बिहार में BJP की नई चाल: यूपी ब्रिगेड के सहारे सत्ता की राह तलाशती भगवा पार्टी
रंजन अभिषेक, संवाददाता, टेन न्यूज नेटवर्क
Bihar News (09 October 2025): बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस बार बेहद दिलचस्प और आक्रामक रणनीति अपनाई है। पार्टी ने उत्तर प्रदेश से अपने संगठनात्मक और प्रचारक दिग्गजों की पूरी फौज बिहार में उतार दी है। न केवल उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को बिहार चुनाव का सह-प्रभारी बनाया गया है, बल्कि कई यूपी के मंत्री, सांसद और पूर्व विधायक अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। यह कदम महज चुनावी समन्वय का हिस्सा नहीं, बल्कि BJP के “यूपी मॉडल” को बिहार में लागू करने की एक बड़ी रणनीति है।
यूपी के नेताओं की तैनाती: संगठन से लेकर नैरेटिव तक
BJP ने उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं को बिहार के विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी देकर जातीय और संगठनात्मक दोनों समीकरण साधने की कोशिश की है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, जो ओबीसी समुदाय के बड़े चेहरे हैं, को सह-प्रभारी बनाया गया है। वहीं, सिद्धार्थनाथ सिंह, जो लालबहादुर शास्त्री के पोते हैं, को “प्रभारी, पॉलिटिकल नैरेटिव” का अहम पद दिया गया है। वे बिहार में BJP के प्रचार की थीम तय करने और सोशल मीडिया अभियान को दिशा देने का काम कर रहे हैं।
सिद्धार्थनाथ सिंह भागलपुर और मुजफ्फरपुर में दो बड़े सोशल मीडिया हब से डिजिटल प्रचार संभालेंगे। बताया जा रहा है कि यही मॉडल छत्तीसगढ़ चुनाव 2023 में BJP की जीत का मुख्य सूत्रधार था।
“यूपी मॉडल” की वापसी
BJP का मानना है कि यूपी के कार्यकर्ता बूथ प्रबंधन और चुनावी रणनीति में देश में सबसे प्रशिक्षित हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि “2012 से 2022 तक यूपी में संगठन को जिस स्तर पर चुनावी प्रशिक्षण मिला, उसकी मिसाल पार्टी के भीतर भी नहीं है।” अब वही अनुभव बिहार चुनाव में लगाया जा रहा है।
यूपी के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह को आरा लोकसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी दी गई है, जबकि केंद्रीय राज्य मंत्री (वित्त) पंकज चौधरी को पश्चिम चंपारण का प्रभारी बनाया गया है। फतेहपुर सीकरी से सांसद राजकुमार चाहर शिवहर सीट देखेंगे, वहीं सतीश गौतम को बक्सर और पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं गौतमबुद्ध नगर के सांसद डॉ महेश शर्मा को औरंगाबाद की जिम्मेदारी मिली है। इसके अलावा कई पूर्व सांसदों—रेखा वर्मा (पटना साहिब), संगम लाल गुप्ता (मुजफ्फरपुर), विनोद सोनकर (सीवान) और सुब्रत पाठक (उजियारपुर)—को भी तैनात किया गया है।
जातीय संतुलन और अभियान की धार
बिहार की राजनीति उत्तर प्रदेश की तुलना में कहीं अधिक जाति-आधारित है। BJP इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए जातीय प्रतिनिधित्व का संतुलन साधने की कोशिश में है। केशव मौर्य और पंकज चौधरी जैसे ओबीसी नेता, स्वतंत्र देव सिंह जैसे कुर्मी चेहरा और शलभ मणि त्रिपाठी जैसे ब्राह्मण चेहरे पार्टी की इस रणनीति का हिस्सा हैं।
हर लोकसभा क्षेत्र में तैनात यूपी नेता का फोकस बूथ स्तर तक “माइक्रो मैनेजमेंट” पर रहेगा। भागलपुर और मुजफ्फरपुर में बन रहे सोशल मीडिया हब चुनाव प्रचार की नब्ज बनेंगे, यहां से फेसबुक, व्हाट्सएप और एक्स (ट्विटर) पर लोकल कंटेंट और वीडियो अभियान चलाए जाएंगे।
चुनावी मैदान में “योगी फैक्टर”
BJP को भरोसा है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस बार भी स्टार प्रचारक बनकर असर दिखाएंगे। 2020 के बिहार चुनाव में योगी ने 17 जिलों में 19 रैलियां की थीं, जिनकी 75 सीटों में से 50 पर एनडीए जीता था। उनकी रैलियों ने सीमांचल से मगध तक प्रभाव छोड़ा था।
इस बार भी पार्टी चाहती है कि योगी की सख्त प्रशासक वाली छवि और लोकप्रियता को चुनावी मुद्दा बनाया जाए। राम मंदिर, अनुच्छेद 370 और “जंगलराज” जैसे मुद्दे फिर से चुनावी विमर्श के केंद्र में लाए जाएंगे।
विपक्ष और नई चुनौतियां
राजद-कांग्रेस गठबंधन इस बार बेरोजगारी, शिक्षा और महंगाई जैसे मुद्दों पर फोकस करना चाहता है। वहीं BJP “विकास बनाम भ्रष्टाचार” के नैरेटिव पर चुनाव को साधने की कोशिश में है। पार्टी नीतीश कुमार की विकास योजनाओं और केंद्र की कल्याणकारी नीतियों को अपनी ताकत बना रही है।
हालांकि प्रशांत किशोर (पीके) की “जन सुराज” मुहिम को भी BJP गंभीरता से ले रही है। पार्टी को डर है कि अगर पीके का अभियान रफ्तार पकड़ता है, तो वे “क्लीन पॉलिटिक्स” के चेहरे के रूप में नया विकल्प बन सकते हैं।
बिहार में BJP का अगला इम्तिहान
BJP के लिए बिहार चुनाव सिर्फ एक राज्यीय मुकाबला नहीं, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद संगठनात्मक विस्तार की परीक्षा है। पार्टी ने यूपी के नेताओं को उतारकर यह संकेत दिया है कि अब उसके लिए कोई राज्य “आउट ऑफ बाउंड” नहीं।
फिलहाल, बिहार में “यूपी ब्रिगेड” के उतरने से सियासी मैदान बेहद दिलचस्प हो गया है। अब देखना यह होगा कि क्या “यूपी मॉडल” बिहार की जाति-प्रधान और भावनात्मक राजनीति में BJP को वही सफलता दिला पाता है, जिसकी उम्मीद पार्टी ने की है।।
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