ग्रेटर नोएडा शराब के ठेकों का हब, हर सेक्टर में दो-तीन ठेके, समाजसेवियों में आक्रोश
टेन न्यूज़ नेटवर्क
ग्रेटर नोएडा, (29 अप्रैल 2025): ग्रेटर नोएडा, जिसे शिक्षा और औद्योगिक हब के रूप में जाना जाता है, अब एक नई और चिंताजनक पहचान की ओर बढ़ता दिख रहा है, शराब के ठेकों का हब बनने की दिशा में। शहर में अब हर कुछ किलोमीटर की दूरी पर शराब के ठेकों की भरमार देखने को मिल रही है। हालात ऐसे हो गए हैं कि एक ही सेक्टर में दो से तीन शराब के ठेके खुले हुए हैं। सवाल उठता है कि क्या वास्तव में ग्रेटर नोएडा जैसे विकसित होते शहर को इतनी अधिक संख्या में शराब की दुकानों की आवश्यकता है?
इस मुद्दे पर समाजसेवियों और स्थानीय निवासियों ने गहरी चिंता जताई है। उनका कहना है कि जहां शहर को बेहतर सरकारी स्कूलों, अस्पतालों और सार्वजनिक सुविधाओं की जरूरत है, वहां शराब के ठेकों की बेतहाशा बढ़ोतरी समाज को गलत दिशा में धकेल रही है। टेन न्यूज़ नेटवर्क की टीम ने इस ज्वलंत विषय पर एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें विभिन्न पक्षों की राय को सम्मिलित किया गया है।
एमिटी इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, नोएडा के निदेशक प्रोफेसर विवेक कुमार ने टेलीफोन पर बातचीत में बताया कि डेल्टा-1 की साप्ताहिक सब्जी मंडी में एक नया शराब ठेका खोल दिया गया है। इसके अलावा, नॉलेज पार्क जैसे शैक्षणिक क्षेत्रों के बीचोंबीच भी दो शराब की दुकानें खोली गई हैं, जहां देशभर से लाखों छात्र-छात्राएं पढ़ाई के लिए आते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार को केवल राजस्व बढ़ाने की चिंता है या समाज के भविष्य की भी कोई जिम्मेदारी है? प्रोफेसर कुमार ने कहा कि संस्कार किसी दुकान से नहीं मिलते, ये संघ जैसी संस्थाओं की शाखाओं में मिलते हैं, जहां आज के युवा जाने से कतराते हैं।
इसी मुद्दे पर सेक्टर डेल्टा-1 के आरडब्ल्यूए अध्यक्ष जितेंद्र भाटी ने टेन न्यूज़ नेटवर्क से बातचीत करते हुए बताया कि साप्ताहिक मंडी में शराब का ठेका खुलने से क्षेत्रवासियों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। कई बार विरोध प्रदर्शन करने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। उन्होंने प्रशासन से मांग की है कि इस ठेके को किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया जाए।
टेन न्यूज़ नेटवर्क की टीम ने इस विषय पर गौतमबुद्ध नगर के आबकारी विभाग अधिकारी सुबोध कुमार श्रीवास्तव से संपर्क साधने का प्रयास किया, लेकिन खबर लिखे जाने तक उनसे बातचीत नहीं हो सकी। जैसे ही उनका पक्ष सामने आएगा, उसे भी इस रिपोर्ट में जोड़ा जाएगा।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि जब ग्रेटर नोएडा जैसे अंतरराष्ट्रीय शिक्षा केंद्र में विदेशों से छात्र शिक्षा ग्रहण करने आते हैं, तो उनके सामने किताबों की दुकानों की जगह शराब की दुकानों का होना समाज को किस दिशा में ले जाएगा? क्या सरकार और प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती कि रिहायशी और शैक्षणिक क्षेत्रों में शराब के ठेकों की संख्या सीमित रखी जाए?
ग्रेटर नोएडा के निवासियों और समाजसेवियों की यह मांग अब और भी तेज होती जा रही है कि शराब की दुकानों पर नियंत्रण लगाया जाए और विकास के नाम पर सामाजिक पतन को रोका जाए।
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