सीजफायर पर भड़के असदुद्दीन ओवैसी, तीसरे देश के हस्तक्षेप को बताया शिमला समझौते का उल्लंघन
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (11 मई 2025): ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने हालिया सीज़फायर और पहलगाम हमले पर सरकार से कई तीखे सवाल पूछते हुए आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि जब तक पाकिस्तान अपनी ज़मीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद फैलाने के लिए करता रहेगा, तब तक स्थायी शांति का सपना अधूरा ही रहेगा। ओवैसी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सीज़फायर हो या न हो, भारत को पहलगाम हमले के दोषियों को सज़ा दिलाने तक चैन नहीं लेना चाहिए। उनका यह बयान आतंकवाद के प्रति स्पष्ट ‘नो टॉलरेंस’ की सोच को दर्शाता है। उन्होंने आतंकी घटनाओं पर राजनीति से ऊपर उठने की अपील भी की।
ओवैसी ने भारतीय सशस्त्र बलों के पराक्रम की सराहना करते हुए कहा कि हर बाहरी हमले के समय वे सरकार और भारतीय सेना के साथ खड़े रहे हैं और यह समर्थन आगे भी जारी रहेगा। उन्होंने विशेष रूप से सेना के जवान एम. मुरली नायक और एडीडीसी राज कुमार थापा को श्रद्धांजलि दी जो देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। उन्होंने संघर्ष में घायल और मारे गए सभी लोगों के प्रति संवेदना प्रकट की और उनके परिवारों के लिए दुआ की। इस भावनात्मक अपील ने एकता और सहानुभूति का संदेश दिया। साथ ही, ओवैसी ने सीज़फायर से सीमा पर बसे नागरिकों को राहत मिलने की आशा भी जताई।
AIMIM प्रमुख ने भारतीय राजनीति पर भी कड़ा संदेश देते हुए कहा कि भारत तब मजबूत होता है जब भारतीय आपस में एकजुट रहते हैं, और कमजोर तब पड़ता है जब वह आंतरिक झगड़ों में उलझता है। उन्होंने कहा कि पिछले दो हफ्तों में जो कुछ हुआ है, उससे सभी राजनीतिक दलों को सबक लेना चाहिए। उनके मुताबिक, राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सभी को एकजुट होकर काम करना चाहिए, न कि एक-दूसरे पर दोष मढ़ना। यह वक्त आरोप-प्रत्यारोप का नहीं, बल्कि देश की अखंडता बनाए रखने का है।
ओवैसी ने सीज़फायर की घोषणा को लेकर भी गंभीर आपत्ति जताई। उन्होंने सवाल उठाया कि जब भारत हमेशा से शिमला समझौते के तहत किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार करता रहा है, तो अब अमेरिका के राष्ट्रपति के माध्यम से सीज़फायर की घोषणा क्यों की गई? उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपेक्षा जताई कि ऐसी घोषणा भारत की ओर से होनी चाहिए थी, ताकि यह स्पष्ट संदेश जाए कि भारत अपने मामलों में किसी बाहरी देश की दखल नहीं चाहता। उन्होंने चेताया कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाना खतरनाक साबित हो सकता है।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि भारत ने बातचीत के लिए किसी तीसरे देश में तैयार क्यों दिखाया। उनके अनुसार, यह जानना ज़रूरी है कि बातचीत के दौरान एजेंडा क्या होगा और क्या अमेरिका यह गारंटी देगा कि पाकिस्तान अब अपनी जमीन से आतंकवाद नहीं फैलाएगा? उन्होंने शंका जताई कि क्या इस तरह की बातचीत से भारत को सुरक्षा की असली गारंटी मिल सकेगी। उन्होंने इन बिंदुओं पर सरकार से पारदर्शिता की मांग की है।
ओवैसी ने यह भी पूछा कि क्या सरकार का उद्देश्य सिर्फ ट्रंप की मध्यस्थता से सीज़फायर कराना था या फिर पाकिस्तान को आतंकवाद से बाज़ आने के लिए बाध्य करना? उन्होंने कहा कि भारत की नीति हमेशा स्पष्ट रही है—आतंक के सामने झुकना नहीं, बल्कि उसका जड़ से सफाया करना। यदि पाकिस्तान को फिर से हमले की हिम्मत हो रही है तो यह दर्शाता है कि रणनीति में कहीं न कहीं खामी है। AIMIM नेता ने सरकार से यह स्पष्ट करने की मांग की कि क्या उनकी रणनीति से आतंकवाद को स्थायी रूप से रोका गया है।
अंत में, ओवैसी ने अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भारत की भूमिका को और सशक्त बनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि भारत को चाहिए कि वह पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट में बनाए रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर ठोस प्रयास करे। उन्होंने जोर दिया कि यदि पाकिस्तान पर आर्थिक और कूटनीतिक दबाव लगातार बनाए रखा जाए, तो उसकी आतंकी गतिविधियों को कमजोर किया जा सकता है। यह वक्त सिर्फ सैन्य कार्रवाई का नहीं, बल्कि कूटनीतिक हमलों का भी है। ओवैसी के इन सवालों और सुझावों ने सरकार की रणनीति पर नई बहस छेड़ दी है।
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