नई दिल्ली (22 अप्रैल 2025): दिल्ली में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लेकर आयोजित जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) की बैठक में भाजपा सांसद कमलजीत सहरावत ने इस विचार को देश के संविधान की मूल भावना बताया। उन्होंने कहा कि जब भारत आजाद हुआ था, तब 1952 से 1967 तक इसी नीति पर चुनाव होते थे और देश स्थिरता की दिशा में बढ़ रहा था। लेकिन 1967 के बाद तत्कालीन सरकार की नीतिगत भूलों की वजह से यह प्रणाली टूट गई और देश को अलग-अलग चुनावों की ओर बढ़ना पड़ा, जिससे न केवल व्यवस्था में विघटन हुआ बल्कि संसाधनों पर भी भारी बोझ पड़ा।
कमलजीत सहरावत ने कहा कि पिछले 30 वर्षों में हर वर्ष किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव या लोकसभा चुनाव होते रहते हैं। इसका असर न केवल शासन व्यवस्था पर पड़ता है बल्कि आम जनता की चुनावों में दिलचस्पी भी कम हो रही है। बार-बार चुनाव होने से प्रशासनिक मशीनरी और आर्थिक संसाधनों पर भी भारी दबाव पड़ता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बार-बार के चुनावों की वजह से विकास कार्यों में रुकावट आती है और राजनीतिक अस्थिरता भी बनी रहती है।
भाजपा सांसद ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को आज के भारत की जरूरत बताया और कहा कि जेपीसी ने इस विषय पर विभिन्न पक्षों से सुझाव लिए हैं। साथ ही, आगे भी जनता के बीच जाकर उनकी राय ली जाएगी ताकि इस नीति को व्यापक समर्थन मिल सके। उन्होंने कहा कि यह बहुत अच्छा प्रयास है और इससे देश को स्थिरता, सुशासन और पारदर्शिता की दिशा में मजबूती मिलेगी। उनका मानना है कि देश को फिर से उस व्यवस्था की ओर लौटना चाहिए जो शुरू में अपनाई गई थी और जो भारत के लोकतंत्र को एक नई दिशा देने में सक्षम है।
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