जहरीली हवा से घिरी दिल्ली, AQI खतरनाक स्तर पर

टेन न्यूज़ नेटवर्क

New Delhi News (19 November 2025): राष्ट्रीय राजधानी में मंगलवार की सुबह धुंध की मोटी परत और जहरीले कणों ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली का समग्र AQI 342 दर्ज किया गया, जो ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है। कई इलाकों में हालात इससे भी बदतर हैं, जिससे लोगों को सामान्य गतिविधियाँ करने में भी परेशानी हो रही है। हवा में मौजूद महीन कणों ने जिस तरह से पूरे वातावरण को ढक लिया है, उसने दिल्लीवासियों की दिनचर्या और स्वास्थ्य दोनों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।

AIIMS डॉक्टरों की चेतावनी: “पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी जैसे हालात”

एम्स के वरिष्ठ डॉक्टरों ने दिल्ली की हवा को लेकर अत्यंत गंभीर चेतावनी जारी की है। रेस्पिरेट्री विभाग की प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉक्टर अनंत मोहन ने कहा कि प्रदूषण ‘सीवियर’ ज़ोन से भी ऊपर पहुंच चुका है और हालात लाइफ-थ्रेटनिंग हो रहे हैं। उनके अनुसार यह समस्या नई नहीं है, बल्कि पिछले 10 वर्षों से हर सर्दी में यही हालात बनते हैं, लेकिन मौसम बदलते ही कार्रवाई और चर्चा दोनों ठंडी पड़ जाती हैं। डॉक्टरों ने साफ कहा कि अब यह महज पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि एक जन स्वास्थ्य आपदा बन चुकी है।

अस्पतालों में मरीजों की संख्या में उछाल

एम्स के डॉक्टर सौरभ के अनुसार प्रदूषण के बढ़ते स्तर ने अस्पतालों की ओपीडी पर अचानक भारी दबाव डाल दिया है। सांस और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों के मरीजों की संख्या 30 से 35 प्रतिशत तक बढ़ गई है। अस्थमा और COPD के मरीज, जो पहले दवाओं से नियंत्रित स्थिति में रहते थे, अब अचानक गंभीर हालत में पहुंच रहे हैं। कई मरीजों को इमरजेंसी भर्ती करना पड़ रहा है, जबकि कई को नेबुलाइजेशन और वेंटिलेटर सपोर्ट तक की जरूरत पड़ रही है।

PM2.5 के खतरनाक प्रभाव

डॉक्टरों के अनुसार दिल्ली की हवा में मौजूद PM2.5 जैसे बेहद छोटे कण शरीर के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं, क्योंकि ये सीधे खून में घुसकर पूरे शरीर में फैल जाते हैं। इससे हार्ट अटैक, हाई ब्लड प्रेशर, स्ट्रोक, नसों के ब्लॉक होने और कैंसर तक का खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक लंबे समय तक ऐसी हवा में रहने से लोगों की औसत आयु पर भी असर हो सकता है, भले ही इन दावों के लिए प्रत्यक्ष डेटा सीमित हो, लेकिन बीमारी बढ़ने के प्रमाण स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं।

सरकार के अस्थायी उपायों पर सवाल

दिल्ली सरकार और एजेंसियों द्वारा कई कदम उठाए जाने का दावा किया जाता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि उपायों का असर जमीन पर दिखाई नहीं देता। सबसे अधिक फोकस पानी के छिड़काव और एंटी-स्मॉग गन जैसे अस्थायी कदमों पर रहता है, जिनका प्रभाव कुछ घंटों से ज़्यादा नहीं टिकता। सड़क मरम्मत, धूल नियंत्रण, वाहन उत्सर्जन में कठोरता और कचरा जलाने पर सख्ती जैसे ठोस उपायों पर पर्याप्त जोर नहीं दिया जाता। इस वजह से प्रदूषण का स्तर लगातार नियंत्रण के बाहर जा रहा है।

मौसम और भूगोल भी बना बड़ा कारण

विशेषज्ञ बताते हैं कि तापमान गिरने पर हवा ठंडी और भारी हो जाती है, जिससे प्रदूषण ऊपर नहीं उठ पाता और जमीन के पास ही जमा रहता है। हवा की गति कम होने पर वातावरण का नैचुरल वेंटिलेशन भी रुक जाता है, जिससे स्मॉग परत बनती है। दिल्ली की भौगोलिक स्थिति, आसपास के इलाकों में पराली जलाना, निर्माण कार्यों का धुआं और बढ़ते वाहन मिलकर हवा को और जहरीला बनाते हैं। नतीजतन हर सर्दी में प्रदूषण एक “साइलेंट किलर” की तरह लोगों की सेहत पर वार करता रहता है।।


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