नीति आयोग और यूएनडीपी ने आयोजित की राष्ट्रीय कार्यशाला, गरीबी सूचकांक पर हुआ गहन विमर्श

टेन न्यूज़ नेटवर्क

नई दिल्ली (10 सितम्बर 2025): नीति आयोग ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के सहयोग से 9 सितम्बर 2025 को नई दिल्ली में “राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई)” पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। इस कार्यशाला का उद्देश्य आउटरीच और राष्ट्रीय क्षमता को मजबूत करना था। यह आयोजन नीति आयोग की “नीति-राज्य कार्यशाला श्रृंखला” के तहत राज्य सहायता मिशन का हिस्सा था।

कार्यशाला में 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के साथ-साथ केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों (यूएनडीपी, यूएनआरसीओ) और प्रतिष्ठित थिंक टैंकों—आर्थिक विकास संस्थान, आईआईटी रुड़की, एनसीएईआर, सीईईडब्ल्यू, मानव विकास संस्थान और नज इंस्टीट्यूट—के प्रतिनिधियों ने सक्रिय भागीदारी की।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन के. बेरी ने की। इस अवसर पर ईएसी-पीएम के अध्यक्ष प्रो. एस. महेंद्र देव, नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल, भारत में संयुक्त राष्ट्र के रेजिडेंट समन्वयक शोम्बी शार्प, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव डॉ. सौरभ गर्ग, ओपीएचआई की निदेशक डॉ. सबीना अलकिरे और नीति आयोग के कार्यक्रम निदेशक राजीब कुमार सेन ने विचारोत्तेजक संबोधन दिए। वक्ताओं ने गरीबी कम करने, बेहतर शासन सुनिश्चित करने और सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्रगति में एमपीआई की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया।

कार्यशाला में आयोजित पैनल चर्चा में राज्यों के प्रतिनिधियों ने सामाजिक सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन योजनाओं में लक्षित समूहों के लिए डेटा के प्रभावी उपयोग पर विचार साझा किए। साथ ही एमपीआई को योजनाओं में एकीकृत करने की क्षमता और इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया। इस चर्चा में सर्वेक्षणों की समय-सीमा कम करने, मौजूदा आंकड़ों को पूरक बनाने और कार्यक्रमों के डिज़ाइन व वितरण में डेटा-संचालित निर्णय लेने के महत्व पर भी बल दिया गया। तमिलनाडु की “मुख्यमंत्री नाश्ता योजना”, उत्तर प्रदेश का “संभव अभियान”, आंध्र प्रदेश की “शून्य गरीबी-पी4” और ओडिशा का “सामाजिक सुरक्षा वितरण प्लेटफॉर्म” जैसे सफल उदाहरण भी प्रस्तुत किए गए।

कार्यशाला के दौरान राष्ट्रीय एमपीआई की तकनीकी पद्धति और भारत में बहुआयामी गरीबी के “किसी को पीछे न छोड़ें” (LNOB) विश्लेषण पर भी विशेष सत्र आयोजित हुआ। कार्यक्रम का समापन एक व्यावहारिक अभ्यास के साथ हुआ, जिसमें एक्सेल पर एक नमूना डेटासेट के जरिए एमपीआई की गणना का प्रदर्शन किया गया। इस अभ्यास ने प्रतिभागियों को डेटा की बारीकियों को गहराई से समझने और नीतिगत निर्णयों में इसके उपयोग की अहमियत को जानने का अवसर दिया।

यह कार्यशाला न केवल एमपीआई की समझ को गहरा करने का माध्यम बनी, बल्कि राज्यों को गरीबी उन्मूलन और सामाजिक कल्याण योजनाओं को अधिक प्रभावी और डेटा-आधारित बनाने के लिए प्रेरित भी किया।।


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