मेधा पाटकर को दिल्ली पुलिस ने किया गिरफ्तार, वीके सक्सेना मानहानि मामले में 24 साल बाद कार्रवाई

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (25 अप्रैल 2025): दिल्ली पुलिस ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को शुक्रवार सुबह गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारी उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा 24 साल पहले दायर किए गए मानहानि केस में हुई है। पुलिस ने उन्हें निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन से पकड़ा और साकेत कोर्ट में पेश करने की तैयारी की। कोर्ट ने 23 अप्रैल को उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था। डीसीपी (साउथ ईस्ट) रवि कुमार सिंह ने गिरफ्तारी की पुष्टि की है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि पाटकर कोर्ट की सजा और शर्तों का पालन नहीं कर रही थीं। इसलिए कानूनन यह गिरफ्तारी जरूरी हो गई थी।

दिल्ली की साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशंस जज विशाल सिंह ने पाटकर के खिलाफ यह सख्त कदम उठाया। कोर्ट ने कहा कि पाटकर न तो 25,000 रुपये का बॉन्ड भर सकीं और न ही एक लाख रुपये का मुआवजा अदा किया। मई 2024 में उन्हें पांच महीने की कैद और जुर्माने की सजा सुनाई गई थी। 8 अप्रैल को कोर्ट ने उनकी सजा पर रोक की याचिका खारिज कर दी थी। उन्हें 23 अप्रैल तक सभी शर्तें पूरी करने का समय दिया गया था। लेकिन कोर्ट के अनुसार, उन्होंने जानबूझकर आदेशों की अनदेखी की। इसीलिए कोर्ट को वारंट जारी करना पड़ा।

जज विशाल सिंह ने मेधा पाटकर की याचिका को “ओछी और शरारतपूर्ण” बताते हुए सख्त टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि दोषी ने अदालत को गुमराह करने की कोशिश की और सजा से बचने के लिए कोर्ट से दूरी बनाई। अदालत का कहना है कि अगर पाटकर अगली सुनवाई तक आदेशों का पालन नहीं करतीं, तो सजा पर पुनर्विचार किया जाएगा। जज ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर के माध्यम से वारंट जारी करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने साफ किया कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। अब यह देखना होगा कि आगे की सुनवाई में क्या रुख अपनाया जाता है।

यह मामला साल 2000 का है, जब वीके सक्सेना ने नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष रहते हुए मेधा पाटकर पर मानहानि का केस दर्ज कराया था। पाटकर ने 24 नवंबर 2000 को एक प्रेस रिलीज जारी की थी, जिसमें सक्सेना को ‘कायर’ कहा गया था। साथ ही उन्होंने हवाला लेन-देन में उनकी संलिप्तता का भी आरोप लगाया था। कोर्ट ने माना कि यह बयान सक्सेना की छवि खराब करने के इरादे से दिया गया था। इन आरोपों को न सिर्फ झूठा बताया गया, बल्कि इन्हें बदनाम करने की रणनीति का हिस्सा माना गया।

पिछले साल 24 मई को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने इस मामले में मेधा पाटकर को दोषी ठहराया था। अदालत ने कहा कि उनके बयान मानहानिकारक थे और इनका कोई कानूनी या तथ्यात्मक आधार नहीं था। पाटकर को इस आधार पर सजा सुनाई गई थी, लेकिन उन्होंने अब तक उसका पालन नहीं किया। यही कारण है कि न्यायालय को अब सख्ती दिखानी पड़ी। इस गिरफ्तारी से यह संकेत मिला है कि कानून की अवहेलना करने वालों के खिलाफ कार्रवाई तय है, चाहे मामला कितना भी पुराना क्यों न हो। अब सबकी नजरें कोर्ट की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं।


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