दिल्ली चिड़ियाघर की शेरनी महागौरी के चार शावकों में से दो की मौत, दो अस्पताल में भर्ती
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (16 मई 2025): नई दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क में शेरनी महागौरी के लिए मां बनने की खुशी अब गहरी पीड़ा में बदल गई है। करीब 16 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद 27 अप्रैल को जब महागौरी ने चार शावकों को जन्म दिया, तो यह वन्यजीव संरक्षण और प्रजनन कार्यक्रम की बड़ी सफलता मानी गई। लेकिन कुछ ही दिनों में यह सफलता एक गंभीर संकट में बदल गई। जन्म के तुरंत बाद एक-एक कर उसके चारों शावक उससे दूर होते चले गए। दो शावकों की मौत हो चुकी है और बाकी दो अब अस्पताल में भर्ती हैं। महागौरी के पहले शावक की मृत्यु जन्म के 24 घंटे के भीतर हो गई थी, जबकि एक अन्य शावक को अत्यधिक कमजोरी के कारण तुरंत वेटनरी अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। 1 मई को दूसरा झटका तब लगा जब एक और शावक ने दम तोड़ दिया। तब तक शेरनी के पास केवल एक शावक बचा था। लेकिन उसकी भी हालत गंभीर हो गई और अब उसे भी डिहाइड्रेशन और संक्रमण की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा है।
चिड़ियाघर प्रशासन की मानें तो शावकों के जन्म के समय उनका वजन केवल 800 ग्राम के आसपास था, जबकि सामान्य वजन डेढ़ किलो होना चाहिए। इसका अर्थ है कि वे गर्भ में पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए थे और उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर थी। यही वजह है कि संक्रमण और कमजोरी ने उन्हें जल्दी ही अपनी चपेट में ले लिया। लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या इन समस्याओं की पहचान समय रहते नहीं की जा सकती थी?जानकारों का कहना है कि एक शावक 17 घंटे तक दूध नहीं पी रहा था, फिर भी उसे समय रहते अस्पताल में क्यों नहीं भर्ती किया गया? आखिर सीसीटीवी और निगरानी सिस्टम किस काम के हैं? वेटनरी स्टाफ की जिम्मेदारी थी कि वे हर शावक की गतिविधियों पर पैनी नजर रखें। दो शावकों की मौत के बाद भी लापरवाही क्यों हुई? अगर समय पर इलाज किया जाता तो क्या इनकी जान बच सकती थी?
फिलहाल अस्पताल में भर्ती दोनों शावकों की हालत में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। शुरुआत में उन्हें फेलाइन मिल्क दिया गया, जो वे बोतल से नहीं पी पा रहे थे। इसके बाद रूई की मदद से दूध पिलाया गया और अब उन्होंने धीरे-धीरे निप्पल से दूध पीना सीख लिया है। दोनों शावक विशेष निगरानी में हैं और अगले कुछ दिन उनके जीवन के लिए बेहद अहम बताए जा रहे हैं। लेकिन इन सबके बीच सबसे ज्यादा टूट चुकी है मां महागौरी। पहले वह अपने आखिरी बचे शावक को मुंह में उठाकर पूरे बाड़े में घूमती रही, जैसे कि उसे बचा ले। लेकिन अब उसके पास कोई भी बच्चा नहीं है। महागौरी के लिए यह मातृत्व एक भयानक सदमे में बदल गया है। उसकी आंखें सवाल कर रही हैं, लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं।
यह पूरी घटना सिर्फ एक वन्यजीव संरक्षण की असफलता नहीं है, बल्कि एक संवेदनशील जानवर के मातृत्व से जुड़े दुःख की कहानी है। शेरनी महागौरी बोल नहीं सकती, लेकिन उसकी खामोशी में बहुत कुछ छिपा है अपने बच्चों की मौत का कारण, प्रशासन की लापरवाही, और उन सवालों के जवाब जो शायद कभी नहीं मिल पाएंगे। क्या दिल्ली चिड़ियाघर अब सबक लेगा? क्या अगली बार किसी और महागौरी को ऐसा मातम नहीं झेलना पड़ेगा? ये सवाल अभी भी हवा में हैं।
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