दिल्ली विधानसभा चुनाव: BJP के नेता और नीति दोनों कमजोर! | क्या कहते हैं आंकड़े?

टेन न्यूज नेटवर्क

नई दिल्ली (27 जनवरी 2025): दिल्ली का सियासी रण अपने चरम पर है। आगामी 5 फरवरी को दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है, और 8 फरवरी को नतीजे घोषित किए जाएंगे। चुनावी मैदान में तीन प्रमुख दल, आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), और कांग्रेस पूरी ताकत झोंक चुके हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा इस बार ‘आप’ को सत्ता से बाहर करने में कामयाब होगी? जमीनी हकीकत और चुनावी रणनीति को देखें तो ऐसा होता नजर नहीं आ रहा।

आम आदमी पार्टी: मजबूत रणनीति और व्यापक प्रचार

आम आदमी पार्टी इस बार भी पूरी रणनीति के साथ मैदान में उतरी है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में ‘आप’ के शीर्ष नेता, आतिशी, भगवंत मान और संजय सिंह प्रतिदिन 5-6 जनसभाएं कर रहे हैं। ये नेता अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में जाकर रोड शो, पदयात्रा और नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से जनता से सीधा संवाद कर रहे हैं।

अरविंद केजरीवाल की जनसभाओं में हजारों की संख्या में लोग जुट रहे हैं। वह झुग्गी वासियों और मध्यम वर्गीय परिवारों के बीच अपनी बात रखने में सफल नजर आ रहे हैं। उन्होंने अपनी रैलियों में भाजपा को निशाने पर लेते हुए कहा कि यदि भाजपा सत्ता में आई तो फ्री बिजली-पानी और अन्य सुविधाएं बंद हो जाएंगी। यह मुद्दा जनता के बीच गहरी पैठ बनाता दिख रहा है।

M- S पार्टी रणनीति में कमजोरी और धीमा प्रचार

दूसरी ओर, मोदी-शाह की स्थिति कमजोर नजर आ रही है। पार्टी के शीर्ष नेता, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, चुनाव प्रचार में सक्रिय तो हैं, लेकिन उनकी जनसभाएं औसतन 1-2 दिन के अंतराल पर हो रही हैं। वहीं, भाजपा के उम्मीदवारों की बात करें तो पार्टी के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जो पूरे दिल्ली में प्रचार करने की मांग को पूरा कर सके।

प्रत्याशियों में तुलना

AAP के प्रत्याशियों में अरविंद केजरीवाल, आतिशी, मनीष सिसोदिया और सौरभ भारद्वाज जैसे मजबूत चेहरे हैं, जो न केवल अपनी सीटों पर, बल्कि दिल्ली के अन्य क्षेत्रों में भी प्रचार कर रहे हैं। वहीं, भाजपा के प्रत्याशियों की स्वीकार्यता और सर्वव्यापकता कम नजर आती है।

अरविंद केजरीवाल बनाम प्रवेश साहिब सिंह वर्मा: केजरीवाल की लोकप्रियता और राजनीतिक छवि के सामने प्रवेश वर्मा कमजोर नजर आते हैं।

मनीष सिसोदिया बनाम तरविंदर सिंह मारवाह: जंगपुरा विधान सभा सीट पर जहां एकतरफ आम आदमी पार्टी की तरफ से मनीष सिसोदिया मैदान में हैं और सिसोदिया का सकारात्मक पहलू यह है कि वो स्वयं को दिल्ली में “शिक्षा क्रांति” के जनक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, वहीं उनके लिए एक चुनौती यह भी है कि जंगपुरा उनके लिए नई सीट है। इससे पहले वे पटपड़गंज विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते और जीतते रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ भाजपा प्रत्याशी तरविंदर सिंह मारवाह भी पूरी दमखम के साथ मैदान में हैं। ऐसे में जंगपुरा विधान सभा सीट पर कांटे की टक्कर होने वाली है।

 

आतिशी बनाम रमेश बिधूड़ी: बिधूड़ी पहले से ही विवादों में रहे हैं, जबकि आतिशी की साफ-सुथरी छवि और वक्ता के रूप में लोकप्रियता उन्हें बढ़त देती है।

सौरभ भारद्वाज बनाम शिखा राय: सौरभ भारद्वाज का प्रदर्शन और AAP सरकार में उनकी भूमिका उन्हें मजबूत बनाती है, जबकि शिखा राय अपेक्षाकृत कमजोर उम्मीदवार हैं।

