New Delhi News (03 December 2025): दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण और उससे हर साल होने वाली मौतों को लेकर NSUI ने एक बड़ा पोस्टर अभियान शुरू किया है, जिसने राजनीतिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है। पोस्टर में दावा किया गया है कि राजधानी में प्रदूषण के कारण हर साल करीब 17 हज़ार लोगों की जान चली जाती है, और इसकी जिम्मेदारी सीधे सरकार की “नाकामी” पर डाली गई है। पोस्टर में बड़े अक्षरों में यह भी लिखा है कि दिल्लीवासी ज़हरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं और प्रशासन लगातार समाधान खोजने में विफल रहा है। लोगों का ध्यान खींचने वाला यह पोस्टर सार्वजनिक स्थानों पर तेजी से फैल रहा है। इस अभियान को लेकर सोशल मीडिया पर भी बड़ी चर्चा देखने को मिल रही है।

एनएसयूआई ने कहा—यह प्रदूषण प्राकृतिक नहीं, मानव-निर्मित आपदा है
एनएसयूआई के पोस्टर में यह स्पष्ट आरोप लगाया गया है कि दिल्ली में मौजूद हवा की यह भयावह स्थिति किसी प्राकृतिक विपत्ति का परिणाम नहीं है, बल्कि लगातार हो रही सरकारी लापरवाही का नतीजा है। संगठन का कहना है कि पिछले 10 से 12 वर्षों में प्रदूषण नियंत्रण को लेकर कई बड़ी घोषणाएं की गईं, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम देखने को नहीं मिला। पोस्टर यह भी दावा करता है कि दिल्ली में प्रदूषण का स्तर हर बार एक नए रिकॉर्ड को छू लेता है, जिसके चलते लाखों लोग फेफड़ों से जुड़े गंभीर रोगों के जोखिम में हैं। एनएसयूआई ने यह भी कहा कि हवा साफ रखना सरकार का बुनियादी कर्तव्य है, जो कि अब तक पूरा नहीं हो पाया।
दिवाली के बाद प्रदूषण स्तर पर पोस्टर में उठाए गंभीर मुद्दे
पोस्टर में विशेष रूप से इस वर्ष दिवाली के तुरंत बाद आई प्रदूषण की स्थिति की ओर ध्यान दिलाया गया है, जिसमें AQI रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया था। पोस्टर के अनुसार दिल्ली का AQI कई इलाकों में 500 के पार चला गया, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानक सीमा से कई गुना ज्यादा जहरीला है। इसके साथ ही PM2.5 और PM10 जैसी महीन धूल के कण खतरनाक सीमा से लगभग दस गुना ऊपर दर्ज किए गए। पोस्टर में कहा गया है कि दिल्ली का आसमान दिन में भी धुंधला हो गया था और लोगों को आंखों में जलन तथा सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। एनएसयूआई का आरोप है कि इतनी गंभीर स्थिति में भी सरकार की तरफ से कोई प्रभावी कार्ययोजना सामने नहीं आई।
पोस्टर में पड़ोसी राज्यों से जुड़े कारकों की भी चर्चा
एनएसयूआई के पोस्टर में यह भी लिखा गया है कि दिल्ली के प्रदूषण को हमेशा पड़ोसी राज्यों की पराली से जोड़कर खत्म नहीं किया जा सकता। संगठन ने आरोप लगाया है कि यह समस्या केवल बाहरी कारणों की वजह से नहीं है, बल्कि दिल्ली के भीतर फैला धुआं, अवैध औद्योगिक यूनिटें, वाहनों की बढ़ती संख्या और निर्माण कार्य भी प्रदूषण बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। उनका कहना है कि सरकारें हमेशा एक-दूसरे पर आरोप लगाकर बचती रही हैं, लेकिन दिल्ली के आम लोगों के लिए कोई स्थायी समाधान नहीं बनाया गया। पोस्टर यह संदेश देने की कोशिश करता है कि प्रदूषण एक समेकित नीति की मांग करता है जो अभी तक पूरी तरह अनुपस्थित है।
आंकड़ों के ज़रिये सरकार पर सीधा प्रहार
पोस्टर में मौजूद आंकड़े सरकार की नीतियों पर सीधे सवाल उठाते हैं, जिसमें बताया गया है कि 2023 में प्रदूषण की वजह से दिल्ली में 17,188 मौतें दर्ज की गईं। पोस्टर का दावा है कि दिल्ली का हर आठवां व्यक्ति किसी न किसी श्वसन रोग से पीड़ित है और पिछले एक दशक में फेफड़ों के कैंसर और अस्थमा के मामलों में तेज़ी से बढ़ोतरी दर्ज हुई है। इन आंकड़ों को दिखाकर एनएसयूआई ने यह बताने की कोशिश की है कि समस्या सिर्फ मौसमी नहीं बल्कि लगातार बिगड़ती हुई स्थिति है। पोस्टर में यह भी कहा गया है कि दिल्ली की हवा दुनिया के सबसे जहरीले महानगरों में शामिल है और यह देश की राजधानी के लिए शर्मनाक स्थिति है।
