CJI पर हमले की कोशिश करने वाले वकील ने कहा – “मुझे कोई पछतावा नहीं”

टेन न्यूज़ नेटवर्क

New Delhi News (07 October 2025): सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को हुई दुखद घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की ओर कथित रूप से जूता फेंकने की कोशिश की। अदालत में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत हस्तक्षेप कर स्थिति को नियंत्रित किया। यह मामला न केवल अदालत की गरिमा के लिए चुनौती बना बल्कि न्यायपालिका की सुरक्षा और अनुशासन पर भी सवाल खड़े कर गया। देशभर के नेताओं और वकीलों ने इस घटना की निंदा करते हुए इसे लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला बताया।

आरोपी वकील ने तोड़ी चुप्पी, कहा – “मुझे कोई पछतावा नहीं”

घटना के अगले दिन निलंबित वकील राकेश किशोर ने ANI से बातचीत में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि उन्हें अपने कृत्य पर कोई पछतावा नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं डरा नहीं हूं, जो हुआ वह मेरी प्रतिक्रिया थी। न तो मैं घायल हुआ, न ही नशे में था।” किशोर ने बताया कि 16 सितंबर को उन्होंने एक जनहित याचिका दायर की थी और उस पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी से वे आहत हुए। उन्होंने आरोप लगाया कि कोर्ट ने उनके धार्मिक भावनाओं का मजाक उड़ाया।

बीसीआई ने अधिवक्ता को तत्काल प्रभाव से किया निलंबित

भारतीय विधिज्ञ परिषद (Bar Council of India) ने घटना को गंभीर मानते हुए राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। परिषद ने कहा कि यह कृत्य न केवल न्यायपालिका की प्रतिष्ठा के खिलाफ है, बल्कि पूरे वकालत पेशे की साख को भी नुकसान पहुंचाता है। परिषद ने कहा कि किसी भी मतभेद या असहमति को अदालत की कार्यवाही में हिंसा या अपमानजनक व्यवहार के जरिए व्यक्त नहीं किया जा सकता।

पीएम मोदी से लेकर सोनिया गांधी तक ने जताई नाराज़गी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घटना के बाद मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई से बात की और कहा कि “उन पर हुआ हमला हर भारतीय को दुखी और नाराज़ करता है।” वहीं कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस घटना को “भारत के संविधान और उसकी न्यायिक मर्यादा पर हमला” बताया। विपक्षी दलों ने एक स्वर में कहा कि न्यायपालिका पर किसी भी प्रकार का हमला अस्वीकार्य है और दोषी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

आरोपों में धार्मिक पक्ष का हवाला, कहा – “सनातन धर्म का मजाक उड़ाया गया”

राकेश किशोर ने अपने बयान में दावा किया कि मुख्य न्यायाधीश ने उनकी याचिका पर सुनवाई के दौरान अपमानजनक टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा, “जब हमारे सनातन धर्म से जुड़ा कोई मामला आता है, तो सर्वोच्च न्यायालय मज़ाक उड़ाता है। उन्होंने कहा था – ‘जाओ मूर्ति से प्रार्थना करो कि वह तुम्हारा सिर वापस लगाए।’” किशोर ने यह भी आरोप लगाया कि अदालत अन्य समुदायों से जुड़े मामलों में अलग रवैया अपनाती है। उन्होंने कहा कि ऐसे ही पक्षपात से न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।

न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल, सख्त कार्रवाई की मांग

यह घटना न्यायपालिका की सुरक्षा और अनुशासन पर गहरी चिंता पैदा कर गई है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत के भीतर हिंसक व्यवहार या अपमानजनक कृत्य को किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत कई वरिष्ठ वकीलों ने कहा कि अदालत की गरिमा सर्वोपरि है और ऐसी घटनाओं के लिए “जीरो टॉलरेंस” नीति अपनाई जानी चाहिए। फिलहाल आरोपी वकील के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया जारी है, वहीं समाज के विभिन्न वर्गों ने न्यायपालिका के सम्मान की रक्षा की अपील की है।।


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