नई दिल्ली (31 मई 2025): देश की सुरक्षा में तैनात जवानों के सम्मान और सुविधा को सर्वोपरि मानते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम आदेश जारी किया। कोर्ट ने लोक निर्माण विभाग (PWD) और संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे दिल्ली कैंटोनमेंट क्षेत्र में राजपूताना राइफल्स के सैनिकों के लिए परेड ग्राउंड तक जाने वाले रास्ते और पुलिया को तुरंत साफ करें। कोर्ट ने यह फैसला 26 मई को प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लेने के बाद सुनाया, जिसमें बताया गया था कि 3,000 से अधिक सैनिकों को रोज़ाना एक गंदे और बदबूदार नाले से होकर गुजरना पड़ता है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति मनमीत पी.एस. अरोड़ा की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि सैनिकों को ऐसे अमानवीय हालात में चलने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि जब तक प्रस्तावित फुटओवर ब्रिज (FOB) का निर्माण पूरा नहीं होता, तब तक मौजूदा मार्ग को सुरक्षित और साफ बनाए रखना PWD की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने कहा कि इलाके में जमा मलबा और कीचड़ को तत्काल हटाया जाए, दीवारों की सफाई की जाए, और पूरे मार्ग पर ब्लॉक टाइलें लगाई जाएं ताकि सैनिकों को कोई असुविधा न हो।
हाईकोर्ट ने अधिकारियों को यह भी आदेश दिया कि सफाई और मरम्मत का काम तुरंत शुरू किया जाए और इसकी स्थिति की तस्वीरों के साथ एक स्टेटस रिपोर्ट 18 जून तक अदालत में पेश की जाए। कोर्ट ने यह चिंता भी जताई कि आगामी मॉनसून सीज़न में पानी भरने और कीचड़ जमा होने की स्थिति में हालात और बिगड़ सकते हैं, इसलिए रखरखाव का कार्य नियमित और दैनिक आधार पर किया जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान PWD अधिकारियों ने बताया कि संबंधित स्थान एक निचला इलाका है और पुलिया की ऊंचाई बहुत कम है, जिससे बारिश के दौरान जलजमाव की संभावना बनी रहती है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सैनिकों की आवाजाही के लिए सड़क पर एक निर्धारित समय के साथ ट्रैफिक सिग्नल और ज़ेब्रा क्रॉसिंग की व्यवस्था की जा सकती है ताकि वे सुरक्षित रूप से पैदल सड़क पार कर सकें।
कोर्ट ने फुटओवर ब्रिज निर्माण की योजना को भी मंजूरी दी है और स्पष्ट किया है कि डिजाइनिंग, टेंडरिंग और निर्माण कार्य एक साथ जारी रहेंगे, लेकिन इसके पूरा होने तक मौजूदा रास्ते को हर हाल में सैनिकों के चलने लायक बनाया जाना चाहिए। यह फैसला न केवल सैन्य कर्मियों की गरिमा की रक्षा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका सैनिकों की मूलभूत आवश्यकताओं और सम्मान को लेकर संवेदनशील है। हाईकोर्ट का यह कदम एक मिसाल है कि देश की रक्षा करने वालों की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करना सरकार और समाज दोनों की साझा जिम्मेदारी है।
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