कालकाजी भूमिहीन कैंप के झुग्गीवासियों को हाईकोर्ट से नहीं मिली राहत, कार्रवाई पर रोक से इनकार

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (30 मई 2025): कालकाजी स्थित भूमिहीन कैंप के झुग्गीवासियों को एक और झटका तब लगा जब दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए तोड़फोड़ की कार्रवाई पर रोक लगाने से साफ इनकार कर दिया। झुग्गियों को हटाने की कार्रवाई के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से राहत की गुहार लगाई थी, लेकिन जस्टिस धर्मेश शर्मा की एकल पीठ ने इसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वे न केवल सरकारी पुनर्वास परियोजना में बाधा डाल रहे हैं बल्कि इस प्रक्रिया को महंगा और जटिल भी बना रहे हैं।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर बसने वालों को हमेशा वैकल्पिक आवास देने की अनिवार्यता नहीं होती। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में पुनर्वास हर व्यक्ति की परिस्थिति पर निर्भर करता है और इसके लिए कोई सार्वभौमिक या अनिवार्य नियम नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट का कहना था कि सरकारी एजेंसियों पर हर अतिक्रमणकारी को मकान देने का दबाव नहीं डाला जा सकता, खासकर तब जब कार्यवाही सार्वजनिक हित में हो और विधिसम्मत हो।

याचिकाकर्ताओं की ओर से डीडीए को तोड़फोड़ की आगे की कार्यवाही से रोकने, यथास्थिति बनाए रखने और भूमिहीन कैंप, गोविंदपुरी, कालकाजी इलाके की झुग्गियों से उन्हें हटाए जाने से संरक्षण देने की मांग की गई थी। इसके अतिरिक्त, उन्होंने दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डूसिब) को सर्वे कर पुनर्वास नीति के तहत उन्हें बसाने का निर्देश देने की भी अपील की थी। लेकिन कोर्ट ने इस मांग को मानने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इससे पुनर्वास नीति के वास्तविक लाभार्थियों का अधिकार प्रभावित होगा और एक अनुचित मिसाल कायम होगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ताओं के दावे चाहे कितने भी भावनात्मक या सामाजिक हों, वे इस आधार पर स्थायी कब्जे का हक नहीं मांग सकते कि उन्होंने वर्षों से उस भूमि पर झुग्गी डाली हुई है। अदालत ने कहा कि अगर इस तरह के तर्कों को मान्यता दी गई, तो इससे अतिक्रमण को कानूनी संरक्षण मिल जाएगा, जो किसी भी सरकार के लिए दीर्घकालिक रूप से अस्थिर और नुकसानदायक साबित होगा।

इस फैसले से कालकाजी के झुग्गीवासियों को बड़ा झटका लगा है जो वर्षों से उस क्षेत्र में रह रहे थे और सरकारी पुनर्वास नीति के तहत आश्रय की उम्मीद लगाए बैठे थे। हालांकि कोर्ट ने पुनर्वास की संभावनाओं को पूरी तरह खारिज नहीं किया, लेकिन उसने यह जरूर स्पष्ट कर दिया कि पुनर्वास की कोई अनिवार्य गारंटी नहीं है और यह प्रशासन की नीति, संसाधनों और प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। यह मामला दिल्ली में तेजी से हो रहे शहरी विकास और उससे जुड़े विस्थापन, पुनर्वास और सामाजिक अधिकारों के संघर्ष को उजागर करता है। कोर्ट के इस फैसले से साफ हो गया है कि अब झुग्गीवासियों को कानूनी लड़ाई के साथ-साथ प्रशासनिक स्तर पर भी अपने अधिकारों के लिए और अधिक संगठित प्रयास करने होंगे, ताकि वे पुनर्वास नीति के वास्तविक लाभार्थी बन सकें।


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