मुफ्त सुविधाओं का मुद्दा

अरविंद केजरीवाल ने मुफ्त सुविधाओं को लेकर एक रणनीतिक मुद्दा बनाया है। उनका दावा है कि भाजपा सत्ता में आई तो यह सुविधाएं बंद हो सकती हैं। यह बात मध्यम वर्ग और झुग्गी वासियों को आकर्षित कर रही है।

भाजपा की रणनीतिक विफलता

2015 से लेकर अब तक भाजपा ने अपने मीडिया प्रभारी में बदलाव नहीं किया है। वहीं दिल्ली के चुनाव प्रभारी जय पांडा और सह प्रभारी अतुल गर्ग सहित अन्य नेताओं की दिल्ली में स्वीकार्यता नहीं बन पाई है।

आरएसएस और अन्य संगठनों का प्रभाव

भाजपा के लिए आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद का समर्थन जरूर एक सकारात्मक पहलू है। लेकिन जब पार्टी स्वयं जमीनी स्तर पर कमजोर हो, तो इन संगठनों का प्रभाव भी सीमित हो सकता है।

‘आप’ बनाम भाजपा: उम्मीदवारों और मुद्दों का फर्क

भाजपा के ज्यादातर प्रत्याशी क्षेत्रीय स्तर पर ही सीमित हैं। और दिल्ली में एक भी ऐसे प्रत्याशी नहीं है, जिसका पूरी दिल्ली में प्रभाव हो। ऐसे में कमजोर प्रत्याशी भाजपा की सबसे बड़ी रणनीतिक विफलता हो सकती है। नई दिल्ली विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी प्रवेश साहिब सिंह वर्मा केवल अपनी सीट तक सीमित हैं। मुस्तफाबाद से उम्मीदवार मोहन सिंह बिष्ट और विश्वास नगर से ओपी शर्मा जैसे नेता भी केवल अपने-अपने क्षेत्रों तक ही सिमटे हुए हैं। इसका सीधा असर पार्टी के चुनाव प्रचार और व्यापकता पर पड़ रहा है।

‘आप’ के पास अरविंद केजरीवाल जैसे नेता हैं, जो पूरी दिल्ली में प्रचार कर रहे हैं। आतिशी न केवल अपनी सीट कालकाजी पर प्रचार कर रही हैं, बल्कि अन्य सीटों पर भी ‘आप’ के प्रत्याशियों के लिए वोट मांग रही हैं। सौरभ भारद्वाज भी लगातार प्रचार में जुटे हुए हैं। मनीष सिसोदिया भी लगातार जनता से संवाद कर रहे हैं। दूसरी तरफ, भाजपा के पास ऐसा कोई सर्वस्वीकृत नेता नहीं है, जो सभी 70 विधानसभा सीटों पर असर डाल सके।

लोकसभा चुनाव का प्रभाव: मिथक या हकीकत?

कई लोग मानते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव का असर दिल्ली के विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा। लेकिन इतिहास कुछ और ही कहानी कहता है। 2014 और 2019 दोनों लोकसभा चुनावों में भाजपा ने दिल्ली की सभी 7 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की। बावजूद इसके, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में ‘आप’ ने प्रचंड बहुमत हासिल किया। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 2025 के विधानसभा चुनाव में भाजपा इस ट्रेंड को तोड़ने में कामयाब होती है या नहीं।

दिल्ली की राजनीति में इस समय आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। जमीनी हकीकत और आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि भाजपा मानसिक रूप से दिल्ली में हार स्वीकार कर चुकी है। वहीं, ‘आप’ पूरी ताकत और प्रखरता के साथ मैदान में डटी हुई है। अब देखना यह होगा कि 8 फरवरी को नतीजे क्या मोड़ लेते हैं।।

 

प्रिय पाठकों एवं दर्शकों, प्रतिदिन नई दिल्ली, दिल्ली सरकार, दिल्ली राजनीति, दिल्ली मेट्रो, दिल्ली पुलिस, दिल्ली नगर निगम, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेसवे क्षेत्र की ताजा एवं बड़ी खबरें पढ़ने के लिए hindi.tennews.in : हिंदी न्यूज पोर्टल को विजिट करते रहे एवं अपनी ई मेल सबमिट कर सब्सक्राइब भी करे। विडियो न्यूज़ देखने के लिए TEN NEWS NATIONAL यूट्यूब चैनल को भी ज़रूर सब्सक्राइब करे।


Discover more from टेन न्यूज हिंदी

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

टिप्पणियाँ बंद हैं।