कौन थे राजा नाहर सिंह? जिनके नाम पर नजफगढ़ का नाम रखने की मांग | टेन न्यूज विशेष
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (28 फरवरी 2025): हाल ही में दिल्ली विधानसभा (Delhi Assembly) में नजफगढ़ से विधायक नीलम पहलवान (Neelam Pahalwan) ने नजफगढ़ (Najafgarh) का नाम बदलकर नाहरगढ़ (Nahargarh) रखने का प्रस्ताव रखा, जिसे कई नेताओं का समर्थन भी मिला। इससे पहले भी सांसद प्रवेश वर्मा (Parvesh Verma) और विधायक कैलाश गहलोत (Kailash Gehlot) इस मांग को उठा चुके हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि नजफगढ़ क्षेत्र को स्वतंत्रता संग्राम में राजा नाहर सिंह के योगदान को सम्मान देने के लिए उनका नाम दिया जाना चाहिए।
कौन थे राजा नाहर सिंह?
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजा नाहर सिंह बल्लभगढ़ के अंतिम शासक थे। वह वीरता, साहस और बलिदान के प्रतीक माने जाते हैं। बल्लभगढ़ रियासत की स्थापना जाट वंश के तेवतिया कबीले ने की थी, और नाहर सिंह इसी वंश के राजा थे। उनका जन्म 1823 में हुआ था, और मात्र 9 वर्ष की उम्र में अपने पिता की मृत्यु के बाद, उनके चाचा नवल सिंह ने उनका पालन-पोषण किया। 1839 में उनका राज्याभिषेक हुआ, और उन्होंने अपने शासनकाल में अपने राज्य को मजबूत किया।
1857 के विद्रोह में राजा नाहर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर विद्रोह किया। उन्होंने अपनी सेना को मैदान में उतारकर ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी। उन्होंने दिल्ली के मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का समर्थन किया और विद्रोहियों को सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की। बल्लभगढ़ से पलवल तक उनकी सेना ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला और लगातार हमले किए। अंग्रेजों ने उन्हें ब्रिटिश सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने, हथियार और रसद उपलब्ध कराने का दोषी ठहराया।
अंग्रेजों के लिए राजा नाहर सिंह बड़ी चुनौती बन चुके थे। उन्हें पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने चाल चली और बहादुर शाह जफर के नाम से एक संधि के बहाने उन्हें दिल्ली बुलाया। जब वह अपने सेनापति गुलाब सिंह, भूरा सिंह और खुशयाल सिंह के साथ दिल्ली पहुंचे, तो उन्हें धोखे से बंदी बना लिया गया। इलाहाबाद की अदालत में उन पर मुकदमा चलाया गया, और 9 जनवरी 1858 को उन्हें मृत्युदंड सुनाया गया।
9 जनवरी 1858 को राजा नाहर सिंह और उनके सेनापतियों को दिल्ली के चांदनी चौक में सार्वजनिक रूप से फांसी दे दी गई। उनकी शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गई। अंग्रेजों ने उनकी पूरी संपत्ति जब्त कर ली और बल्लभगढ़ राज्य को अपने कब्जे में ले लिया। उनके सेनापति गुलाब सिंह, भूरा सिंह और खुशयाल सिंह ने भी वीरता से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।
आज भी राजा नाहर सिंह का बलिदान भुलाया नहीं जा सकता। उनकी याद में बल्लभगढ़ का किला, जिसे नाहर सिंह महल के नाम से जाना जाता है, उनकी वीरता का प्रतीक बना हुआ है। हरियाणा और दिल्ली में उन्हें बड़े सम्मान से याद किया जाता है। उनके योगदान को देखते हुए कई बार नजफगढ़ का नाम बदलकर “नाहरगढ़” करने की मांग उठ चुकी है।
बल्लभगढ़ राज्य की स्थापना महाराजा सूरज मल के बहनोई बलराम सिंह तेवतिया ने की थी, और राजा नाहर सिंह इसी वंश के वंशज थे। उन्होंने अपने शासनकाल में शिक्षा, प्रशासन और सेना को मजबूत किया। उनके शिक्षकों में पंडित कुलकर्णी और मौलवी रहमान खान शामिल थे, जिन्होंने उन्हें रणनीति और राजनीति की शिक्षा दी। उनके शौर्य और बलिदान ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर कर दिया। राजा नाहर सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले शहीद राजाओं में से एक थे। उनका योगदान हर भारतीय के लिए प्रेरणादायक है। उनके सम्मान में नजफगढ़ का नाम नाहरगढ़ रखने की मांग इतिहास और उनके बलिदान को सम्मान देने का एक प्रयास है।।
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