शरजील इमाम पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी, ‘हेट स्पीच’ और ‘हिंसा भड़काने की साजिश’ का दोषी
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (11 मार्च 2025): दिल्ली की एक अदालत ने 2019 के जामिया हिंसा मामले में शरजील इमाम के खिलाफ आरोप तय कर दिए हैं। कोर्ट ने उनके भाषण को ‘जहरीला’ और ‘उकसाने वाला’ करार देते हुए कहा कि वह हिंसा भड़काने की ‘बड़ी साजिश’ के मुख्य सूत्रधार थे। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने कहा कि 13 दिसंबर 2019 को जामिया यूनिवर्सिटी के पास इमाम ने अपने भाषण के जरिए एक धर्म को दूसरे धर्म के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश की। अदालत ने यह भी कहा कि उनका भाषण स्पष्ट रूप से ‘हेट स्पीच’ की श्रेणी में आता है, जिससे समाज में वैमनस्य फैल सकता है।
‘चक्का जाम’ का आह्वान और अदालत की प्रतिक्रिया
शरजील इमाम ने अपने भाषण में उत्तर भारत के राज्यों में मुसलमानों की बड़ी आबादी का जिक्र करते हुए सवाल किया था कि वे ‘शहरों को सामान्य रूप से चलने क्यों दे रहे हैं’ और ‘चक्का जाम’ क्यों नहीं कर रहे। अदालत ने इस बयान को लेकर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनका इरादा समाज के सामान्य कामकाज को बाधित करना और हिंसा को उकसाना था। कोर्ट ने कहा कि चक्का जाम कभी भी शांतिपूर्ण प्रदर्शन का हिस्सा नहीं हो सकता, क्योंकि इससे आम जनता को भारी परेशानी होती है। विशेष रूप से, आपातकालीन सेवाओं में देरी के कारण मरीजों की जान को खतरा हो सकता है, जिसे ‘गैर-इरादतन हत्या’ जैसा अपराध माना जा सकता है।
शरजील इमाम के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोप
कोर्ट ने शरजील इमाम के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की कई धाराओं के तहत आरोप तय किए हैं। इनमें उकसाना, आपराधिक साजिश रचना, समुदायों के बीच वैमनस्य बढ़ाना, दंगा भड़काना, गैरकानूनी सभा में शामिल होना, गैर-इरादतन हत्या का प्रयास, लोक सेवकों को बाधित करना, आगजनी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। इसके अलावा, अदालत ने आरोपी अशु खान, चंदन कुमार और आसिफ इकबाल तनहा पर भी हिंसा को उकसाने का दोषी मानते हुए धारा 109 के तहत आरोप तय किए हैं।
जामिया हिंसा और शाहीन बाग प्रदर्शन का संबंध
यह मामला 2019-2020 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया और शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा है। संसद ने इस कानून को 11 दिसंबर 2019 को पारित किया था, जिसके बाद देशभर में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों के दौरान जामिया मिल्लिया इस्लामिया के पास हिंसा भड़क उठी, जिसमें सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया और पुलिस व प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें हुईं। पुलिस ने इस मामले में कई लोगों को आरोपी बनाया, जिनमें शरजील इमाम भी शामिल हैं।
कोर्ट ने कहा: ‘हिंसा कोई आकस्मिक घटना नहीं थी’
कोर्ट ने 7 मार्च के अपने आदेश में कहा कि यह हिंसा किसी आकस्मिक घटना का नतीजा नहीं थी, बल्कि यह ‘कुछ लोगों द्वारा रची गई बड़ी साजिश’ का हिस्सा थी। अदालत ने कहा कि बड़ी संख्या में भीड़ का इकट्ठा होना और बड़े पैमाने पर दंगे भड़काना यह साबित करता है कि इसके पीछे एक सुनियोजित योजना थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही चक्का जाम के दौरान भीड़ ने हिंसा और आगजनी न की हो, फिर भी इसे एक समुदाय द्वारा दूसरे समुदाय के खिलाफ की गई हिंसक कार्रवाई माना जाएगा।
शरजील इमाम की जमानत और आगे की कार्रवाई
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने शरजील इमाम को दिल्ली दंगों से जुड़े राजद्रोह केस में जमानत दी थी, लेकिन अन्य मामलों में उनके खिलाफ सुनवाई जारी है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि मामला हाईकोर्ट में लंबित है। इस बीच, दिल्ली दंगों पर बनी एक फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग भी हाईकोर्ट में पहुंच चुकी है। शरजील इमाम इस मामले में आरोपी हैं और उनके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया जारी है। अदालत ने साफ कर दिया है कि इस मामले में कोई भी दोषी बच नहीं पाएगा और न्याय प्रक्रिया पूरी सख्ती से आगे बढ़ेगी।
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