ISKCON द्वारा गीता की व्याख्या पर प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत ने उठाए सवाल, क्या बोले?
मेघा राजपूत, संवाददाता, टेन न्यूज नेटवर्क
GREATER NOIDA News (28/07/2025): सनातन की आत्मा माने जाने वाली श्रीमद्भगवद्गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मनुष्य जीवन का परम विज्ञान है, कर्म, ज्ञान और भक्ति का समन्वय। जब-जब अधर्म बढ़ा, तब-तब गीता का संदेश मानवता को दिशा देता है। लेकिन आज, जब गीता कई रूपों में प्रकाशित हो रही है, सवाल उठते हैं कि क्या इन व्याख्याओं में मूल गीता का तात्त्विक संदेश बरकरार है? क्या हम असली गीता का सही मर्म समझ पा रहे हैं? इस प्रश्न पर गंभीर वैचारिक दृष्टि रखते हैं राष्ट्रीय चिंतक, गीता विश्लेषक और गढ़वाल एवं कुमाऊं विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत (Professor Balwant Singh Rajput) से जिन्होंने गीता का “वैज्ञानिक विश्लेषण” प्रस्तुत किया है और इस्कॉन जैसी संस्थाओं द्वारा प्रचारित संस्करणों पर कठोर सवाल खड़े किए हैं, से टेन न्यूज टीम ने खास बातचीत की।
गीता सिर्फ पढ़ने की चीज नहीं, जीने की विधा है
प्रोफेसर बलवंत सिंह राजपूत ने बताया कि मैंने गीता को 100 से ज्यादा बार पढ़ा है। लेकिन हर बार ऐसा लगा कि अब तक कुछ भी नहीं समझा। इसलिए मैंने रिटायरमेंट के बाद पांच साल सिर्फ गीता के अध्ययन में लगाए। और तब समझ में आया कि गीता के श्लोक मैथमेटिक्स (Mathematics) के फार्मूले जैसे हैं जब तक जीवन में अप्लाई न करें, तब तक समझ नहीं सकते। उनके मुताबिक, गीता केवल भक्ति का ग्रंथ नहीं है, यह एक कर्मयोगी जीवन का बुनियादी पाठ है। गीता हमें सिखाती है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो।
ISKCON की गीता पर सवाल: क्या यह सही व्याख्या है?
प्रो. राजपूत ने ISKCON द्वारा प्रकाशित गीता की व्याख्या पर गहरी आपत्ति जताई। उनका मानना है कि श्रीकृष्ण को केवल “कृष्णा” कहकर संबोधित करना, उनका महत्व घटाता है। मैंने ISKCON को कई बार कहा कि कृष्णा नहीं, कहो श्रीकृष्ण, हरि या भगवान कृष्ण। ‘कृष्णा’ शब्द एक अंग्रेज़ीकरण है, जो श्रीकृष्ण की गरिमा को क्षीण करता है,” वे कहते हैं। मेरा मानना है कि ISKCON द्वारा प्रकाशित गीता में कई श्लोकों की व्याख्या गूढ़, भक्ति-केंद्रित और अक्सर भ्रामक होती है। यह आम जनमानस को मूल गीता के निष्काम कर्म, तात्त्विक विवेक और सार्वभौमिक संदेश से भटका सकती है।
गीता का मूल दर्शन: निष्काम कर्म, न कि केवल भक्ति
प्रोफेसर राजपूत का तर्क है कि गीता का मूल चिंतन भक्ति नहीं, बल्कि निष्काम कर्म है, ऐसा कर्म जिसमें न तो फल की अपेक्षा हो, न करने वाले का अहं। “गीता कहती है – ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’। यह जीवन का वैचारिक बीज है। भगवद्गीता पहली बार कर्म को फल-रहित भाव से जोड़ती है, इससे पहले किसी शास्त्र में ऐसा विवेक नहीं था,” वे बताते हैं। वे स्पष्ट करते हैं कि गीता न तो किसी पंथ की बपौती है, न किसी संस्थान की। यह हर युग, हर जाति, हर धर्म, हर आयु वर्ग के व्यक्ति के लिए है।
सबसे श्रेष्ठ गीता कौन सी है?
प्रोफेसर राजपूत के अनुसार आज के समय में कई अच्छे संस्करण मौजूद हैं जिसमें लोकमान्य तिलक द्वारा रचित गीता रहस्य, स्वामी शिवानंद और योगानंद द्वारा व्याख्यायित गीता और सबसे महत्वपूर्ण गीताप्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त गीता, जिसमें हर श्लोक का दो-दो पंक्तियों में सार है। अगर कोई व्यक्ति गीताप्रेस की संक्षिप्त गीता को पूरी श्रद्धा और समझ से पढ़ ले, तो उसे गीता के सभी तत्व समझ आ जाएंगे।
गीता का वैज्ञानिक विश्लेषण: पहली बार
प्रोफेसर राजपूत ने “गीता का वैज्ञानिक विश्लेषण” नाम से पुस्तक भी लिखी है। उन्होंने बताया कि गीता के श्लोकों में भौतिक विज्ञान, तर्कशास्त्र और मनोविज्ञान छिपा है। जब मैं जर्मनी में फिजिक्स पढ़ाता था, वहां के प्रोफेसर ने ही कहा था ‘आप गीता पर एक वैज्ञानिक पुस्तक लिखें’। और वहीं से इस पुस्तक की शुरुआत हुई। आज उनकी यह पुस्तक भारत ही नहीं, विदेशों में भी पढ़ी जा रही है। इसमें हर श्लोक का तर्क, प्रयोग और जीवन उपयोगिता समझाई गई है।
गीता केवल पढ़ने से नहीं, जीवन में जीने से समझ आती है
प्रोफेसर बलवंत सिंहराजपूत ने सबसे गहरा संदेश देते हुए बताया “गीता को केवल पढ़ने से कुछ नहीं होगा। जब तक आप हर श्लोक को अपने जीवन में उतारें, तब तक उसका ज्ञान अधूरा है। गीता में ज्ञान, भक्ति और कर्मयोग तीनों का समन्वय है। यह अकेला ऐसा ग्रंथ है जिसमें वेद, उपनिषद, दर्शन और नीति – सब एकत्र हैं। उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता को गाय के दूध की तरह बताया, जिसमें श्रीकृष्ण (Sri Krishna) ग्वाले हैं और अर्जुन को यह आध्यात्मिक अमृत पिला रहे हैं।
क्या हमने सही गीता पढ़ी है?
आज जब हर संस्था, हर संप्रदाय, अपने-अपने मत के अनुसार गीता प्रकाशित कर रहा है, तो एक साधारण पाठक के लिए यह निर्णय कठिन हो गया है कि असली गीता क्या है?
क्या हमने अब तक सही गीता पढ़ी है? क्या हमने निष्काम कर्म को जीवन में अपनाया है या केवल ‘हरे कृष्णा’ जपने में ही अपने धर्म का पालन मान लिया है?
आपसे एक सवाल…
आपने अब तक कौन-कौन सी भगवद्गीता पढ़ी है? कौन सी संस्था द्वारा प्रकाशित गीता ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है? क्या आपने कभी गीता को अपने जीवन में प्रयोग किया है?
कृपया अपनी राय कमेंट बॉक्स में जरूर साझा करें। क्योंकि गीता केवल श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच संवाद नहीं है, यह आप और आपके अंतर्मन के बीच की अद्वितीय बातचीत है।।
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