मुझे फंसाने और बदनाम करने की साजिश : आरोपों पर बोले न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (24 मार्च 2025): दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने अपने आवास पर नकदी मिलने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह एक सुनियोजित साजिश है, जिसका मकसद उन्हें फंसाना और उनकी छवि को धूमिल करना है। यह विवाद तब गहराया जब उनके आवास के बाहर 500 रुपये के जले हुए नोट पाए जाने का दावा किया गया। इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें जले हुए नोटों को दिखाया गया है। न्यायमूर्ति वर्मा ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय को लिखे अपने जवाब में स्पष्ट किया कि 14 मार्च को उनके आवास पर आग लगी थी, लेकिन उनके कर्मचारियों ने वहां कोई नकदी नहीं देखी थी। उन्होंने कहा कि आग बुझाने के दौरान मौके पर सिर्फ मलबा और जलकर नष्ट हुए सामान के अवशेष थे।
यह मामला तब और गंभीर हो गया जब सुप्रीम कोर्ट ने 14 मार्च की रात की घटनाओं से जुड़ी एक रिपोर्ट, तस्वीरें और वीडियो सार्वजनिक कर दिए। इस मामले की जांच के लिए तीन उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की एक विशेष समिति भी गठित की गई है। न्यायमूर्ति वर्मा ने अपने जवाब में कहा कि जब आग लगी, तब वे और उनकी पत्नी मध्य प्रदेश में थे और 15 मार्च की शाम को दिल्ली लौटे थे। उन्होंने कहा कि उनकी बेटी और निजी सचिव ने दमकल विभाग को आग लगने की सूचना दी थी। आग बुझाने के बाद जब उनके कर्मचारी घटनास्थल पर लौटे, तो वहां कोई नकदी नहीं थी।
इस घटना से जुड़ी एक और परत तब जुड़ी जब एक सफाई कर्मी ने दावा किया कि उसने न्यायमूर्ति वर्मा के आवास के पास 500 रुपये के जले हुए नोटों के कुछ टुकड़े देखे। सफाई कर्मी ने कहा कि उसे इस आग की घटना के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन उसे जले हुए नोट जरूर मिले थे। इस दावे के समर्थन में एक नया वीडियो भी सामने आया, जिससे मामले की गंभीरता और बढ़ गई। सुप्रीम कोर्ट कालेजियम ने 20 मार्च को न्यायमूर्ति वर्मा के तबादले का प्रस्ताव रखा था, जिसके अगले ही दिन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि न्यायमूर्ति वर्मा से इस मामले में लिखित स्पष्टीकरण लिया जाए।
इसके अलावा, हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि न्यायमूर्ति वर्मा के मोबाइल फोन, कॉल रिकॉर्ड, संदेश और अन्य डिजिटल डेटा को संरक्षित किया जाए। इसके साथ ही पिछले छह महीनों में उनके आवास पर तैनात सुरक्षा कर्मियों और कर्मचारियों की सूची तैयार करने को भी कहा गया। न्यायमूर्ति वर्मा ने अपने जवाब में बताया कि जिस भंडारण कक्ष को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं, वह मुख्य निवास से अलग एक स्टाफ क्वार्टर के पास स्थित है। यह स्थान आमतौर पर अप्रयुक्त फर्नीचर, गद्दे, बर्तन और अन्य घरेलू सामान रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
उन्होंने यह भी कहा कि यह अविश्वसनीय है कि कोई व्यक्ति एक खुले और बार-बार इस्तेमाल किए जाने वाले स्थान पर नकदी संग्रहीत करेगा। उन्होंने कहा कि जब हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें पहली बार इस कथित वीडियो क्लिप को दिखाया, तो वे आश्चर्यचकित रह गए, क्योंकि उसमें जो कुछ दिखाया गया था, वह मौके पर नहीं मिला था। न्यायमूर्ति वर्मा ने इस मामले में अपनी निष्पक्षता बनाए रखने के लिए जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग करने की बात कही है और उन्होंने खुद को निर्दोष बताया है।
दिल्ली पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है। दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा ने इस संबंध में दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक वीडियो भी सौंपा है, जिसमें आग बुझाने के दौरान हुई घटनाओं को रिकॉर्ड किया गया है। दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली अग्निशमन सेवा (DFS) ने पहले दावा किया था कि 14 मार्च को आग बुझाते समय उन्हें कोई नकदी नहीं मिली थी। लेकिन हाई कोर्ट की जांच रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर जारी किए गए वीडियो ने इस दावे पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर दमकल विभाग को नकदी नहीं मिली, तो वह बाद में कहां से आई? क्या जले हुए नोट सफाई कर्मी को वास्तव में उसी स्थान से मिले, जहां आग लगी थी? या फिर यह किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है? इन सवालों का जवाब अब पुलिस और जांच एजेंसियों के हाथ में है। न्यायमूर्ति वर्मा का कहना है कि यह पूरी घटना उनके खिलाफ एक साजिश है, लेकिन अब इस साजिश का सच क्या है, यह आने वाली जांच से ही साफ हो पाएगा।।
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