नई दिल्ली (25 अप्रैल 2025): जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में छात्रसंघ चुनाव का आयोजन शुक्रवार को किया जा रहा है। पूरे परिसर में चुनावी उत्साह चरम पर है। इस बार चार केंद्रीय पदों के लिए कुल 29 उम्मीदवार मैदान में हैं। वहीं 16 स्कूलों के 42 काउंसलर पदों के लिए 120 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मतदान दो पालियों में सुबह 9 से दोपहर 1 और दोपहर 2:30 से शाम 5:30 बजे तक होगा। चुनाव बैलेट पेपर के जरिए कराया जाएगा। मतगणना रात 9 बजे से शुरू होगी और परिणाम 28 अप्रैल को घोषित किए जाएंगे।
अध्यक्ष पद की लड़ाई सबसे रोचक बन गई है जिसमें 13 उम्मीदवार भाग ले रहे हैं। खास बात यह है कि दो उम्मीदवारों का नाम एक ही नीतीश कुमार है। इसको लेकर आइसा ने एबीवीपी पर डमी उम्मीदवार उतारने का आरोप लगाया है। आइसा और डीएसएफ के समर्थन से नीतीश कुमार (पीएचडी) को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनाया गया है। उपाध्यक्ष पद के लिए 5, सचिव के लिए 6 और संयुक्त सचिव के लिए 5 उम्मीदवार मैदान में हैं। चुनाव में छात्र संगठनों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। अध्यक्ष पद पर वोटों का बंटवारा भी एक बड़ी चुनौती बन सकता है।
इस बार चुनाव के लिए कुल 7906 छात्र मतदाता पंजीकृत हैं। इनमें से 43% महिला और 57% पुरुष छात्र हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने मतदान के लिए चार केंद्र स्थापित किए हैं स्कूल ऑफ लैंग्वेज, स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, स्कूल ऑफ सोशल साइंस-1 और स्कूल ऑफ सोशल साइंस-2। सुरक्षा के मद्देनजर 400 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं। परिसर में शांतिपूर्ण मतदान सुनिश्चित करने के लिए कड़े निर्देश जारी किए गए हैं। छात्रों में पहले से अधिक जागरूकता देखी जा रही है। मतदान प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष रखने की हरसंभव कोशिश की जा रही है।
आइसा और डीएसएफ ने एक बार फिर मिलकर साझा पैनल उतारा है। उन्होंने अध्यक्ष पद के लिए नीतीश कुमार (पीएचडी), उपाध्यक्ष के लिए मनीषा, सचिव के लिए मुंतहा फातिमा और संयुक्त सचिव के लिए नरेश को उम्मीदवार घोषित किया है। इनका एजेंडा है सामाजिक न्याय, निजीकरण विरोध, एनईपी का विरोध, लैंगिक और दिव्यांग-अनुकूल परिसर की मांग। यह गठबंधन कैंपस में प्रगतिशील विचारधारा का प्रतिनिधित्व कर रहा है। प्रचार में वैचारिक बहस को प्रमुखता दी गई है। छात्रों से नीतिगत मुद्दों पर बातचीत की जा रही है।
इस बार वाम संगठनों में बिखराव देखा गया है। पिछले चुनाव में आइसा, डीएसएफ, एआईएसएफ और एसएफआई एक साथ लड़े थे। इस बार बापसा, एआईएसएफ, एसएफआई और प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स एसोसिएशन (पीएसए) ने अलग मोर्चा बनाया है। इन संगठनों ने अध्यक्ष पद के लिए तैय्यबा अहमद, उपाध्यक्ष के लिए संतोष कुमार, सचिव के लिए रामनिवास गुर्जर और संयुक्त सचिव के लिए निगम कुमारी को मैदान में उतारा है। गठबंधन के अलग-अलग स्वरूपों से वोट बंटने की आशंका जताई जा रही है। यह खेमेबंदी छात्र राजनीति में नई दिशा तय कर सकती है। मतदाताओं की प्रतिक्रिया इनका भविष्य तय करेगी।
