दिल्ली कैबिनेट में मंत्रियों की संख्या में हो सकता है बदलाव, हाई कोर्ट में याचिका मंजूर
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (10 अप्रैल 2025): दिल्ली सरकार में मंत्रियों की संख्या बढ़ाने को लेकर एक अहम जनहित याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने विचार करने का निर्णय लिया है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 239AA में संशोधन की मांग की गई है ताकि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा न मिलने के बावजूद अन्य राज्यों के समान मंत्रियों की संख्या तय की जा सके। कोर्ट ने इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए कई संवैधानिक प्रश्न उठाए और अगली सुनवाई की तारीख 28 जुलाई तय की।
पीठ ने इस दौरान स्पष्ट किया कि दिल्ली की तुलना अन्य राज्यों से सीधे नहीं की जा सकती क्योंकि यह एक विशेष संवैधानिक योजना के अंतर्गत आती है, जिसे स्वतंत्र दर्जा प्राप्त है और इसे अलग तरीके से शासित किया जाता है। कोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि यदि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं प्राप्त है तो उसकी तुलना अन्य पूर्ण राज्यों से कैसे की जा सकती है? अन्य राज्यों में मंत्रियों की संख्या उस राज्य की आबादी और विधानसभा सदस्यों की संख्या के आधार पर निर्धारित होती है, जबकि दिल्ली को इससे अलग रखा गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता कुमार उत्कर्ष ने तर्क दिया कि वर्तमान में दिल्ली में केवल सात मंत्री हो सकते हैं, जबकि उनके पास 40 से अधिक विभाग हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में मंत्रियों के कार्यभार का संतुलन बनाना असंभव हो जाता है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब संविधान में अन्य राज्यों को 15 प्रतिशत तक मंत्रियों की अनुमति दी गई है, तो दिल्ली को इससे वंचित क्यों रखा गया है?
इस मामले को उठाने वाले याचिकाकर्ता आकाश गोयल ने मांग की है कि अन्य राज्यों की तरह दिल्ली को भी विधानसभा सदस्यों की संख्या के अनुपात में मंत्री बनाने की अनुमति दी जाए। गोयल का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 239AA की यही चुनौती है कि वह दिल्ली को पूर्ण राज्य जैसा प्रशासनिक ढांचा नहीं देता, जिससे कार्य क्षमता प्रभावित होती है।
फिलहाल, संविधान के अनुसार दिल्ली की विधानसभा में कुल 70 सदस्य हैं और दिल्ली सरकार केवल 10 प्रतिशत यानी अधिकतम सात मंत्री ही बना सकती है, जबकि अन्य राज्यों में यह सीमा 12 मंत्री या कुल सदस्यों का 15 प्रतिशत होती है। कोर्ट ने इस असमानता को लेकर गहन विचार की आवश्यकता जताई है और इस पर व्यापक सुनवाई की तैयारी शुरू कर दी है। इस याचिका के जरिए न सिर्फ दिल्ली की शासन व्यवस्था पर पुनर्विचार की मांग उठी है, बल्कि यह पूरे संविधान में केंद्र शासित क्षेत्रों और पूर्ण राज्यों के बीच अधिकारों की बहस को भी नए सिरे से सामने ला रही है।।
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