कुत्तों के खाने और नसबंदी पर भारी खर्च, MCD के लिए बड़ी चुनौती

टेन न्यूज़ नेटवर्क

New Delhi News (12/08/2025): राजधानी की सड़कों पर लावारिस कुत्तों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद दिल्ली नगर निगम (MCD) के सामने बड़ा वित्तीय और प्रबंधन संकट खड़ा हो गया है। कोर्ट के निर्देशों के तहत एमसीडी को कुत्तों के लिए शेल्टर बनाने, उनके भोजन और नसबंदी की व्यवस्था करनी होगी, जिसके लिए भारी खर्च और जमीन की आवश्यकता है। वर्तमान में शहर में 10 लाख से ज्यादा लावारिस कुत्ते हैं और इनकी आबादी पर नियंत्रण के लिए एमसीडी को 400 एकड़ जमीन और बड़े पैमाने पर संसाधन जुटाने होंगे।

एमसीडी की रिपोर्ट के अनुसार, कुत्तों के भोजन पर प्रतिवर्ष करीब 1,400 रुपये प्रति कुत्ता खर्च होते हैं, जबकि नसबंदी पर लगभग 70 करोड़ रुपये का अनुमानित खर्च है। निगम का कहना है कि यह खर्च उसकी मौजूदा वित्तीय क्षमता से बहुत अधिक है। पहले ही निगम अपने सीमित बजट में कई जरूरी सेवाएं चला रहा है, ऐसे में अतिरिक्त बोझ उठाना कठिन होगा।

वर्तमान में एमसीडी के पास सिर्फ 20 नसबंदी केंद्र हैं, जिनमें से महज 13 ही सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। इन केंद्रों की सामूहिक क्षमता प्रतिदिन 60 कुत्तों की नसबंदी करने की है, जबकि जरूरत इससे कई गुना अधिक है। इस स्थिति में मौजूदा ढांचे के साथ लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है।

वित्तीय दबाव के साथ-साथ योजना के क्रियान्वयन में भी कई बाधाएं हैं। शेल्टर निर्माण के लिए 400 एकड़ जमीन ढूंढना आसान नहीं है, खासकर जब दिल्ली में जमीन पहले से ही सीमित और महंगी है। इसके अलावा, पशु चिकित्सा कर्मियों, भोजन आपूर्ति, दवाओं और रखरखाव पर भी लगातार खर्च होगा।

एमसीडी ने फिलहाल हर जोन में डॉग शेल्टर बनाने का निर्णय लिया है। योजना के अनुसार, प्रत्येक शेल्टर में नसबंदी केंद्र, पशु चिकित्सा सेवाएं, भोजन और देखभाल की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। साथ ही, शेल्टर संचालन के लिए पर्याप्त स्टाफ और प्रशिक्षित कर्मियों की नियुक्ति की जाएगी।

हालांकि, निगम अधिकारियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश अचानक और बिना तैयारी के आया है, जिससे मौजूदा संसाधनों और योजनाओं में बड़ा बदलाव करना पड़ रहा है। एमसीडी का तर्क है कि इतनी बड़ी परियोजना के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों से वित्तीय सहयोग जरूरी है। अन्यथा, यह योजना अधूरी रह सकती है।

दिल्ली में हर साल एक हजार से अधिक कुत्ते के काटने के मामले दर्ज होते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि नसबंदी और शेल्टर की व्यवस्था समय पर और व्यापक पैमाने पर नहीं की गई, तो यह संख्या और बढ़ सकती है। ऐसे में कोर्ट के आदेश का पालन न केवल कानूनी आवश्यकता है, बल्कि जनस्वास्थ्य के लिए भी जरूरी कदम है।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा है कि लावारिस कुत्तों की समस्या का समाधान कानूनन और मानवीय तरीके से होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बिना उचित व्यवस्था के कुत्तों को हटाना या मारना गैर-कानूनी है। अब जिम्मेदारी एमसीडी पर है कि वह सीमित संसाधनों के बीच इस चुनौती का समाधान निकालकर कुत्तों और इंसानों, दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।


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