राज्य सभा में उठा गिग वर्कर्स का मुद्दा, डिलीवरी बॉय और कैब ड्राइवर्स के मुद्दे पर जोरदार बहस
टेन न्यूज़ नेटवर्क
New Delhi News (05 December 2025): शीतकालीन सत्र के पांचवें दिन राज्य सभा में आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने उन गिग वर्कर्स का दर्द जोरदार तरीके से उठाया जिनकी मेहनत के दम पर आज ई-कॉमर्स अर्थव्यवस्था खड़ी है। उन्होंने कहा कि मोबाइल ऐप पर मिलने वाले “ऑर्डर डिलीवर्ड”, “योर राइड हैज अराइव्ड” जैसे नोटिफिकेशन के पीछे एक ऐसा इंसान होता है जिसे समाज अक्सर देखता भी नहीं। चड्ढा ने Zomato और Swiggy के डिलीवरी बॉय, Ola-Uber ड्राइवर, Blinkit, Zepto डिलीवरी बॉय और Urban Company के प्लंबर-टेक्नीशियन जैसे लाखों लोगों को “Invisible Wheels of Indian Economy” करार दिया। उनका कहना था कि यह वर्ग देश की अर्थव्यवस्था का चुपचाप भार उठाता है, लेकिन बदले में सम्मान और सुरक्षा दोनों से वंचित है। सदन में उनका संबोधन इन श्रमिकों की कठिनाइयों को सामने रखने की एक गंभीर कोशिश थी।
सुपरफास्ट डिलीवरी के दबाव में खतरे में पड़ती रहती है इनकी जानें
राघव चड्ढा ने सुपरफास्ट डिलीवरी मॉडल को “खतरनाक ट्रेंड” बताते हुए कहा कि 10 मिनट की डिलीवरी की होड़ ने हजारों डिलीवरी बॉयज़ की जिंदगी को जोखिम में डाल दिया है। रेटिंग गिरने, इंसेंटिव कटने और आईडी ब्लॉक होने के डर से ये कर्मचारी रेड लाइट जंप करके, तेज रफ्तार से मोटरसाइकिल चलाकर दुर्घटनाओं का खतरा लगातार मोल लेते हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हर लाल बत्ती पर एक डिलीवरी बॉय यही सोचता है “अगर लेट हुआ तो नौकरी चली जाएगी।” यह दबाव न सिर्फ असुरक्षित ट्रैफिक स्थिति पैदा करता है बल्कि मानसिक तनाव भी बढ़ाता है। चड्ढा ने सरकार से 10-मिनट डिलीवरी मॉडल पर तुरंत विचार करने की अपील की।
ग्राहकों के गुस्से और रेटिंग सिस्टम से बढ़ती परेशानियाँ
सांसद ने कहा कि गिग वर्कर्स सिर्फ डिलीवरी टाइम के दबाव से ही नहीं बल्कि ग्राहकों की नाराज़गी से भी जूझते हैं। उन्होंने बताया कि जैसे ही ऑर्डर 5–7 मिनट भी देर होता है, कई ग्राहक फोन पर डांटते हैं, धमकाते हैं और बाद में एक स्टार रेटिंग देकर पूरे महीने की कमाई तक प्रभावित कर देते हैं। यह रेटिंग सिस्टम इन वर्कर्स के लिए किसी “स्थायी डर” जैसा बन चुका है जहां एक गलती पूरी आय को गिरा सकती है। चड्ढा ने कहा कि इस मॉडल में कंपनी की कमाई बढ़ती है, यूनिकॉर्न बनते हैं, लेकिन इंसान की मेहनत और भावनाओं की रक्षा करने वाला कोई सिस्टम मौजूद नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि कस्टमर-रेटिंग सिस्टम पर भी व्यापक नीति बनाई जानी चाहिए।
खतरनाक वर्किंग कंडीशन्स में पिसते गिग वर्कर्स
राघव चड्ढा ने आगे बताया कि ये वर्कर्स 12–14 घंटे की शिफ्ट में भीषण गर्मी, कड़क ठंड, तेज बारिश और भयंकर प्रदूषण में बिना किसी भत्ते या सुरक्षा के काम करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि फैक्ट्री वर्कर्स को जहां स्थायी नौकरी, हेल्थ इंश्योरेंस और एक्सीडेंट कवर मिलता है, वहीं गिग वर्कर्स को ऐसा कुछ नहीं मिलता। उनके अनुसार, इन वर्कर्स की आमदनी इतनी कम होती है कि बीमारी पड़ने पर उनकी पूरी आर्थिक हालत बिगड़ जाती है। उन्होंने कहा, “ये भी किसी के पिता, भाई, बेटे हैं… रोबोट नहीं। इन्हें भी सुरक्षित और सम्मानजनक कामकाजी माहौल का अधिकार है।” चड्ढा ने सरकार से गिग वर्कर्स को श्रम कानूनों के दायरे में लाने की जरूरत पर बल दिया।
सरकार से व्यापक सुधारों की मांग
अपने संबोधन के अंत में राघव चड्ढा ने कहा कि यदि देश यह उम्मीद कर सकता है कि 10 मिनट में खाना घर पहुंच जाए, तो यह उम्मीद भी की जानी चाहिए कि सदन इन गिग वर्कर्स के लिए ठोस नीति बनाए। उन्होंने मांग की कि केंद्र सरकार गिग वर्कर्स के लिए सुरक्षा, न्यूनतम वेतन, दुर्घटना बीमा, मेडिकल कवर, कार्य समय सीमा और रेटिंग सिस्टम में सुधार जैसे विषयों पर राष्ट्रीय नीति तैयार करे। उन्होंने कहा कि ई-कॉमर्स कंपनियों की अरबों डॉलर की वैल्यूएशन के पीछे जो पसीना बहाया जाता है, उसका सम्मान और सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है। चड्ढा के भाषण को सदन में सामाजिक सुरक्षा और श्रम अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में देखा जा रहा है।।
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