महिला वकीलों के लिए ऐतिहासिक फैसला: दिल्ली हाईकोर्ट और जिला बार एसोसिएशन में आरक्षण लागू

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (19 दिसंबर 2024): सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के आगामी चुनावों में महिलाओं के लिए 3 पद आरक्षित करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा, जिला बार एसोसिएशनों में कोषाध्यक्ष का पद और अन्य कार्यकारी समिति के 30% पद महिलाओं (पहले से आरक्षित पदों सहित) के लिए आरक्षित करने का आदेश दिया गया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।

वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा ने बताया कि यह एक ऐसा मुद्दा था जिसे हमने उठाया और बाद में सभी महिला अधिवक्ता इससे जुड़ गईं। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भूयान की बेंच ने आज हिंदुस्तान को एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। पहली बार दिल्ली में, ऑल डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन और दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन में आरक्षण लागू किया गया है। यह भले ही प्रयोगात्मक आधार पर हो, लेकिन याचिका अभी भी लंबित है। इस फैसले के तहत हाईकोर्ट और सभी जिला बार एसोसिएशनों में ट्रेज़रर का पद आरक्षित किया गया है और कार्यकारी समिति में 30% आरक्षण दिया गया है।

इस विचार के पीछे का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि एक बार मैं साकेत कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के लिए गई थी। कुछ मामलों को स्थगित कर दिया गया और मैं और मेरे अन्य सहयोगी एक कप चाय लेने चले गए। तभी मैंने देखा कि वहां सभी पद सेक्रेटरी, प्रेसीडेंट आदि के लिए जो होर्डिंग्स लगे हुए थे, वे पुरुष वकीलों से भरे हुए थे। कुछ ही होर्डिंग्स महिलाओं से संबंधित थे। यह देखकर मेरे मन में यह ख्याल आया कि आज़ादी के 70 साल बाद भी महिला अधिवक्ता, जो दूसरों के अधिकारों के लिए लड़ती हैं, खुद निर्णय लेने वाली कार्यकारी समितियों में क्यों नहीं हो सकतीं। हम अक्सर सिर्फ एक सदस्य के पद तक सीमित रहते हैं।

इसके बाद हमने इस विषय पर जनहित याचिका दाखिल करने का निर्णय लिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भूयान ने स्पष्ट रूप से कहा कि ट्रेज़रर का एक पद और कार्यकारी समिति में 30% आरक्षण महिलाओं के लिए होना चाहिए। न्यायपालिका का बहुत-बहुत धन्यवाद, और हम धन्य हैं कि हमारे पास ऐसे जज हैं जिनका दृष्टिकोण व्यापक है और जो महिला वकीलों को पुरुष वकीलों के बराबर खड़ा होने का अवसर देते हैं।

हम जो दूसरों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं, उन्हें न्याय दिलाते हैं, जब बात हमारे अधिकारों की आती है, तो हमें भी एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए। अगर न्याय मिलता है, तो ठीक है, और अगर नहीं मिलता, तो हमारे जज हैं जो हमारी देखभाल करेंगे। हमारे प्रैक्टिस जीवन में यह पहला और ऐतिहासिक फैसला है, जिससे हमें बहुत खुशी हुई है।।

 


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