दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा फैसला: इंदिरा कॉलोनी में डिमोलिशन पर रोक

टेन न्यूज नेटवर्क

New Delhi News (27/07/2025): उत्तर-पश्चिम दिल्ली की इंदिरा कॉलोनी के 6,000 से अधिक परिवारों को उस वक्त बड़ी राहत मिली जब दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने इस इलाके में प्रस्तावित अतिक्रमण हटाओ अभियान पर 31 जुलाई तक रोक लगा दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक मामले की पूरी जांच नहीं होती, तब तक किसी भी तरह की जबरन कार्रवाई नहीं की जाएगी। यह आदेश इंदिरा कॉलोनी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दाखिल उस याचिका के आधार पर आया है, जिसमें 4 जुलाई को नॉर्दर्न रेलवे द्वारा जारी बेदखली नोटिस को चुनौती दी गई थी।

याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील दी कि यह बेदखली न केवल संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि दिल्ली झुग्गी-झोपड़ी पुनर्वास नीति 2015 और 2016 के ड्राफ्ट प्रोटोकॉल के नियमों की भी अवहेलना है। याचिका में यह भी कहा गया कि कॉलोनी का नाम दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड (DUSIB) की 675 पात्र बस्तियों की सूची में 74वें स्थान पर है, इसलिए बिना सूचना, सर्वे और पुनर्वास योजना के यह कार्रवाई अवैध है।

इस मुद्दे ने राजनीतिक मोड़ भी ले लिया है। आम आदमी पार्टी की वरिष्ठ नेता आतिशी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस मामले को बीजेपी की “गरीब विरोधी नीति” करार दिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने ‘जहां झुग्गी, वहां मकान’ का वादा किया था, लेकिन अब उन्हीं बस्तियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। पूर्व विधायक बंदना कुमारी ने भी आरोप लगाया कि बीजेपी की मुख्यमंत्री उम्मीदवार रेखा गुप्ता के क्षेत्र में डर का माहौल है, और पहले ही एक झुग्गी को गिराया जा चुका है।

वहीं, रेलवे का पक्ष रखने वाले केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि यह जमीन रेलवे की है और वहां के निवासी अवैध कब्जाधारी हैं। उनके अनुसार, बेदखली का नोटिस रेलवे अधिनियम और अन्य संबंधित कानूनी प्रावधानों के तहत विधिवत तरीके से जारी किया गया है। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि सरकारी जमीन पर कब्जे को नियमित न किया जाए और कानून के अनुसार कार्यवाही की अनुमति दी जाए।

फिलहाल, अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 31 जुलाई तय की है और तब तक किसी भी तरह की जबरन कार्रवाई पर रोक लगाई है। इससे इंदिरा कॉलोनी के हजारों परिवारों को अस्थायी राहत मिली है, लेकिन उनका भविष्य अब अदालत के अंतिम निर्णय पर निर्भर करता है। यह मामला राजधानी में झुग्गी पुनर्वास और मानवीय अधिकारों को लेकर एक अहम कानूनी व सामाजिक बहस का विषय बन गया है।


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