भारत में भू-अभियांत्रिकी पर रणनीतिक मूल्यांकन की आवश्यकता पर जोर

टेन न्यूज नेटवर्क

National News (29 अगस्त 2025): नीति आयोग, ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) और सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति केंद्र (सीएसईपी) के संयुक्त तत्वावधान में 28 अगस्त को राजधानी दिल्ली में ‘भू-अभियांत्रिकी पर भारतीय एवं वैश्विक परिप्रेक्ष्य—विज्ञान, शासन और जोखिम’ विषयक उच्च स्तरीय कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यशाला में नीति-निर्माताओं, वैज्ञानिकों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भू-अभियांत्रिकी के संभावित मार्गों, जोखिमों और प्रशासनिक ढांचों पर विस्तार से चर्चा की।

कार्यशाला में नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम, पर्यावरण मंत्रालय के सचिव तन्मय कुमार, सीईईडब्ल्यू के संस्थापक-सीईओ डॉ. अरुणाभ घोष, सीएसईपी के अध्यक्ष डॉ. लवीश भंडारी तथा शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेविड कीथ जैसे वैश्विक विशेषज्ञ शामिल हुए।

जियोअभियांत्रिकी यानी पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में योजनाबद्ध हस्तक्षेप के दो प्रमुख दृष्टिकोणों—कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (सीडीआर) और सौर विकिरण प्रबंधन (एसआरएम)—पर विशेष सत्र आयोजित हुए। सीडीआर में बायोचार, उन्नत रॉक अपक्षय, महासागर आधारित तकनीकें और भूवैज्ञानिक भंडारण के साथ कार्बन कैप्चर जैसी पद्धतियां शामिल हैं, जबकि एसआरएम के अंतर्गत स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन और समुद्री बादल ब्राइटनिंग जैसी तकनीकें आती हैं। विशेषज्ञों ने इनसे जुड़े वैज्ञानिक, आर्थिक और शासन से संबंधित पहलुओं का मूल्यांकन किया।

अपने संबोधन में नीति आयोग के सीईओ सुब्रह्मण्यम ने कहा कि भारत की विकास यात्रा निम्न-कार्बन और सतत मार्ग पर आगे बढ़ रही है, लेकिन जलवायु परिवर्तन देश के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है। शमन वैश्विक प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए, परंतु भारत को समानांतर रूप से नई तकनीकों पर शोध करते हुए त्वरित समाधान तलाशने होंगे ताकि आने वाले दशकों में सतत विकास सुनिश्चित किया जा सके।

सीईईडब्ल्यू की डॉ. अरुणाभ घोष ने कहा कि भारत को परंपरागत औद्योगीकरण के मार्ग से हटकर कार्बन-मुक्त विकास की ओर बढ़ना होगा। इसके लिए जलवायु अभियांत्रिकी पर शोध बढ़ाने के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर संवाद और सहयोग को भी मजबूत करना होगा। उन्होंने जोर दिया कि समानता और जलवायु न्याय हर वैश्विक निर्णय का आधार होना चाहिए।

सीएसईपी के अध्यक्ष डॉ. लवीश भंडारी ने कहा कि भू-अभियांत्रिकी विज्ञान, संप्रभुता और समाज से जुड़े गहरे प्रश्न उठाती है। भारत को शीघ्र ही रणनीतिक अनुसंधान में निवेश कर लोकतांत्रिक निगरानी और राष्ट्रीय हित के अनुरूप तकनीकी विकल्पों का आकलन करना होगा। उन्होंने विशेष रूप से जल सुरक्षा, कृषि और आजीविका पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों की पहचान करने की आवश्यकता पर बल दिया।

कार्यशाला में नीति आयोग, सीएसईपी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, सीएसआईआर, आईआईटी दिल्ली और आईआईटी रुड़की के वरिष्ठ विशेषज्ञों ने भाग लिया। विचार-विमर्श में इस बात पर सहमति बनी कि शमन और अनुकूलन प्राथमिकता बने रहेंगे, किंतु आने वाले दशकों की तैयारी के लिए भारत को भू-अभियांत्रिकी पर अनुसंधान, संभावित जोखिमों और प्रशासनिक ढांचे के रणनीतिक मूल्यांकन की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।।


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