मानसिक दिव्यांग नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी को 12 साल की कैद, कोर्ट ने जताई चिंता
टेन न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली (04 मई 2025); दिल्ली की रोहिणी स्थित पॉक्सो अदालत ने एक मानसिक रूप से दिव्यांग नाबालिग लड़की से दुष्कर्म करने के मामले में दोषी को 12 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने दोषी पर 20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है, जिसे न भरने पर उसे छह महीने की अतिरिक्त जेल भुगतनी होगी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुशील बाला डागर ने सात साल चले इस मुकदमे के बाद यह फैसला सुनाया। अदालत ने इस घटना को यौन वासना का विकृत उदाहरण बताते हुए गहरी चिंता व्यक्त की है, जिसमें यौन सुख की तलाश में मासूम बच्चों को भी नहीं बख्शा जाता।
अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि हर बच्चा, चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि का हो, विशेष देखभाल और सुरक्षा का हकदार है। न्यायाधीश ने 16 वर्षीय पीड़िता के बौद्धिक स्तर का उल्लेख करते हुए बताया कि उसका आईक्यू छह महीने की बच्ची के समान है। इस बात पर जोर दिया गया कि भारत का भविष्य बच्चों पर निर्भर करता है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नाबालिग लड़के और लड़कियों सहित बच्चे आज असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। अदालत ने कहा कि दोषी जैसे लोग यौन उत्पीड़न और शोषण जैसे तरीकों से बच्चों का फायदा उठाते हैं, जो मानवता और समाज के खिलाफ एक अपराध है।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायपालिका, पुलिस और आम जनता सभी का यह कर्तव्य है कि वे प्रत्येक बच्चे को उचित कानूनी सुरक्षा प्रदान करें। अभियोजन पक्ष की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक योगिता कौशिक दहिया ने दोषी के प्रति किसी भी सहानुभूति का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि दोषी का अपना छोटा भाई भी मानसिक रूप से दिव्यांग है, फिर भी उसने पीड़िता के साथ ऐसा घृणित अपराध किया। अभियोजक ने कहा कि दोषी के इस कृत्य से पीड़िता को गहरा अपमान सहना पड़ा है और इसलिए उसे अधिकतम सजा मिलनी चाहिए ताकि समाज में ऐसे अपराध करने की प्रवृत्ति रखने वाले अन्य लोग डरें।
अदालत ने पीड़िता को 10 लाख 50 हजार रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया है। यह घटना फरवरी 2018 में बाहरी दिल्ली में हुई थी, और इस मामले में एक सह-आरोपी अभी भी फरार है। इस फैसले को बच्चों के अधिकारों और उनकी सुरक्षा के प्रति एक महत्वपूर्ण संदेश के रूप में देखा जा रहा है। यह न्यायिक प्रणाली की जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है कि वह कमजोर और असहाय बच्चों को यौन अपराधियों से बचाने के लिए कठोर कदम उठाए।
इस निर्णय से यह उम्मीद जगती है कि यह फैसला समाज में बच्चों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाएगा और ऐसे जघन्य अपराधों को रोकने में सहायक होगा। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि बच्चों का यौन शोषण मानवता के खिलाफ अपराध है और इसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह फैसला न केवल पीड़िता को कुछ हद तक न्याय दिलाएगा बल्कि अन्य संभावित अपराधियों के लिए भी एक निवारक के रूप में काम करेगा।
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