National News (01/11/2025): अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि जब भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पास नोट छापने की पूरी ताकत है, तो फिर देश की आर्थिक समस्याओं को खत्म करने के लिए अनलिमिटेड नोट क्यों नहीं छापे जाते? लेकिन अर्थव्यवस्था (Economy) के विशेषज्ञ बताते हैं कि यदि ऐसा किया गया तो यह देश की आर्थिक स्थिरता को गहरा नुकसान पहुँचा सकता है।
पैसे की कीमत केवल उस कागज़ से नहीं तय होती जिस पर वह छपता है, बल्कि उस वस्तु, सेवा और उत्पादन क्षमता से तय होती है जो उस पैसे के पीछे मौजूद होती है। यदि RBI बिना उत्पादन बढ़ाए अधिक नोट छापेगा, तो बाज़ार में वस्तुएँ समान रहेंगी लेकिन पैसा अधिक हो जाएगा। ऐसे में अधिक पैसा कम वस्तुओं के पीछे दौड़ेगा और परिणामस्वरूप महँगाई (Inflation) बढ़ जाएगी।
जब मुद्रा आपूर्ति (Money Supply) वास्तविक उत्पादन से अधिक हो जाती है, तो यह अर्थव्यवस्था में असंतुलन पैदा करती है। महँगाई बढ़ने से जनता की क्रय शक्ति घट जाती है, रुपया कमजोर हो जाता है और आम आदमी के खर्चे बढ़ जाते हैं। इसका सीधा असर रोजमर्रा की ज़िंदगी से लेकर विदेशी व्यापार (Foreign Trade) तक पड़ता है।
RBI को मुद्रा छापने का अधिकार भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत प्राप्त है। लेकिन इसके साथ ही RBI को कुछ कानूनी और आर्थिक सीमाओं का पालन करना होता है। वर्तमान में RBI “Minimum Reserve System” पर काम करता है, जिसके तहत उसे कम-से-कम 200 करोड़ रुपये के सोने और विदेशी मुद्रा भंडार को बनाए रखना आवश्यक है। इसी रिज़र्व के आधार पर नए नोट जारी किए जाते हैं।
अनलिमिटेड नोट छापना अल्पकालिक समाधान तो हो सकता है, लेकिन दीर्घकाल में यह विनाशकारी सिद्ध होता है। ज़िम्बाब्वे और वेनेज़ुएला जैसे देशों में अनियंत्रित नोट छपाई के कारण हाइपर इन्फ्लेशन हुआ, जहाँ रोजमर्रा की चीज़ों की कीमतें लाखों में पहुँच गईं और मुद्रा का मूल्य लगभग समाप्त हो गया।
RBI मुद्रा छापने से पहले कई कारकों का मूल्यांकन करता है — जैसे GDP वृद्धि दर, वस्तु एवं सेवा उत्पादन, मुद्रा की मांग, महँगाई दर, और पुराने नोटों के प्रतिस्थापन की आवश्यकता। इन सबके संतुलन के बाद ही नई मुद्रा की मात्रा तय की जाती है।
सरकार और RBI का उद्देश्य केवल मुद्रा की मात्रा बढ़ाना नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था को स्थिर रखना और नागरिकों की क्रय शक्ति को सुरक्षित बनाए रखना है।
अर्थशास्त्रियों का स्पष्ट मत है कि “धन” केवल छपे हुए नोटों में नहीं, बल्कि देश की उत्पादक क्षमता और संसाधनों के मूल्य में निहित होता है। इसलिए, नोटों की अंधाधुंध छपाई आर्थिक विकास नहीं, बल्कि आर्थिक संकट को जन्म देती है।
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