क्लाउड सीडिंग और अन्य उपायों पर उंगली उठाई
पोस्टर में क्लाउड सीडिंग जैसे उपायों की लागत और प्रभाव पर भी सवाल उठाए गए हैं। एनएसयूआई का कहना है कि हर साल करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद क्लाउड सीडिंग स्थायी राहत नहीं देता। पोस्टर में यह भी लिखा गया है कि सरकार की नीतियां अक्सर “इवेंट-बेस्ड” होती हैं, जिनका असर कुछ दिनों के बाद खत्म हो जाता है। संगठन ने आरोप लगाया कि सरकारें केवल प्रदूषण आकड़े बढ़ने पर ही जागती हैं और फिर कुछ सप्ताह बाद स्थिति दोबारा सामान्य मानकर शांत हो जाती हैं। इसी रवैये को पोस्टर में दिल्ली की विषाक्त हवा का एक बड़ा कारण बताया गया है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के हवाले से गंभीर चेतावनियाँ
पोस्टर में स्वास्थ्य विशेषज्ञों की रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा गया है कि दिल्ली की हवा बच्चों और बुजुर्गों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हो चुकी है। इसमें दावा है कि प्रदूषण बच्चों के फेफड़ों के विकास को धीमा कर रहा है और कई बच्चों के डॉक्टरों ने उन्हें अस्थमा इनहेलर शुरू करने की सलाह दी है। बुजुर्गों में हार्ट और स्ट्रोक के मामलों में भी वृद्धि दर्ज की गई है। पोस्टर में चेतावनी है कि अगर स्थिति ऐसे ही बनी रही तो आने वाले वर्षों में जैविक उम्र से पहले लंग-एजिंग और क्रॉनिक रोगों में खतरनाक बढ़ोतरी देखी जा सकती है।
दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों पर विशेष टिप्पणी
पोस्टर ने दिल्ली के औद्योगिक इलाक़ों की स्थिति पर भी चिंता जताई है, जहां बिना अनुमति के चल रहे कई कारखाने लगातार जहरीला धुआं छोड़ते हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि कई जगहों पर प्रदूषण मापने वाले सेंसर ही मौजूद नहीं हैं, जिसके चलते सही डेटा तक सरकार के पास नहीं पहुंचता। पोस्टर में सवाल उठाया गया है कि यदि मॉनिटरिंग ही उचित तरीके से नहीं की जाएगी, तो प्रदूषण नियंत्रण योजना कैसे सफल होगी। एनएसयूआई ने औद्योगिक कचरे और अवैध प्रदूषण स्रोतों पर कठोर कार्रवाई की मांग की है।
एनएसयूआई ने पर्यावरणीय विनाश के खिलाफ जनआंदोलन की अपील की
पोस्टर में लोगों से अपील की गई है कि प्रदूषण के खिलाफ केवल सरकार पर निर्भर रहने से कुछ नहीं होगा, बल्कि अब नागरिकों को भी जागरूक होकर सामूहिक आंदोलन खड़ा करना होगा। एनएसयूआई ने कहा है कि दिल्ली के नागरिकों को अपने स्वास्थ्य के अधिकार के लिए आवाज उठानी चाहिए और प्रदूषण नियंत्रण को राजनीतिक मुद्दा बनाने के बजाय जन-अधिकार के रूप में देखा जाना चाहिए। पोस्टर के अंत में यह संदेश है कि अगर अभी गंभीर कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में स्थिति और खराब हो सकती है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और पोस्टर अभियान का बढ़ता असर
एनएसयूआई के इस पोस्टर अभियान ने राजनीतिक हलकों में नई हलचल पैदा कर दी है और विपक्ष इसे सरकार की विफलताओं का दस्तावेज़ बता रहा है। सोशल मीडिया पर भी लोग पोस्टर के आंकड़ों को लेकर चर्चा कर रहे हैं और प्रदूषण के समाधान के लिए ठोस रणनीति की मांग कर रहे हैं। माना जा रहा है कि यह मुद्दा दिल्ली की राजनीति में आने वाले महीनों में बड़ा चुनावी एजेंडा बन सकता है। पोस्टर अभियान का असर अब विश्वविद्यालयों, बाजारों और सार्वजनिक स्थानों पर साफ देखा जा रहा है। एनएसयूआई ने संकेत दिया है कि आने वाले दिनों में यह अभियान और तेज़ किया जाएगा।।
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