यहां दो सिविक एजेंसियां – MCD और NDMC – काम करती हैं। NDMC के पास संसाधनों की कमी नहीं है, जबकि MCD हमेशा वित्तीय संकट में रहती है। यह असमानता क्यों है? मास्टर प्लान को लागू करने में भी यह उलझन रहती है कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी है।
दिल्ली एक विशेष स्थिति में है, जहां प्रधानमंत्री कार्यालय भी है। अगर यहां विपक्ष की सरकार हो, तो क्या केंद्र और राज्य आपस में काम कर पाएंगे? नुकसान किसका होगा? जनता का। मेरे हिसाब से दिल्ली को केंद्र के सीधे अधीन कर देना चाहिए। इतनी छोटी सी दिल्ली में दो सिविक एजेंसियों की जरूरत ही क्या है? जब हमने वोट दिया, तो हमने सरकार बनाई। लेकिन अगर सरकार ने काम नहीं किया, तो जनता को जवाब चाहिए। एंटी-इंकम्बेंसी एक बड़ा फैक्टर है। अगर दिल्ली को मजबूत प्रशासन चाहिए, तो एक सशक्त केंद्रीय सरकार की जरूरत है।
दिल्ली की अनधिकृत कॉलोनियों की बात करें, तो 1829 कॉलोनियां बिना किसी योजना के बन गईं। क्यों? क्योंकि ऑर्गेनाइज्ड प्लानिंग नहीं की गई। आज भी दिल्ली का कमर्शियल सेक्टर कमजोर है। इसे ठीक करने के लिए एक मजबूत केंद्रीय सरकार चाहिए। राज्य सरकार कहती है कि केंद्र जिम्मेदार है, और केंद्र सरकार इसे राज्य सरकार का मुद्दा बताती है। आखिर नुकसान जनता का ही होता है।
दिल्ली के विकास और प्रशासन के लिए एक स्पष्ट और केंद्रित नीति की जरूरत है, और इसे लागू करने के लिए एक मजबूत नेतृत्व चाहिए।”
रोहित अग्रवाल के विचार दिल्ली की प्रशासनिक चुनौतियों पर एक नई दृष्टि प्रदान करते हैं। उन्होंने विकास के लिए एक समन्वित और केंद्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया।।
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