एबीवीपी ने अध्यक्ष पद के लिए शिखा स्वराज, उपाध्यक्ष के लिए निट्टू गौतम, सचिव के लिए कुणाल राय और संयुक्त सचिव के लिए वैभव मीणा को उम्मीदवार बनाया है। उनका एजेंडा राष्ट्रवाद, प्रशासनिक पारदर्शिता, छात्र सुविधाएं और कैंपस में अनुशासन को बढ़ावा देना है। एबीवीपी ने प्रचार में पोस्टर, रैली और जनसंपर्क अभियानों पर जोर दिया है। वे छात्रसंघ को विकास का मंच बनाने की बात कह रहे हैं। उनके समर्थक सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं। आइसा के आरोपों के जवाब में उन्होंने अपने उम्मीदवारों का बचाव किया है।
एनएसयूआई ने कांग्रेस समर्थित पैनल के रूप में चुनाव में ताल ठोकी है। अध्यक्ष पद के लिए प्रदीप ढाका, उपाध्यक्ष के लिए मोहम्मद कैफ, सचिव के लिए अरुण प्रताप और संयुक्त सचिव के लिए सलोनी खंडेलवाल को मैदान में उतारा गया है। एनएसयूआई ने समान अवसर, शिक्षा का अधिकार और छात्र कल्याण को प्राथमिकता में रखा है। उनका प्रचार ‘सबका कैंपस, सबकी आवाज़’ नारे के साथ आगे बढ़ रहा है। वे वैकल्पिक छात्र राजनीति को स्थापित करने की कोशिश में हैं। छात्रों में उनकी छवि संतुलित और व्यावहारिक संगठन की है। मध्यमार्गी मतदाता इन्हें समर्थन दे सकते हैं।
चुनाव के प्रमुख मुद्दों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध, निजीकरण, आरक्षण की बहाली, प्रवेश परीक्षा की वापसी, मेस शुल्क में बढ़ोतरी का विरोध और स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं। छात्र दिव्यांग और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के लिए समावेशी परिसर की मांग कर रहे हैं। रेलवे आरक्षण केंद्र जैसी बुनियादी सुविधाएं भी छात्रों की प्राथमिकता में हैं। कैंपस में सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता का मुद्दा भी प्रमुख बना हुआ है। सभी संगठनों ने इन मुद्दों को अपने घोषणापत्र में शामिल किया है। छात्र इन मुद्दों को लेकर जागरूक होकर मतदान करेंगे। विचारधारा से अधिक मुद्दे इस बार निर्णायक हो सकते हैं।
डिबेट्स, ओपन मंच और नुक्कड़ सभाओं के ज़रिए उम्मीदवारों ने अपने विचार सामने रखे हैं। इस बार प्रचार में डिजिटल माध्यम की भी अहम भूमिका रही है। पहली बार मतदान कर रहे छात्रों में उत्साह साफ देखा गया है। कुछ छात्रों ने स्वतंत्र रूप से भी उम्मीदवारों का समर्थन किया है। सोशल मीडिया, इंस्टाग्राम लाइव और पोस्ट्स से चुनावी माहौल को और तीखा बनाया गया। छात्रसंघ चुनाव जेएनयू की वैचारिक विविधता का प्रतिबिंब बन गया है। छात्रों की हिस्सेदारी लोकतंत्र की गहराई को दर्शाती है।
28 अप्रैल को जेएनयू छात्रसंघ के चार अहम पदों का परिणाम आ जाएगा। यह परिणाम कैंपस की भावी दिशा तय करेगा। सभी प्रमुख संगठन अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं। प्रशासन की कोशिश है कि निष्पक्ष और शांतिपूर्ण प्रक्रिया के साथ चुनाव संपन्न हो। छात्र समुदाय भी चुनाव को लोकतंत्र के उत्सव की तरह देख रहा है। नतीजे आने के बाद जेएनयू की छात्र राजनीति की नई तस्वीर सामने आएगी। यह चुनाव देश भर में छात्र राजनीति के लिए मिसाल बन सकता है।।
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