नई दिल्ली (01 मई 2025): दिल्ली सरकार के दिल्ली फार्मास्युटिकल साइंसेज एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी (DPSRU) में वर्ष 2014-15 के दौरान हुई मशीनरी और उपकरणों की खरीद में भारी अनियमितता का मामला सामने आया है। तत्कालीन आम आदमी पार्टी सरकार के कार्यकाल में एक ठेकेदार कंपनी को सात मशीनों और उपकरणों की खरीद के लिए अग्रिम भुगतान कर दिया गया था, लेकिन इनमें से तीन मशीनें अब तक विश्वविद्यालय को नहीं मिली हैं। इस घोटाले के कारण दिल्ली सरकार को 17.59 लाख रुपये का सीधा वित्तीय नुकसान हुआ है। मामले की जांच कर रहे सतर्कता विभाग ने अपनी रिपोर्ट में अनियमितताओं की पुष्टि की, जिसके बाद दिल्ली के मुख्य सचिव धर्मेंद्र कुमार ने सभी विभागों को भविष्य में इस तरह की लापरवाही न दोहराने की सख्त हिदायत दी है।
मुख्य सचिव ने सभी विभागों को जारी किए कड़े निर्देश
मुख्य सचिव ने हाल ही में आदेश जारी कर सभी अतिरिक्त मुख्य सचिवों, प्रधान सचिवों, विभागाध्यक्षों और तकनीकी शिक्षा निदेशालय के अधिकारियों को इस मामले से अवगत कराया है। विशेष रूप से, डीपीएसआरयू के अलावा दिल्ली स्किल एंड एंटरप्रेन्योरशिप यूनिवर्सिटी (DSEU), नेताजी सुभाष यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (NSUT), दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (DTU) और IIIT-Delhi के उप-कुलपतियों को भी इस आदेश की जानकारी दी गई है। इस निर्देश में स्पष्ट किया गया है कि भविष्य में किसी भी सरकारी खरीद प्रक्रिया में निविदा नियमों और अनुबंध शर्तों का सख्ती से पालन किया जाए ताकि ऐसी वित्तीय अनियमितताओं को रोका जा सके।
बोली प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी, प्रशासन भी विफल
आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014-15 में डीपीएसआरयू (तत्कालीन DIPSAR) ने मशीनों और उपकरणों की खरीद के लिए निविदा जारी की थी। सफल बोलीदाता को सरकार ने अग्रिम भुगतान कर दिया था, लेकिन तकनीकी खरीद समिति निविदा नियमों का सही ढंग से पालन नहीं कर पाई। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि तीन मशीनों को एयरपोर्ट अथॉरिटी से जारी ही नहीं कराया जा सका, जिससे यह पूरा मामला और संदिग्ध हो गया। मुख्य सचिव की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि संबंधित प्रशासनिक विभाग मशीनों को समय पर प्राप्त करने में पूरी तरह विफल रहा, जिससे सरकार को वित्तीय नुकसान झेलना पड़ा।
सतर्कता विभाग ने उजागर की लापरवाही, एलजी ने माना गंभीर मामला
इस पूरे मामले की जांच सतर्कता विभाग कर रहा था, जिसकी रिपोर्ट में गंभीर प्रशासनिक लापरवाही का खुलासा हुआ। रिपोर्ट में कहा गया कि ठेकेदार को भुगतान करने से पहले सभी नियमों की जांच नहीं की गई और प्रशासनिक अधिकारियों ने भी प्रक्रिया को सही ढंग से नहीं संभाला। दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने इस अनियमितता को बेहद गंभीर बताते हुए संबंधित अधिकारियों के रवैये को “उदासीन और गैर-जिम्मेदाराना” करार दिया है। उपराज्यपाल कार्यालय से जुड़े सूत्रों ने बताया कि इस मामले में आगे की कार्रवाई पर विचार किया जा रहा है और जिम्मेदार अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
भविष्य में दोहराव रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की तैयारी
दिल्ली सरकार अब इस तरह की वित्तीय गड़बड़ियों को रोकने के लिए नई रणनीति पर काम कर रही है। प्रशासन ने तय किया है कि भविष्य में किसी भी सरकारी खरीद में एडवांस भुगतान की प्रक्रिया पर सख्त निगरानी रखी जाएगी और सभी निविदाओं की थर्ड-पार्टी ऑडिट अनिवार्य की जाएगी। साथ ही, सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि कोई भी उपकरण या मशीन तभी खरीदी जाए जब उसकी सही डिलीवरी और इंस्टॉलेशन की गारंटी हो।
सरकार की छवि पर सवाल, विपक्ष ने साधा निशाना
इस मामले ने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस घोटाले को लेकर आम आदमी पार्टी पर निशाना साधा और मांग की कि इसमें शामिल अधिकारियों और ठेकेदार पर तत्काल कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। भाजपा नेता मनोज तिवारी ने कहा, “यह साफ है कि पिछली सरकार में ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकारी धन लुटाया गया। 10 साल बाद भी मशीनें न मिलना इस बात का प्रमाण है कि यह घोटाला था।”
क्या सरकार दोषियों पर लेगी एक्शन?
अब सवाल यह उठता है कि क्या दिल्ली सरकार इस मामले में दोषियों पर कोई कार्रवाई करेगी? मुख्य सचिव और उपराज्यपाल की सख्त टिप्पणियों के बावजूद अभी तक किसी अधिकारी या ठेकेदार पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। सतर्कता विभाग की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद यह देखना होगा कि क्या यह मामला केवल फाइलों में ही सिमट जाएगा या सरकार वास्तव में दोषियों पर कड़ी कार्रवाई करेगी।
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