PM मोदी को साइप्रस का सर्वोच्च सम्मान, दिल्ली की ‘मकरिओस मार्ग’ क्यों आई चर्चा में?

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (17 जून 2025): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को साइप्रस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकरिओस III’ से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका को सशक्त बनाने के लिए दिया गया। सम्मान ग्रहण करते हुए पीएम मोदी ने इसे भारत और साइप्रस (Cyprus) के दशकों पुराने मजबूत रिश्तों को समर्पित किया। यह वही संबंध हैं, जिनकी झलक भारत की राजधानी दिल्ली की एक सड़क आर्चबिशप मकरिओस मार्ग (Archbishop Makarios Marg) में भी दिखाई देती है, जो अब अचानक लोगों की जिज्ञासा का केंद्र बन गई है।

दिल्ली की यह सड़क आर्चबिशप मकरिओस III के नाम पर है, जो साइप्रस के पहले राष्ट्रपति और चर्च ऑफ साइप्रस के प्रमुख थे। उन्होंने 1950 से 1977 तक चर्च का नेतृत्व किया और उन्हें साइप्रस का राष्ट्रनिर्माता माना जाता है। ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। भारत से उनके गहरे संबंधों को सम्मान देने के लिए दिल्ली में इस सड़क का नाम 1980 के दशक में बदला गया। पहले यह ‘गोल्फ लिंक्स रोड’ कहलाती थी, जिसे बाद में बदलकर मकरिओस मार्ग किया गया।

इतिहासकार सोहेल हाशमी के अनुसार, इस सड़क का नामकरण 1983 में दिल्ली में हुए गुट-निरपेक्ष सम्मेलन (NAM) के बाद हुआ था। उस सम्मेलन में फिदेल कास्त्रो, यासर अराफात जैसे अंतरराष्ट्रीय नेता शामिल हुए थे। उसी दौरान राजधानी की कई सड़कों का नाम वैश्विक नेताओं के सम्मान में रखा गया – जैसे जोसिप ब्रोज टीटो मार्ग, गमाल अब्देल नासर मार्ग, हो ची मिन्ह मार्ग, और मकरिओस मार्ग। ये नाम उस दौर की कूटनीतिक सोच और भारत के अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।

गुट-निरपेक्ष आंदोलन के प्रति भारत का जुड़ाव केवल कूटनीति तक सीमित नहीं था, यह सड़क नामकरण जैसे सांस्कृतिक संकेतों में भी झलकता है। जेएनयू की पूर्व प्रोफेसर अनुराधा चेनॉय बताती हैं कि ये नाम केवल श्रद्धांजलि नहीं थे, बल्कि भारत की वैचारिक प्रतिबद्धताओं को व्यक्त करने का एक तरीका थे। ऐसे कदम भारत की तटस्थ विदेश नीति और स्वतंत्र सोच के वाहक थे, जिसमें कोई भी राष्ट्र अपने संप्रभु हितों की रक्षा कर सकता था।

साइप्रस और भारत के संबंधों की जड़ें 1960 के दशक में गहरी होने लगी थीं। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस संबंध को याद करते हुए बताया कि 1962 में आर्चबिशप मकरिओस भारत आए थे और दो सप्ताह तक नेहरू सरकार के विशेष अतिथि रहे थे। नेहरू के निधन पर 1964 में साइप्रस ने राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित किया था। यह एक ऐतिहासिक संकेत था कि दोनों देशों के बीच केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि भावनात्मक संबंध भी थे। दिल्ली की मकरिओस मार्ग इसी इतिहास की जीवंत निशानी है।

आज जब पीएम मोदी को मकरिओस के नाम वाला सर्वोच्च सम्मान मिला, तो दिल्ली की यह सड़क एक प्रतीक बनकर उभरी – स्वतंत्रता की साझी लड़ाई, गुट-निरपेक्षता की साझा सोच और भारत-साइप्रस की दोस्ती का प्रतीक। भले ही इस सड़क का साइनबोर्ड समय के साथ थोड़ा फीका पड़ा हो या नाम दो हिस्सों में बंटा हो, लेकिन इसकी कहानी अब दो देशों के दिलों में और भी गहराई से दर्ज हो चुकी है।।


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