ओवरएज गाड़ियों को पेट्रोल न देने पर पंप मालिकों पर जुर्माना! हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (03 जुलाई 2025): दिल्ली में वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए लागू किए गए नियम अब कानूनी विवाद का कारण बन गया है। 1 जुलाई 2025 से लागू आदेश के तहत 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों को सड़क पर चलने की अनुमति नहीं है, और इन्हें ईंधन न देने का निर्देश दिया गया है। इस आदेश का पालन करते हुए जब पेट्रोल पंप मालिकों ने ऐसी गाड़ियों को तेल देना बंद किया तो उन पर जुर्माना लगाया गया, जिससे नाराज होकर उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। अब हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
याचिकाकर्ताओं ने जताई प्रशासनिक कार्रवाई की कानूनी वैधता पर आपत्ति
दिल्ली पेट्रोल डीलर्स एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि वे प्रदूषण रोकने की मंशा का समर्थन करते हैं, लेकिन पेट्रोल पंप संचालकों को कानून लागू करने का दायित्व देना अनुचित और असंवैधानिक है। उनके मुताबिक, मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 192 के तहत उन पर जुर्माना लगाया जा रहा है, जबकि यह धारा केवल वाहन मालिकों पर लागू होती है, न कि पंप मालिकों पर। साथ ही, याचिका में यह भी कहा गया है कि पंप पर प्रतिदिन हजारों गाड़ियां आती हैं, जिनमें गलती की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता।
पेट्रोल पंप मालिकों का तर्क: वे निजी अनुबंधित संस्थाएं हैं, कानून लागू करना उनका काम नहीं
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि वे निजी कंपनियों के साथ अनुबंध पर कार्यरत हैं और सरकार की कानून प्रवर्तन एजेंसी नहीं हैं। ऐसे में उनके ऊपर जुर्माना लगाना या उन्हें निरीक्षण और जांच की जिम्मेदारी सौंपना कानून के शासन की भावना के विपरीत है। याचिका में स्पष्ट किया गया है कि वे दिल्ली सरकार के दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं, जब तक कि उन्हें कानूनी रूप से कोई स्पष्ट जिम्मेदारी न दी जाए। इससे जुड़ी जिम्मेदारियों और दंड के दायरे को लेकर स्पष्टता की मांग की गई है।
सरकार की तरफ से छूट की बात, लेकिन जवाब अब कोर्ट में जरूरी
सरकारी अधिकारियों ने दावा किया है कि फिलहाल सीएनजी से चलने वाले ओवरएज वाहनों को इस प्रतिबंध से छूट दी गई है। वहीं, अधिकारियों का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए इस तरह के कदम अनिवार्य हैं, खासकर तब जब सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी द्वारा पूर्व में भी ऐसे निर्देश जारी किए जा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध लगाया था, जबकि NGT ने 2014 में उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर खड़ा करने तक पर रोक लगा दी थी।
सितंबर में अगली सुनवाई, कोर्ट के फैसले पर टिकी निगाहें
दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस मिणी पुष्कर्णा की एकल पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी कर सितंबर में जवाब मांगा है। पंप संचालकों की यह याचिका भविष्य में इस नियम के क्रियान्वयन की दिशा और इसकी कानूनी वैधता को तय कर सकती है। यह मामला न केवल प्रदूषण नियंत्रण की नीति से जुड़ा है, बल्कि यह भी तय करेगा कि निजी व्यवसायों को सरकारी आदेशों के प्रवर्तन की जिम्मेदारी दी जा सकती है या नहीं। कोर्ट के निर्णय से भविष्य के पर्यावरणीय आदेशों के क्रियान्वयन पर भी असर पड़ सकता है।
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