सुप्रीम कोर्ट की आलोचना पर लगाम लगाने की अपील, SCBA के पूर्व अध्यक्ष ने पीएम को लिखा पत्र

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली, (20 अप्रैल 2025): सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के चेयरमैन डॉ. आदीश सी. अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक कड़े शब्दों वाला पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट की हालिया आलोचना पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की उस टिप्पणी की निंदा की है जिसमें दुबे ने कहा था, “अगर सुप्रीम कोर्ट को ही कानून बनाना है तो संसद को बंद कर देना चाहिए।” डॉ. अग्रवाल ने इस बयान को बेहद चौंकाने वाला और न्यायपालिका की साख को ठेस पहुंचाने वाला बताया।

अपने पत्र में डॉ. अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि ऐसे बयान न केवल देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था की गरिमा को प्रभावित करते हैं, बल्कि आम जनता में संस्थाओं को लेकर भ्रम और अविश्वास भी पैदा कर सकते हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2023 में दिए गए दो ऐतिहासिक निर्णयों—पंजाब राज्य बनाम पंजाब के राज्यपाल के प्रधान सचिव और तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल—का हवाला देते हुए कहा कि न्यायालय ने इन मामलों में संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 की व्याख्या करते हुए यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया कि राज्यपाल और राष्ट्रपति विधेयकों को लेकर अनिश्चितकालीन देरी न करें।

इन निर्णयों में कोर्ट ने तीन महीने की तर्कसंगत समयसीमा निर्धारित की है, जिसके बाद विधेयक को स्वीकृत माना जाएगा (deemed assent)। डॉ. अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि इसे किसी भी दृष्टि से न्यायिक अतिक्रमण नहीं माना जा सकता, क्योंकि कोर्ट ने राष्ट्रपति या राज्यपाल को कोई बाध्यकारी आदेश नहीं दिया, बल्कि केवल विधायी प्रक्रिया को प्रभावी और समयबद्ध बनाए रखने का मार्ग प्रशस्त किया है।

उन्होंने यह भी कहा कि यदि केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के किसी निर्णय से असहमति है, तो उसके पास संसद के माध्यम से कानून में संशोधन करने का संवैधानिक अधिकार है। लेकिन ऐसे मामलों में न्यायपालिका की सार्वजनिक आलोचना करना न केवल अनुचित है, बल्कि यह कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन को भी प्रभावित करता है।

डॉ. अग्रवाल ने प्रधानमंत्री से अपील की कि वे सत्तारूढ़ दल के नेताओं को ऐसे बयानों से परहेज़ करने की सलाह दें, जो संवैधानिक संस्थाओं के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। उन्होंने पत्र का समापन इस अपील के साथ किया कि लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने और संस्थाओं में जनता का विश्वास मजबूत करने के लिए सभी को जिम्मेदारीपूर्ण आचरण करना चाहिए।

यह पत्र ऐसे समय में आया है जब देश में विभिन्न संवैधानिक मुद्दों को लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संवाद और संतुलन की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महसूस की जा रही है।।


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