दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में बढ़ती फीस ने मचाया बवाल!, अभिभावकों का गुस्सा उफान पर

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (09 अप्रैल 2025): दिल्ली में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि के खिलाफ अभिभावकों का गुस्सा लगातार उबाल पर है। द्वारका स्थित डीपीएस स्कूल के बाहर प्रदर्शन कर रहे अभिभावकों ने स्कूल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि निर्धारित फीस जमा करने के बावजूद बच्चों को कक्षा से बाहर निकालकर लाइब्रेरी में बैठाया जा रहा है। इस घटनाक्रम ने ना सिर्फ अभिभावकों की आर्थिक स्थिति पर प्रहार किया है, बल्कि बच्चों की मानसिक स्थिति को भी प्रभावित किया है।

अभिभावकों का आरोप है कि स्कूलों द्वारा मनमाने तरीके से फीस में भारी बढ़ोतरी की गई है, जिससे वे आर्थिक रूप से टूट चुके हैं। कई माता-पिता का कहना है कि शिक्षा निदेशालय की स्वीकृत फीस 93,400 रुपये सालाना है, लेकिन स्कूल 1,90,000 रुपये की मांग कर रहा है। इतना ही नहीं, पिछले वर्षों का 3-4 लाख रुपये रिफंड भी अभी तक स्कूल ने नहीं लौटाया है। इससे नाराज़ होकर अभिभावकों ने सरकार और शिक्षा मंत्रालय से सख्त कार्रवाई की मांग की है।

शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए पहले ही बताया है कि DPS द्वारका ने पिछले पांच वर्षों में लगातार 20%, 13%, 9%, 8% और 7% की दर से फीस बढ़ाई है। इसके मद्देनज़र शिक्षा विभाग ने 1,677 प्राइवेट स्कूलों का ऑडिट कराने का निर्णय लिया है। एसडीएम की अध्यक्षता में जांच समितियां गठित कर दी गई हैं, और अगले 10 दिनों में फीस वृद्धि का पूरा डेटा शिक्षा निदेशालय की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाएगा।

हालांकि यह मुद्दा अब केवल प्रशासनिक नहीं रहा, बल्कि सियासी रंग भी ले चुका है। आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो गया है। आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने कहा कि अगर आज अरविंद केजरीवाल की सरकार होती तो बच्चों को कक्षा से बाहर निकालने वाले स्कूल प्रशासन को 24 घंटे के भीतर जेल भेज दिया गया होता। उन्होंने BJP सरकार पर शिक्षा माफियाओं को संरक्षण देने का आरोप लगाया।

प्रदर्शन कर रहे अभिभावकों के हाथों में तख्तियां थीं जिन पर लिखा था “प्राइवेट स्कूलों की मनमानी, सरकार की नाकामी” और “शिक्षा नहीं लूट है ये पूरी।” उनका कहना है कि शिक्षा एक मौलिक अधिकार है, और इसे हर किसी के लिए सुलभ और किफायती बनाए रखना सरकार की जिम्मेदारी है। अभिभावकों की मांग है कि सरकार तत्काल स्कूलों की फीस नीति पर सख्ती से नियंत्रण लगाए और फीस बढ़ोतरी की जांच सार्वजनिक रूप से की जाए।

इस बीच कई छात्रों की पढ़ाई भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। एक अभिभावक ने बताया कि उसका बेटा 10वीं कक्षा में प्रमोट होने के बावजूद अब तक किसी भी सेक्शन में नहीं बैठाया गया है, जिससे वह रोज़ हताश होकर घर लौटता है। वहीं महेश मिश्रा नामक अभिभावक ने बताया कि 20 मार्च से उनके बच्चों को क्लास से निकालकर लाइब्रेरी में बैठाया जा रहा है। वे लगातार DOE, बाल आयोग, NCPCR और DCPCR तक गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई मदद नहीं मिल रही।

कुल मिलाकर दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि अब सिर्फ एक शैक्षणिक मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक बहस का केंद्र बन चुका है। अभिभावकों का आक्रोश, सरकार की तैयारी, विपक्ष के आरोप और बच्चों की मानसिक स्थिति ये सब मिलकर एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने खड़े हैं। देखना यह होगा कि दिल्ली सरकार इस संकट से कैसे निपटती है और शिक्षा के नाम पर हो रही इस लूट को कैसे रोकती है।


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