दिल्ली विधानसभा चुनाव: जातीय समीकरणों के खेल से तय होगी सत्ता की दिशा | टेन न्यूज की विशेष रिपोर्ट

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (19 दिसंबर 2024): दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है, और सभी प्रमुख राजनीतिक दल सियासी बिसात बिछाने में जुट गए हैं। आम आदमी पार्टी ने जहां अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा शुरू कर दी है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए अपनी रणनीति तैयार कर रही हैं। चुनावी अभियान के बीच राजनीतिक दल भले ही जाति-धर्म से ऊपर उठने की बात करें, लेकिन हकीकत यह है कि दिल्ली की सियासत का रुख जातीय और धार्मिक समीकरणों पर ही निर्भर करता है।

दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में हर क्षेत्र का अलग राजनीतिक मिजाज है। पूर्वांचली, पंजाबी, जाट, ब्राह्मण, वैश्य, दलित, और उत्तराखंडी मतदाताओं की भूमिकाएं यहां बेहद अहम मानी जाती हैं। इन समुदायों के वोटों को साधने के लिए राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीतियां तेज कर दी हैं।

Arvind Kejriwal, AAP,
Arvind Kejriwal (Former Delhi CM)

जातीय समीकरणों में पूर्वांचली सबसे प्रभावी

दिल्ली की कुल मतदाता संख्या में 25% हिस्सेदारी पूर्वांचली मतदाताओं की है। ये मतदाता पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड से आए प्रवासी हैं और दिल्ली की 17-18 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। किराड़ी, बुराड़ी, उत्तम नगर, संगम विहार और बादली जैसी सीटों पर पूर्वांचली वोटरों की संख्या 40% से भी अधिक है। आम आदमी पार्टी फिलहाल इस समुदाय के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाए हुए है, जबकि बीजेपी भी इसे अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है।

पंजाबी वोटर: सत्ता की असली चाबी

दिल्ली में 30% आबादी पंजाबी समुदाय की है, जिसमें 10% पंजाबी खत्री और 5% सिख मतदाता शामिल हैं। विकासपुरी, राजौरी गार्डन, हरी नगर, तिलक नगर, और जनकपुरी जैसी सीटों पर ये वोटर हार-जीत तय करते हैं। बीजेपी का पारंपरिक वोट बैंक माने जाने वाला यह समुदाय अब आम आदमी पार्टी के प्रति भी झुकाव दिखा रहा है। अतिशी और वीरेंद्र सचदेवा जैसे पंजाबी नेताओं को आगे कर दोनों दल इन मतदाताओं को साधने में जुटे हैं।

Virendra Sachdeva, Delhi BJP
Virendra Sachdeva, Delhi BJP President

जाट और दलित समुदाय का प्रभाव

दिल्ली के 364 गांवों में से 225 जाट बहुल हैं, और इनकी संख्या लगभग 8% है। बाहरी दिल्ली की सीटों पर जाट मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। वहीं, दलित समुदाय दिल्ली की 17% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, और 12 सीटें उनके लिए आरक्षित हैं। आम आदमी पार्टी का दलित वोट बैंक मजबूत माना जाता है, जबकि कांग्रेस और बीजेपी इसे तोड़ने की कोशिश कर रही हैं।

वैश्य और ब्राह्मण वोटर की भूमिका

दिल्ली में वैश्य समुदाय की संख्या 8% और ब्राह्मण समुदाय की संख्या 10% के करीब है। ये दोनों समूह कई सीटों पर चुनावी समीकरण को प्रभावित करते हैं। आम आदमी पार्टी के प्रति इनका झुकाव ज्यादा नजर आता है, लेकिन बीजेपी इन वोटरों को अपनी तरफ खींचने में जुटी हुई है।

मुस्लिम वोटरों का गणित

दिल्ली की 12% मुस्लिम आबादी 10 से 12 सीटों पर चुनावी नतीजे प्रभावित करती है। ओखला, बल्लीमारान, मटिया महल, और मुस्तफाबाद जैसी सीटें मुस्लिम बहुल हैं। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस यहां मुख्य दावेदार हैं, जबकि बीजेपी भी इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।

Devendra Yadav
Devendra Yadav, Delhi Congress President

उत्तराखंडी वोटर की बढ़ती अहमियत

दिल्ली में उत्तराखंड से आए लोगों की संख्या लगभग 35 लाख है, जो 6% मतदाता हैं। ये समुदाय भी कई सीटों पर निर्णायक भूमिका में है। सभी पार्टियां इन मतदाताओं को लुभाने के लिए खास ध्यान दे रही हैं।

जातीय समीकरण बनाम विकास के वादे

दिल्ली का चुनाव जातीय समीकरणों और विकास के वादों का संगम है। राजनीतिक दल जाति और धर्म के आधार पर अपने-अपने वोट बैंक को मजबूत करने में लगे हैं। लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता विकास को तरजीह देती है या जातीय समीकरण सत्ता की कुंजी बनते हैं।।

 

रंजन अभिषेक (टेन न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली)


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