दिल्ली में सरकार गठन का इतिहास: प्रारंभ से अब तक की यात्रा | टेन न्यूज विशेष

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (15 फरवरी 2025): दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के परिणाम घोषित हो चुके हैं, और अब सरकार गठन को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। नई सरकार में मुख्यमंत्री कौन होगा, उपमुख्यमंत्री कौन बनेगा, और कैबिनेट में किन चेहरों को जगह मिलेगी, इस पर सियासी हलचल बढ़ गई है। लेकिन इससे पहले यह जानना जरूरी है कि दिल्ली में सरकार गठन का इतिहास क्या रहा है और इस प्रक्रिया में क्या विशेषताएं हैं।

दिल्ली में सरकार गठन की प्रक्रिया

दिल्ली में सरकार गठन की प्रक्रिया अन्य राज्यों की तरह ही होती है, लेकिन कुछ विशेष नियम भी लागू होते हैं। दिल्ली, केंद्र शासित प्रदेश होने के बावजूद, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) के रूप में कार्य करता है। यहां 70 सीटों वाली विधानसभा है, जिसमें बहुमत प्राप्त करने वाली पार्टी सरकार बनाती है। हालांकि, दिल्ली के प्रशासन में उपराज्यपाल (LG) की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि वे केंद्र सरकार के प्रतिनिधि होते हैं और कानून-व्यवस्था, भूमि, और पुलिस पर सीधा नियंत्रण रखते हैं।

दिल्ली का प्रशासन: ब्रिटिश काल से स्वतंत्रता तक

दिल्ली का प्रशासनिक ढांचा ब्रिटिश शासन के दौरान कई बदलावों से गुजरा। 1803 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली को अपने नियंत्रण में लिया और इसे मुगल दरबार में ‘रेजिडेंट’ का दर्जा दिया। 1857 के विद्रोह के बाद, दिल्ली को पूरी तरह ब्रिटिश भारत में मिला दिया गया और इसे पंजाब प्रांत के अधीन एक डिवीजन बना दिया गया, जिसका प्रशासनिक प्रमुख ‘रेजिडेंट कमिश्नर’ होता था।

1911 में ब्रिटिश सरकार ने देश की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित कर दी। इसके बाद 1919 में दिल्ली को पंजाब प्रांत से अलग किया गया और इसे सीधे वायसराय के अधीन कर दिया गया। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, दिल्ली का प्रशासनिक नियंत्रण प्रधानमंत्री के नेतृत्व में आ गया।

दिल्ली में विधानसभा का गठन और मुख्यमंत्री का इतिहास

1950 में संविधान लागू होने के बाद, दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में मान्यता मिली। इसके तहत ‘पार्ट सी स्टेट्स एक्ट, 1951’ के जरिए 48 सदस्यों वाली विधानसभा बनाई गई और 1952 में पहला चुनाव हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस ने 39 सीटों पर जीत हासिल की और 17 मार्च 1952 को चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने। हालांकि, उनके कार्यकाल के दौरान प्रशासनिक अधिकारों को लेकर टकराव बढ़ गया, जिसके चलते 1956 में दिल्ली की विधानसभा को भंग कर दिया गया और इसे पूरी तरह केंद्र के अधीन कर दिया गया।

इसके बाद 1966 में ‘दिल्ली प्रशासन अधिनियम’ लागू किया गया, जिसके तहत विधानसभा की जगह ‘मेट्रोपॉलिटन काउंसिल’ बनाई गई। इस काउंसिल में 56 निर्वाचित और 5 मनोनीत सदस्य होते थे, लेकिन इसे सिर्फ उपराज्यपाल को सलाह देने का अधिकार था। 1989 तक इस व्यवस्था के तहत दिल्ली का प्रशासन चला।

दिल्ली को विशेष राज्य का दर्जा और विधानसभा की बहाली (1991-1993)

69वें संविधान संशोधन (1991) के तहत ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991’ लागू किया गया। इसके तहत दिल्ली को सीमित अधिकारों वाली विधानसभा दी गई और 1993 में फिर से चुनाव हुए। इस चुनाव में बीजेपी को बहुमत मिला और 2 दिसंबर 1993 को मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने।

1995 में हवाला कांड के चलते मदनलाल खुराना को इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री बने। 1998 में बीजेपी ने चुनाव के कुछ दिन पहले सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन कांग्रेस की शीला दीक्षित ने बड़ी जीत दर्ज की और दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुईं।

शीला दीक्षित का 15 साल का स्वर्णिम कार्यकाल (1998-2013)

1998 के विधानसभा चुनाव में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने 52 सीटों पर जीत दर्ज की और दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। उनके कार्यकाल में दिल्ली का बुनियादी ढांचा काफी मजबूत हुआ। फ्लाईओवरों का निर्माण, दिल्ली मेट्रो की शुरुआत, सड़क व्यवस्था में सुधार, और सीएनजी गाड़ियों का विस्तार उनकी प्रमुख उपलब्धियों में शामिल हैं।

2003 और 2008 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने जीत हासिल की और शीला दीक्षित ने लगातार तीन बार मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। हालांकि, 2013 में अन्ना आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी (AAP) के उदय ने कांग्रेस की सत्ता को हिला दिया।

अरविंद केजरीवाल का उभार और दिल्ली की नई राजनीति (2013-2025)

2013 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 28 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी 32 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। कांग्रेस के 8 विधायकों के समर्थन से अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने, लेकिन 49 दिन बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने प्रचंड बहुमत हासिल करते हुए 70 में से 67 सीटें जीत लीं। अरविंद केजरीवाल फिर से मुख्यमंत्री बने और दिल्ली में कई नई योजनाओं की शुरुआत की, जिसमें मुफ्त बिजली-पानी, मोहल्ला क्लीनिक और शिक्षा सुधार शामिल रहे।

2020 में भी आम आदमी पार्टी ने 62 सीटों पर जबरदस्त जीत दर्ज की और अरविंद केजरीवाल लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। लेकिन 2024 में शराब नीति घोटाले के चलते केजरीवाल समेत कई आप नेताओं पर आरोप लगे और उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया। 21 सितंबर 2024 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद आतिशी को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाया गया।

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: कौन होगा अगला मुख्यमंत्री?

2025 के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने 48 सीटों पर शानदार जीत दर्ज की। आम आदमी पार्टी को 22 सीटें और कांग्रेस को 0 सीटें मिलीं। बीजेपी की जीत के बाद अब यह चर्चा तेज हो गई है कि दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा।

दिल्ली की राजनीति में कई उतार-चढ़ाव आए हैं, लेकिन इस बार बीजेपी की जीत ने दिल्ली की सत्ता की दिशा बदल दी है। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में बीजेपी किसे मुख्यमंत्री बनाती है और दिल्ली के विकास को किस दिशा में आगे बढ़ाया जाता है।।

(रिपोर्ट: रंजन अभिषेक, टेन न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली)


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