नई दिल्ली (4 मई 2025): दिल्ली चिड़ियाघर में प्रशिक्षित कीपिंग स्टाफ की भारी कमी एक बार फिर चर्चा में है, जब हाल ही में एक शेरनी के दो नवजात शावकों की मौत हो गई। महागौरी नाम की 5 वर्षीय शेरनी ने 27 अप्रैल को चार शावकों को जन्म दिया था, जिनमें से दो की मौत अब तक हो चुकी है, और तीसरा अस्पताल में भर्ती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि प्रशिक्षित और अनुभवी कीपर मौजूद होते, तो इन मौतों को टाला जा सकता था।
जू प्रशासन के अनुसार, दोनों मृत शावक जन्म से ही बेहद कमजोर थे और उनका वजन मात्र 800 ग्राम था। 28 अप्रैल को पहले और 1 मई को दूसरे शावक की मौत हुई। प्रशासन दावा कर रहा है कि शेरनी और उसके बच्चों की शुरुआत से ही कड़ी निगरानी की जा रही थी, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो केवल सीसीटीवी से निगरानी काफी नहीं होती, खासकर जब देखभाल करने वालों में अनुभव की कमी हो।
चिड़ियाघर के एक अधिकारी ने बताया कि पिछले दो दशकों से जू में 90 से अधिक पद खाली पड़े हैं, जिन पर स्थायी नियुक्तियां नहीं हुई हैं। इनमें कीपिंग स्टाफ, टेक्नीशियन और अन्य विशेषज्ञ शामिल हैं। यह कमी न सिर्फ वन्यजीवों की देखभाल को प्रभावित कर रही है, बल्कि उनके प्रजनन प्रयासों को भी विफल कर रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नवजात शावकों की परवरिश बेहद संवेदनशील प्रक्रिया होती है, जिसमें मां का दूध पीने की नियमितता, तापमान नियंत्रण, और समय पर चिकित्सकीय हस्तक्षेप की अहम भूमिका होती है। इन सभी कार्यों में ट्रेंड कीपर की मौजूदगी अनिवार्य होती है। लेकिन दिल्ली जू में यह व्यवस्था लगभग नगण्य हो चुकी है।
जानकारों के मुताबिक, शावक मां का दूध पी रहे हैं या नहीं, यह जानकारी समय पर वेटरनरी टीम को मिलनी चाहिए, ताकि ज़रूरी हस्तक्षेप किया जा सके। लेकिन जब देखभाल करने वाले स्वयं अनुभवहीन हों, तो ऐसी महत्वपूर्ण सूचनाएं नहीं मिल पातीं, जिससे जानवरों की जान पर बन आती है। इस घटना ने दिल्ली चिड़ियाघर की कार्यप्रणाली और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर कर दिया है। अब यह मांग तेज़ हो गई है कि खाली पड़े पदों को जल्द भरा जाए और अनुभवी स्टाफ की बहाली की जाए, ताकि भविष्य में ऐसी दुखद घटनाएं न दोहराई जाएं।
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