नरेला विधानसभा: जातीय समीकरण, विकास की कमी और मेट्रो की मांग बना चुनावी मुद्दा | टेन न्यूज की विशेष रिपोर्ट
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (26 दिसंबर 2024): दिल्ली का नरेला विधानसभा क्षेत्र अपनी भौगोलिक और सामाजिक विविधता के कारण हमेशा से राजनीतिक दलों के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। हरियाणा राज्य की सीमा से सटा यह क्षेत्र उत्तर-पश्चिम दिल्ली के ग्रामीण परिवेश का प्रतिनिधित्व करता है। हालांकि, पिछले दो दशकों में तेजी से बढ़ती अनधिकृत कॉलोनियों और जनसंख्या वृद्धि ने इस इलाके के चुनावी परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है।
ग्रामीण और शहरी मिश्रण का अनूठा क्षेत्र
नरेला विधानसभा क्षेत्र में 30 से अधिक गांव और लगभग 40 अनधिकृत कॉलोनियां हैं। इसके अलावा, डीडीए की योजनाओं के तहत विकसित आवासीय अपार्टमेंट भी क्षेत्र का हिस्सा हैं। बड़े गांवों जैसे लामपुर, बांकनेर, खेड़ा कलां, सिंघु और टीकरी खुर्द के साथ-साथ पुर्नवास कॉलोनी, मेट्रो विहार और स्वर्ण जयंती विहार जैसी कॉलोनियां भी इस विधानसभा का हिस्सा हैं। बावजूद इसके, गांवों और अनधिकृत कॉलोनियों के मतदाता ही चुनाव के दौरान हार-जीत का निर्धारण करते हैं।
जातीय समीकरण का प्रभाव
हरियाणा की सीमा से लगे होने के कारण नरेला में जातीय समीकरण का गहरा असर है। जाट समुदाय का पिछले दो दशकों से इस क्षेत्र की राजनीति में दबदबा रहा है। हालांकि, हाल के वर्षों में पूर्वांचल के मतदाताओं और पुर्नवास कॉलोनी के निवासियों का प्रभाव भी बढ़ा है।
विकास के वादे और अनसुलझे मुद्दे
इस क्षेत्र में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा मेट्रो की मांग है, जो पिछले दो दशकों से लंबित है। हर चुनाव में मेट्रो विस्तार को लेकर वादे किए जाते हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इसके अलावा, अतिक्रमण, सड़कों पर ट्रैफिक जाम, गंदे पानी की निकासी, उच्च शिक्षा संस्थानों की कमी और सरकारी अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव यहां के निवासियों की बड़ी समस्याएं हैं।
चुनावी इतिहास और मौजूदा स्थिति
1993 से अब तक सात बार हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तीन बार, बीजेपी ने दो बार और आम आदमी पार्टी (आप) ने दो बार जीत हासिल की है। इस क्षेत्र में मतदाता अक्सर मौजूदा माहौल के अनुसार अपना निर्णय लेते हैं।
•1993 में बीजेपी ने जीत हासिल की।
•1998 से 2008 तक शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने लगातार तीन बार चुनाव जीते।
•2013 में बीजेपी के नील दमन खत्री ने क्षेत्र में जीत दर्ज की।
•2015 और 2020 में आप के शरद चौहान ने लगातार दो बार जीत हासिल की।
हालांकि, पिछले चुनाव में आप और बीजेपी के बीच का अंतर 25% से घटकर 11% रह गया था, जो आगामी चुनाव के दिलचस्प मुकाबले का संकेत देता है।
नए चेहरों और रणनीतियों का दौर
2024 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने मौजूदा विधायक शरद चौहान का टिकट काटकर अर्जुन अवार्ड विजेता और पूर्व कबड्डी खिलाड़ी दिनेश भारद्वाज को उम्मीदवार बनाया है। दिनेश भारद्वाज बांकनेर से निगम पार्षद रह चुके हैं और इससे पहले कांग्रेस के टिकट पर भी चुनाव लड़ चुके हैं। बीजेपी की ओर से अब तक उम्मीदवार घोषित नहीं हुआ है, लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी गैर-जाट उम्मीदवार को मैदान में उतार सकती है।
क्या कहते हैं आंकड़े?
नरेला विधानसभा में कुल 2,68,573 मतदाता हैं, जिनमें सबसे बड़ी संख्या 30-39 वर्ष के युवाओं की है। यह वर्ग चुनाव में अहम भूमिका निभा सकता है।
नरेला विधानसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण, विकास की कमी और मेट्रो विस्तार जैसे मुद्दे आगामी चुनाव को दिलचस्प बना रहे हैं। जहां आप ने नए चेहरे को मैदान में उतारकर दांव खेला है, वहीं बीजेपी और कांग्रेस की रणनीतियों पर भी सबकी नजरें टिकी हैं। अब देखना यह होगा कि नरेला का मतदाता विकास के वादों पर भरोसा करता है या फिर जातीय समीकरण इस चुनाव का रुख तय करेगा।।
रंजन अभिषेक (टेन न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली)
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