सिर्फ चुनाव नहीं मुद्दों में भी NDA से हार रहा ‘इंडिया’, दो दिन में कैसे विपक्ष पर हावी हो गई सरकार
टेन न्यूज नेटवर्क
नई दिल्ली (08 दिसंबर 2024): पिछली कुछ महीने बीजेपी के लिए सियासी तौर पर काफी फायदेमंद रहे हैं, लोकसभा चुनाव में जो झटके पार्टी को मिले थे, ऐसा लग रहा है अब वो उनसे उबर चुकी है।
इसका सबसे बड़ा कारण रहा हरियाणा चुनाव में मिली अप्रत्याशित जीत, उसके बाद जम्मू कश्मीर में भी पार्टी ने अपना प्रदर्शन बेहतर किया, फिर महाराष्ट्र में तो सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए प्रचंड जनादेश हासिल किया।
इसके ऊपर अब सदन में जब कई दिनों तक अडानी मुद्दे की वजह से कार्यवाही नहीं चल पा रही थी, वहां भी अब नोट कांड ने बीजेपी को इम्यूनिटी प्रदान कर दी है। कहना गलत नहीं होगा कि चुनाव में भी और सदन में भी बीजेपी, इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ती दिख रही है।
नोट कांड और बीजेपी को मिली इम्युनिटी
अगर हाल ही में हुई सबसे बड़ी विवादित घटना की बात करें तो राज्यसभा में कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी की सीट के नीचे नोटों की गड्डी मिल गई। उन पैसों के मिलने से जबरदस्त बवाल देखने को मिला, बीजेपी की तरफ से गंभीर आरोप लग गए। अभी इस मामले में जांच का आदेश दिया गया है, ऐसे में आने वाले दिनों में भी हंगामे के आसार हैं।
फेवरेट राष्ट्रवाद का मुद्दा फिर हाथ लगा
इसके ऊपर एनडीए के पास इस समय एक और मुद्दा आ चुका है। ऑर्गेनाइज्ड क्राईम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट की जो रिपोर्ट सामने आई थी, उसे लेकर फ्रांस के अखबार ने दावा कर दिया कि वो पक्षपात करने वाली है और किसी भी सूरत में न्यूट्रल दिखाई नहीं पड़ती। अब यही मुद्दा देश की सदन में भी उठ चुका है। बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने आरोप लगा दिया है कि विपक्ष के कई बड़े नेता भारत को अस्थिर करने के लिए दूसरी विदेशी ताकतों का इस्तेमाल कर रहे हैं। तर्क तो यहां तक दिए गए हैं कि जब भी देश में सदन शुरू होने वाला होता है, तभी कोई ना कोई विदेशी संस्थान द्वारा भारत की छवि खराब करने के लिए फर्जी रिपोर्ट जारी कर दी जाती है।
सदन में एनडीए ने कैसे किया कमबैक?
बड़ी बात यह है कि सरकार को यह मुद्दे उस समय हाथ लगे हैं जब वो सबसे बड़े सियासी संकट से जूझ रही थी। एक तरफ अडानी मुद्दे ने राहुल गांधी को आक्रमक कर दिया था तो दूसरी तरफ संभल मुद्दा उठाकर अखिलेश यादव भी तेवर दिखा रहे थे। ममता की पार्टी मणिपुर में लगातार जारी हिंसा का मुद्दा उठाकर सरकार को घेर रही थी। दूसरी तरफ पिछले कुछ दिनों सरकार डिफेंसिव मोड में थी, उसके पास कोई मुद्दा नजर नहीं आ रहा था। हाल के चुनावों में मिली अप्रत्याशित जीत भी उसे फायदा नहीं दे पा रही थी।
राष्ट्रवाद और भ्रष्टाचार, फिर फंस गया इंडिया
लेकिन दो मुद्दों ने सरकार को फिर ड्राइविंग सीट पर ला दिया है। एक तरफ विदेशी ताकतों द्वारा बदनाम करने वाला नेरेटिव फिर जोर पकड़ रहा है तो दूसरी तरफ नोट कांड ने भ्रष्टाचार की पिच पर मोदी सरकार को खेलने का एक और मौका दे दिया है। इतिहास गवाह है जब भी यह मुद्दे उठते हैं, बीजेपी जरूरत से ज्यादा आक्रमक हो जाती है। एक मुद्दे से अगर राष्ट्रवाद वाले नेरेटिव को धार मिलती है तो दूसरे मुद्दे के जरिए खुद को कट्टर ईमानदार और दूसरे को भ्रष्टाचारी बताने में मदद मिलती है।
मुद्दों में भी पिछड़ रहा विपक्ष?
अभी के लिए विपक्ष का तर्क है कि सिंघवी वाले मामले में तो बहस नहीं हो सकती क्योंकि इसमें जांच जारी है। लेकिन बीजेपी का लॉजिक भी साफ दिख रहा है, इस नजरिए से तो अडानी मुद्दे पर भी हंगामा नहीं होना चाहिए क्योंकि वहां भी जांच जारी है। जानकार मानते है कि इसी वजह से इंडिया गठबंधन अब एक तरह के अपने ही बनाए चक्रव्यूह में फंस चुका है। एक तरफ उसके पास कोई मुद्दा नजर नहीं आ रहा दूसरी तरफ सरकार के पास घेरने के लिए उतने ही नए मुद्दे बनते दिख रहे हैं। यानी कि इंडिया गठबंधन सिर्फ चुनावों में नहीं हार रहा, वर्तमान स्थिति में तो मुद्दों के लिहाज से भी काफी पिछड़ता हुआ दिखाई दे रहा है।।
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