सामाजिक न्याय सम्मेलन में तमिलनाडू मुख्यमंत्री एम के स्टैलिन का भाषण

टेन न्यूज़ नेटवर्क

New Delhi (04/12/2024): सामाजिक न्याय सम्मेलन में तमिलनाडू मुख्यमंत्री एम के स्टैलिन का भाषण।

 

सामाजिक न्याय सम्मेलन को सुचारू रूप से आयोजित, पार्टी के  राज्यसभा सदस्य एवं वरिष्ठ अधिवक्ता, श्री विल्सन को साधुवाद और धन्यवाद !

खून का फ़र्क नहीं और लिंग का भी फर्क नहीं –  यही द्रविड़ आंदोलन का मूल आदर्श है । यही बात ‘तन्दै’  पेरियार ने बार- बार कही है।

मनुष्य में ऊँच-नीच का कोई भेद नहीं है, इसी को कायम करने की दिशा में  ‘आरक्षण’ के रूप में सामाजिक न्याय का सृजन हुआ ।

स्त्री-पुरुष में भेदभाव को मिटाने के उद्देश्य से ही ‘महिला अधिकार’ की दिशा में कार्य गतिशील है ।

इन नीतियों को मुख्य विषय बनाकर इस सम्मेलन का आयोजन विल्सन ने किया है ।

राजनीतिक कार्रवाई से बढ़कर सामाजिक न्याय की गतिविधियों पर विल्सन की रुचि ज्यादा है । इसलिए इस प्रकार के सम्मेलन को अखिल भारतीय सम्मलेन के रूप में उन्होंने आयोजित किया है ।

तमिलनाडु में उदित – द्रविड़ आंदोलन के प्रगतिशील सिद्धांतों और  मानव विकास की विचारधाराओं के आधार पर आयोजित इस सम्मेलन में उपस्थित विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों सहित सभी अखिल भारतीय नेताओं को मेरा धन्यवाद !

पूरे भारत में अत्याचार से ग्रस्त लोगों के अधिकारों को पुनः दिलाने के लिए ऐसे एक महान संगठन को स्थापित करके हम सब एकजुट होकर यहाँ  उपस्थित हैं।

पिछले वर्ष आयोजित प्रथम सम्मेलन में भाग लेते हुए मैंने इस बात का आग्रह किया था कि पूरे भारत में पिछड़े- अनुसूचित लोगों- सामाजिक न्याय के आरक्षण अधिकार की रक्षा करनी चाहिए और तमिलनाडु की तरह सामाजिक न्याय निगरानी समितियों का गठन होना चाहिए। ।

मैंने यह भी कहा कि सामाजिक न्याय की विचारधारा को प्रबल बनाने के लिए समान विचारधारा वाली ताकतों का एकजुट होना भारतवर्ष के लिए अनिवार्य है।

अगले सम्मेलन में, भाजपा के केंद्र सरकार की संस्थाओं में सामाजिक न्याय के विरुद्ध सरकार की गतिविधियों के बारे में बताया और रिक्त  ओबीसी, एससी / एसटी पदों को भरने पर जोर दिया ।

न्यायपालिका में आरक्षण का प्रावधान चालू होना, OBC-SC-ST लोगों के लिए पदोन्नति में आरक्षण देना, आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को हटाना आदि अनेक  संकल्प हमने पारित किया ।

मैंने इस बात का भी आग्रह किया कि आरक्षण का अधिकार राज्यों के अधिकारों के तहत हो।

इन उद्देश्यों को अगले चरण तक ले जाने के लिए हम फिर से एक बार इकट्ठे हुए हैं।

सामाजिक न्याय को हासिल करना – न तो अमुक राज्य का निजी विचार है न ही समूचे भारत की एक समस्या है । जहाँ भी उपेक्षा हो  – हाशिए में रखना हो  – अस्पृश्यता हो  – गुलामी हो  – अन्याय हो , वहाँ उन सामाजिक रोगों को मिटानेवाला संजीविनी के रूप में काम आता है सामाजिक न्याय सिद्धांत।

सामाजिक और शैक्षणिक दोनों ही दृष्टि से उपेक्षित को अपना हाथ देकर ऊपर उठानेवाला सिद्धांत है यह सामाजिक न्याय !

संविधान में  सामाजिक न्याय की परिभाषा है – सामाजिक रूप से और शैक्षिक रूप से पिछड़ापन!

