वेस्ट दिल्ली भूमि घोटाले में सीबीआई जांच की मांग, हाईकोर्ट द्वारा नोटिस जारी

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (04 मई 2025): दिल्ली हाईकोर्ट में वेस्ट दिल्ली के एक प्रमुख वाणिज्यिक भूखंड को लेकर घोटाले के आरोपों पर सुनवाई हुई। याचिका में दावा किया गया है कि सरकारी अधिकारियों, बिल्डर और शेल कंपनियों की मिलीभगत से करोड़ों रुपये की वित्तीय अनियमितताएं की गईं। वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा और गौरव गुप्ता ने यह याचिका दाखिल की है। उन्होंने कहा कि इस भ्रष्टाचार के कारण सरकारी खजाने को 100 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। याचिका में दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के फैसले की अनदेखी और भूमि पर अवैध निर्माण की बात कही गई है। हाईकोर्ट ने इस गंभीर आरोपों पर CBI को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई 27 मई को निर्धारित की गई है।

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, 2007 में DDA ने एक 6,085 वर्ग मीटर के भूखंड का स्थायी पट्टा एक रियल एस्टेट कंपनी को मॉल निर्माण के लिए प्रदान किया था। लेकिन जब इस कंपनी ने करीब 25 करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान नहीं किया, तो DDA ने जनवरी 2020 में पट्टा रद्द कर दिया। याचिका में कहा गया है कि इसके बावजूद, इस भूमि पर निर्माण गतिविधियां जारी हैं। आरोप है कि मॉल का निर्माण शेल कंपनियों और तीसरे पक्ष के ज़रिए गैरकानूनी रूप से पूरा किया जा रहा है। यह न केवल पट्टा समाप्ति के आदेश का उल्लंघन है, बल्कि सरकारी आदेशों की खुली अवहेलना भी है। याचिकाकर्ताओं ने इसे सुनियोजित वित्तीय धोखाधड़ी करार दिया है। उन्होंने दावा किया कि नियमों को ताक पर रखकर निर्माण जारी रखने से बड़ा घोटाला हुआ है।

याचिका में कहा गया है कि सरकारी अधिकारियों, सब-रजिस्ट्रार और बिल्डर के बीच मिलीभगत से यह पूरा भ्रष्टाचार संभव हो पाया। बिल्डर ने जानबूझकर भूमि पर शेल कंपनियों के ज़रिए कब्जा बनाए रखा और निर्माण कार्य जारी रखा। इससे न केवल राजस्व हानि हुई, बल्कि सरकारी नियमों और संस्थाओं की विश्वसनीयता भी सवालों के घेरे में आ गई है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि मामले की निष्पक्ष जांच सीबीआई जैसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए। उनका तर्क है कि बिना स्वतंत्र जांच के दोषियों को सज़ा नहीं मिलेगी। भ्रष्टाचार की गहराई और इसमें शामिल सभी पक्ष सामने नहीं आ पाएंगे। उन्होंने कोर्ट से FIR दर्ज कराने के आदेश देने की मांग की है।

दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति गिरीश काठपालिया ने इस याचिका पर 30 अप्रैल को सुनवाई की। अदालत ने भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं को गंभीर मानते हुए CBI से जवाब तलब किया है। कोर्ट का रुख इस मामले को लेकर सख्त दिखाई दिया और उसने जांच एजेंसी को नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि यदि अब भी कार्रवाई नहीं की गई, तो यह मामला दब जाएगा। उन्होंने कहा कि यह भूमि घोटाला केवल एक कंपनी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें बड़े स्तर पर सिस्टम की मिलीभगत है। कोर्ट ने माना कि प्रथम दृष्टया आरोप गंभीर हैं और पूरी जांच जरूरी है। अब अगली सुनवाई 27 मई को होगी जिसमें CBI अपना पक्ष रखेगी।

इस भूमि घोटाले में DDA की भूमिका भी सवालों के घेरे में आ गई है। पट्टा समाप्ति के बाद भी यदि निर्माण जारी रहा, तो यह संस्था की कार्यप्रणाली और निगरानी तंत्र पर गंभीर प्रश्न खड़े करता है। याचिका में यह भी कहा गया है कि रजिस्ट्री प्रक्रिया में भी गंभीर खामियां रहीं। सब-रजिस्ट्रार द्वारा अवैध निर्माण को नजरअंदाज किया गया। याचिकाकर्ताओं ने यह सवाल भी उठाया कि क्या यह सब बिना सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत के संभव था। इस तरह से सरकारी नियमों की अवहेलना कर बड़ी वित्तीय हानि पहुंचाना सीधे-सीधे भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। इस मामले में अब जांच की मांग पूरे ज़ोर पर है।

मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए कोर्ट ने स्वतः ही नोटिस जारी कर दिया। यह कदम न्यायपालिका की तत्परता को दर्शाता है कि भ्रष्टाचार से जुड़े गंभीर मामलों को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा। यदि CBI इस मामले में जांच शुरू करती है, तो कई और चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं। कोर्ट के इस रुख से उम्मीद जगी है कि बड़े घोटालों में भी अब जवाबदेही तय की जा सकेगी। यह मामला उन लोगों के लिए चेतावनी है जो कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी कर नियमों से खिलवाड़ करते हैं। कोर्ट की निगरानी में जांच से निष्पक्षता की उम्मीद है। अब निगाहें CBI के रुख और अगली सुनवाई पर टिकी हैं।


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