श्याम शंकर शुक्ल द्वारा लिखित पुस्तक “गीता सब के लिए सब काल में” का लोकार्पण

टेन न्यूज नेटवर्क

New Delhi News (13 November 2025): नई दिल्ली स्थित कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया में बुधवार को प्रसिद्ध विद्वान एवं लेखक श्याम शंकर शुक्ल द्वारा रचित अनुपम कृति “गीता सबके लिए सब काल में” का भव्य भाव विमोचन समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर प्रख्यात राजनेता डॉ. कर्ण सिंह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी भास्कर खुल्बे, आध्यात्मिक प्रकाशपुरुष स्वामी प्रखरजी महाराज, विद्वान एवं लेखक सत्य सौरभ खोसला, तथा भारतीय ज्ञान परंपरा के अनेक विद्वान विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।

इस अवसर पर गीता सबके लिए सब काल में के तीन वॉल्यूम का सामूहिक विमोचन किया गया। प्रथम खंड “कर्मयोग” में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को कर्म के सिद्धांत पर प्रदत्त उपदेशों का विवेचन किया गया है। द्वितीय खंड “भक्तियोग” में अध्याय 6 से 12 तक के माध्यम से भक्ति के रहस्यों एवं भगवद्भाव के स्वरूप का विस्तार से प्रतिपादन किया गया है। तृतीय खंड “ज्ञानयोग” में अध्याय 13 से 18 तक आत्मा, श्रद्धा, प्रकृति, गुण, तथा ज्ञान के व्यापक आयामों का गूढ़ विश्लेषण किया गया है। यह ग्रंथ कुल मिलाकर 2200 पृष्ठों का एक व्यापक अध्ययन है, जिसका प्रकाशन मोतीलाल बनारसी दास पब्लिकेशन्स द्वारा किया गया है।

लेखक श्याम शंकर शुक्ल ने टेन न्यूज़ नेटवर्क से विशेष वार्ता में कहा कि “यह कृति श्रीमद्भगवद्गीता को केंद्र में रखकर रचित है। इसमें प्रत्येक श्लोक का अनुवाद, व्याख्या तथा उसके निहितार्थ का सुगठित विवेचन किया गया है। उन्होंने कहा कि ग्रंथ में कुरुक्षेत्र की व्याख्या के साथ-साथ जीवन रूपी कुरुक्षेत्र में मनुष्य को प्राप्त संदेशों का भी आध्यात्मिक विश्लेषण किया गया है।”

लेखक ने बताया कि,” पुस्तक में दो अत्यंत रोचक अध्याय जोड़े गए हैं। प्रथम अध्याय में रामचरितमानस और गीता के कर्मयोग के मध्य विद्यमान समानताओं एवं भिन्नताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है, जबकि दूसरे अध्याय में श्रीमद्भागवत और गीता के अंतरसंबंधों का विवेचन है। ग्रंथ में विभिन्न वेदों, उपनिषदों, अष्टावक्र गीता एवं अन्य शास्त्रों के संदर्भों के माध्यम से यह भी बताया गया है कि गीता का संदेश उनसे कैसे भिन्न या समान है, तथा मानव जीवन में उसकी आवश्यकता क्यों उत्पन्न हुई।

पुस्तक के अंत में प्रत्येक खंड में यह भी उल्लेखित है कि पाठक इस ग्रंथ से क्या सीख सकते हैं और जीवन में इन शिक्षाओं का व्यवहारिक अर्थ क्या है। लेखक के अनुसार, यह ग्रंथ विशेष रूप से युवाओं के मार्गदर्शन हेतु रचा गया है। इसमें आधुनिक शिक्षा प्रणाली और गीता के शैक्षिक दृष्टिकोण के तुलनात्मक अध्ययन के साथ-साथ तार्किक, बौद्धिक एवं प्रगतिशील चिंतन रखने वाले पाठकों के लिए भी विशेष विवेचन प्रस्तुत किया गया है।

लेखक शुक्ल ने स्पष्ट किया कि यह ग्रंथ कर्मयोग के सिद्धांतों पर विशेष रूप से केंद्रित है। उन्होंने कहा कि जब मनुष्य अपने कर्म के परिणामों को लेकर व्यथित होकर अवसाद या नकारात्मकता में डूब जाता है, तब गीता का संदेश उसे स्थिरता, निष्ठा और समर्पण की दिशा प्रदान करता है। उन्होंने यह भी कहा कि “मनुष्य को अपने कर्म को इस भावना से करना चाहिए कि उसके बिना सृष्टि का संचालन संभव नहीं — किंतु परिणाम को ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए।” यही भाव, जीवन को संतुलन और सार्थकता प्रदान करता है।

अंततः, यह भव्य विमोचन समारोह भारतीय अध्यात्म, ज्ञान परंपरा और आधुनिक युग के बीच सेतु के समान प्रतीत हुआ, जिसमें “गीता सबके लिए सब काल में” जैसी विस्तृत, गूढ़ और मार्गदर्शक कृति ने गीता के अनंत संदेश को आधुनिक समाज के समक्ष पुनः प्रतिष्ठित किया।।


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