भारत के संविधान  का अनुच्छेद 340- के तहत ‘सामाजिक और शैक्षिक’ ही उसकी परिभाषा है।  वही शब्द संविधान के संशोधन में भी बताया गया है।

यानी, भारतीय संविधान की परिभाषा के अनुरूप, सामाजिक न्याय माने जानेवाला आरक्षण, सामाजिक और शैक्षणिक दोनों रूपों से वंचितों के लिए दी जानी चाहिए।

यह संशोधन का कारण ही उस समय का मद्रास प्रेसीडेंसी था !

यह संशोधन के कारणकर्ता हैं ‘तन्दै’  पेरियार और ‘पेररिज्ञर’ अण्णा!

“संविधान के कोई भी अनुच्छेद समाज में और शिक्षा क्षेत्र में पिछड़े समुदाय को प्राप्त होनेवाले लाभ को रोक नहीं सकता” – यही  संविधान का पहला संशोधन है !

तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने संसद में ही कही थी कि इस संशोधन का मूल कारण “मद्रास में हुई घटनाएँ हैं” !

  • मद्रास प्रेसीडेंसी में जब ‘जस्टिस पार्टी’ का शासन बना, तब,1922 में , तत्कालीन मुख्यमंत्री पनगल राजा जातिवार प्रतिनिधित्व का अधिकार का शासनादेश जारी किया। तमिलनाडु में अब भी यही स्थिति जारी है ।
  • तमिलनाडु जैसे विभिन्न राज्य सामाजिक न्याय प्रदान कर रहे हैं।
  • तमिलनाडु के लोगों के लिए सामाजिक न्याय प्रदान करने वाले यही द्रविड़ आंदोलन भारत के अन्य राज्यों में उत्पीड़ित लोगों को भी ऐसा अधिकार दिलाने का मार्गदर्शन किया ।

यही विचारधाराआज यह पूरे भारत में फैला हुआ है।

लेकिन , सामाजिक न्याय को भाजपा सही ढंग से लागू नहीं कर रही है।  पिछले दस वर्षों में केंद्रीय  सरकार के विभागों में , पिछड़ों का 27 प्रतिशत आरक्षण पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है ।

गरीब , पिछड़े, अनुसूचित और आदिवासी लोगों का  विकास भाजपा की पसंद की बात नहीं है।  इसीलिए वे सामाजिक न्याय के विरुद्ध हैं।  आरक्षण में आर्थिक मानदंड को लाने में अधीर हैं।

गरीब लोगों की वित्तीय सहायता को हम रोकते नहीं । लेकिन हम सामाजिक रूप से वंचितों को देने वाले आरक्षण को आर्थिक मानदंडों के आधार पर सामान्य वर्ग के लोगों को भी देने के विरोध में हैं।

जिस प्रकार बीजेपी, अनुसूचित जाति – आदिवासी -पिछड़े लोगों के विरुद्ध कार्य करनेवाली पार्टी है उसी प्रकार  महिलाओं के विरुद्ध भी काम करनेवाली पार्टी है।

इसलिए महिलाओं को राजनीतिक अधिकार देनेवाले आरक्षण मसौदा को रोक रखा है।

महिलाओं के लिए आरक्षण कानून को केवल एक  पार्टी को छोड़कर लोकसभा और राज्यसभा में सभी पार्टियों ने इसका समर्थन करके वोट डाले थे।  किसी भी बड़ी पार्टी ने विरोध में वोट नहीं किया।  लेकिन इसका कार्यान्वयन न हो – इस उद्देश्य से भाजपा ने उसी कानून के अनुच्छेदों के माध्यम से वह काम कर डाला है ।

उन्होंने कहा था कि –

* जनगणना पूरी होने के बाद

* निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद – महिलाओं के लिए हम 33 फीसदी आरक्षण देंगे।

तब तो जनगणना और निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन पूरा होने के बाद 2029 के बाद ही महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मिल सकता है। साल 2029 – याने 6 साल के बाद जिस काम को भाजपा सरकार पूरा करने जा रहा है उसे अभी करके दिखाया है – यह झूठी बात कर रही है भाजपा सरकार।

1996, 2010 आदि वर्षों में लाये गए कानूनों में ऐसी कोई बाधाएं नहीं थीं। तो, अब इन बाधाओं को किसने बनाया? इस कानून को बीजेपी ने लागू किया था,  अब खुद वही बीजेपी इसका निषेध किया है।

1929 में ,  चेंगलपट्टू  में संपन्न स्वाभिमान सम्मेलन में ही महिलाओं के लिए संपत्ति का अधिकार, रोजगार का अधिकार, विधवा पुनर्विवाह सहित महिलाओं के विभिन्न क्रांतिकारी अधिकार से सम्बंधित प्रस्ताव पारित हुए।

उसी के क्रम में,  डीएमके सरकार के द्वारा महिलाओं के कल्याण हेतु लगातार विभिन्न  योजनाएँ बनायी जाती हैं और उनका क्रियान्वयन भी हो रही है।

जिन सिद्धांतों के बारे में हम बोलते हैं उन्हीं का कानूनी रूप से क्रियान्वयन करता आ रहा है , डीएमके सरकार!

