महाशिवरात्रि और शिव-पार्वती विवाह, आध्यात्मिक सत्य या प्रतीकात्मक संदेश
टेन न्यूज नेटवर्क
ग्रेटर नोएडा (26 फरवरी 2025): महाशिवरात्रि का पावन पर्व आज धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस पर्व को शिव और पार्वती के विवाह उत्सव के रूप में देखा जाता है। लेकिन क्या सच में इस दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था, या यह एक गहरे आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक संदेश का प्रतिनिधित्व करता है?
धार्मिक ग्रंथों और अध्यात्मिक दृष्टिकोण से इस विषय पर कई विचार सामने आते हैं। इस संदर्भ में विद्वानों का मानना है कि शिव और पार्वती केवल एक दिव्य युगल नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय तत्वों के प्रतीक हैं।
शिव-पार्वती विवाह: एक आध्यात्मिक प्रतीक
भारतीय आध्यात्म एवं दर्शन की विद्वान डॉ. वंदना शर्मा के अनुसार, शिव और पार्वती को किसी पुरुष और स्त्री के रूप में देखना एक सामान्य गलतफहमी हो सकती है। वास्तव में, शिव और पार्वती किसी भौतिक व्यक्तित्व के बजाय ब्रह्मांडीय तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिव को सृजन, संहार और नियंत्रण की शक्ति के रूप में देखा जाता है, जबकि पार्वती स्वयं प्रकृति हैं।
संस्कृत भाषा में ‘पति’ शब्द का अर्थ केवल ‘हसबैंड’ नहीं होता, बल्कि यह नेतृत्व और नियंत्रण का प्रतीक भी होता है। उदाहरण के लिए, ‘राष्ट्रपति’ राष्ट्र का संचालन करता है, ‘पशुपति’ सभी जीवों के स्वामी होते हैं, और ‘सेनापति’ सेना का नेतृत्व करता है। इसी प्रकार, शिव को ‘प्रकृति’ के नियंत्रक के रूप में देखा जाता है, और इसीलिए वे ‘पार्वती के पति’ कहलाते हैं।
इस दृष्टि से, शिव और पार्वती के विवाह का अर्थ केवल एक दैवीय विवाह नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि प्रकृति (पार्वती) पूर्ण रूप से पुरुष तत्व (शिव) को समर्पित होती है। यह संबंध वैसा ही है जैसा प्रजा का अपने राजा से होता है—जहाँ प्रजा राजा के आदेशों का पालन करती है और खुदको राजा को समर्पण करती है । महाशिवरात्रि का यह संदेश हमें आत्मिक और ब्रह्मांडीय संतुलन को समझने की प्रेरणा देता है।
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक संदेश
महाशिवरात्रि केवल शिव और पार्वती के विवाह का पर्व नहीं है, बल्कि यह आत्मिक और ब्रह्मांडीय संतुलन को समझने की प्रेरणा भी देता है। इस दिन को आध्यात्मिक जागरूकता, ध्यान और शिव तत्व के साथ एकाकार होने का शुभ अवसर माना जाता है।
श्रद्धालु इस दिन व्रत रखते हैं, रात्रि जागरण करते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन शिव की पूजा करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और व्यक्ति को आत्मिक शांति प्राप्त होती है।
शिवरात्रि का महत्व और उपवास की परंपरा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखने से मन और शरीर दोनों शुद्ध होते हैं। इस दिन रात्रि जागरण करने और शिवलिंग का जलाभिषेक करने का विशेष महत्व होता है। भक्त बेलपत्र, धतूरा और भांग अर्पित कर शिवजी का पूजन करते हैं। अध्यात्मिक दृष्टि से यह पर्व हमें यह सिखाता है कि शिव और शक्ति का मिलन संपूर्ण सृष्टि के संतुलन का प्रतीक है। यह आत्मा और परमात्मा के एकाकार होने का भी प्रतीक है।
महाशिवरात्रि केवल एक पौराणिक कथा से जुड़ा पर्व नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन और ब्रह्मांड के गहरे रहस्यों को समझने का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि शिव और पार्वती का मिलन केवल एक दैवीय विवाह नहीं, बल्कि सृष्टि के दो महत्वपूर्ण तत्वों का संतुलन है, जो समस्त जगत को संचालित करता है। इस अवसर पर श्रद्धालु पूरे उत्साह के साथ शिव की भक्ति में लीन होकर इस पवित्र पर्व को मना रहे हैं और आत्मिक शांति तथा समृद्धि की कामना कर रहे हैं।
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