नई दिल्ली (28 फरवरी 2025): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की स्नातकीय डिग्री के खुलासे को लेकर चल रहे विवाद में दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। यह याचिका केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड की जांच की अनुमति दी गई थी। दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में दलील दी कि विश्वविद्यालय के लिए अदालत को डिग्री दिखाने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को बताया कि प्रधानमंत्री की डिग्री से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करने की मांग केवल “जिज्ञासा” के आधार पर की जा रही है, जो आरटीआई कानून के तहत वैध नहीं है। उन्होंने कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के पास हर वर्ष का रिकॉर्ड मौजूद है और विश्वविद्यालय में कोई जानकारी छिपाई नहीं जा रही है। हालांकि, विश्वविद्यालय को इस जानकारी को किसी भी अजनबी को देने में ऐतराज है। इस मामले पर उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान डीयू ने सीआईसी के आदेश को रद्द करने की वकालत की। निजता के अधिकार पर जोर देते हुए तुषार मेहता ने कहा कि किसी व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता से संबंधित जानकारी को सार्वजनिक करना अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षित निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) के पुट्टास्वामी वाद का हवाला देते हुए कहा कि निजता का अधिकार, जानने के अधिकार से ऊपर है। उन्होंने तर्क दिया कि आरटीआई एक्ट के प्रावधानों के अनुसार किसी व्यक्ति की निजी जानकारी को उसके बिना सहमति साझा नहीं किया जा सकता।
दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान महान्यायभिकर्ता (सॉलिसिटर जनरल) ने तर्क दिया कि यह मामला केवल डिग्री की जानकारी मांगने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक मकसद भी हो सकते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर कोई पुलिस को गुप्त सूचना देता है और 20 साल बाद उस व्यक्ति की पहचान उजागर कर दी जाती है, तो क्या यह उसके जीवन की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं होगा? इसी तर्ज पर प्रधानमंत्री की डिग्री को सार्वजनिक करना भी उनके निजता के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
गौरतलब है कि यह मामला 2016 में उस समय शुरू हुआ जब नीरज नाम के एक व्यक्ति ने आरटीआई (RTI) अर्जी दाखिल कर प्रधानमंत्री मोदी की स्नातक डिग्री से जुड़ी जानकारी मांगी। इसके बाद, केंद्रीय सूचना आयोग ने 21 दिसंबर 2016 को आदेश दिया कि 1978 में बीए(BA) परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों के रिकॉर्ड की जांच की जा सकती है। इस पर दिल्ली विश्वविद्यालय ने 2017 में उच्च न्यायालय का रुख किया और सीआईसी के आदेश पर रोक लगवा दी थी। डीयू की ओर से कोर्ट में दलील दी गई कि विश्वविद्यालय इस जानकारी का संरक्षक है और यह निजी सूचना के दायरे में आती है। इसलिए, इसे केवल सार्वजनिक जिज्ञासा के आधार पर नहीं दिया जा सकता। डीयू ने यह भी कहा कि इस जानकारी को सार्वजनिक करने से कोई व्यापक जनहित नहीं जुड़ा है, बल्कि इसे राजनीतिक मकसद से मांगा जा रहा है। सभी पक्षों की दलीलें पूरी हो चुकी हैं, दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।।
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