जिस प्रकार भाजपा सरकार ने महिला आरक्षण को रोकने की साजिश की उसी प्रकार जातिगत आधार पर जनगणना कार्रवाई के लिए आगे नहीं आई भाजपा सरकार!

जातिवार जनगणना के लिए हमने तमिलनाडु विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित करके  केंद्र सरकार के द्वारा इसे तुरंत लागू करने का आग्रह किया है ।

भारत के सभी लोगों को शिक्षा, अर्थव्यवस्था और रोजगार में समान अधिकार और अवसर सुनिश्चित करनेवाली योजनाएँ और कानून बनाने के लिए जातिवार जनगणना अत्यावश्यक है।

भाजपा सरकार को जनगणना के कार्य तुरंत शुरू करना चाहिए, जो 2021 में ही करनी थी।  साथ ही जातिवार जनगणना भी करना चाहिए । बीजेपी सरकार इसे मना करती है। वे इसीलिए हिचकते हैं कि, अगर जातिवार जनगणना की जाये, तो कहीं उन्हें वास्तविक सामाजिक न्याय प्रदान करने की मज़बूरी हो जाए ।

जातिवार जनगणना को मनाने के माध्यम से भाजपा सरकार सामाजिक न्याय के विरुद्ध है और महिलाओं के लिए आरक्षण कानून  को टालमटोल करके वही भाजपा सरकार महिलाओं के अधिकारों के भी खिलाफ है।

इसके खिलाफ हम सबको मिलकर आवाज उठानी होगी !

* अनुसूचित जाति का आरक्षण सही ढंग से प्रदान किया जाना चाहिए ।

* पिछड़े -अतिपिछड़े वर्गों का आरक्षण सही रूप से प्रदान किया जाना चाहिए ।

* अल्पसंख्यकों का आरक्षण सही रूप से प्रदान किया जाना चाहिए।

* न्यायपालिका में आरक्षण का प्रावधान चालू होना चाहिए ।

* अन्य पिछड़े वर्ग, अनुसूचित और आदिवासी लोगों को पदोन्नति पर आरक्षण सुनिश्चित करनी चाहिए।

* केंद्र सरकार द्वारा जातिवार जनगणना का कार्य किया जाना चाहिए और उसकी आँकड़ा प्रकाशित किया जाना चाहिए।

इन सभी कार्यों पर अखिल भारतीय स्तर पर – राज्य स्तर पर नजर रखनी चाहिए । सामाजिक तौर पर भी नजर रखनी चाहिए ।

जब तमिलनाडु में डी.एम्.के. सत्ता में आई , तो उसने

आदि द्रविड़ आदिवासी आयोग का गठन किया ।

सामाजिक न्याय आयोग का गठन किया।

सामाजिक न्याय निगरानी समिति का गठन किया।

यह निगरानी समिति इसपर नज़र रखती है कि शिक्षा , रोजगार, पद नियुक्ति, पदोन्नति, और अन्य नियुक्तियों में सामाजिक न्याय का मानदंड का व्यवस्थित और पूर्ण रूप से अनुपालन की जा रही है या नहीं।

सभी राज्यों में इस तरह की समितियों का गठन हो  ।

जिस भारत में,

  • सामाजिक न्याय – Social Justice
  • धर्मनिरपेक्ष राजनीति – Secular Politics
  • समाजवाद – Socialism
  • समानता – Equality
  • राज्य स्वायत्तता – State Autonomy
  • संघवाद – Federalism

ये सब विद्यमान हैं वही अद्वितीय भारत है !

इसलिए हम ऐसी विचारधाराओं को लेकर आगे बढ़ें !

सामाजिक न्याय से युक्त भारत का निर्माण करने – समधर्म भारत का निर्माण करने  – भाईचारा से युक्त भारत का निर्माण करने के लिए, आइए हम सब मिलकर युद्ध लड़ें !

 

धन्यवाद! नमस्ते!


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