AIIMS की स्टडी से डेंगू के इलाज की नई उम्मीद, माइक्रो RNA miR-133a हो सकता है गेम-चेंजर

टेन न्यूज नेटवर्क

New Delhi News (09/08/2025): डेंगू से जूझ रही दुनिया के लिए दिल्ली एम्स (Delhi AIIMS) की एक नई रिसर्च उम्मीद की किरण लेकर आई है। एम्स के वैज्ञानिकों ने पाया है कि हमारे शरीर में मौजूद एक खास माइक्रो RNA miR-133a डेंगू वायरस की बढ़ोतरी को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वहीं, एक प्रोटीन RBMX वायरस को फैलने में मदद करता है। इन दोनों के बीच की जटिल बायोलॉजिकल प्रक्रिया को समझकर डेंगू के खिलाफ नई दवा या RNA थेरेपी विकसित की जा सकती है। यह स्टडी हाल ही में जर्नल ऑफ मेडिकल वायरोलॉजी में प्रकाशित हुई है और इससे डेंगू के खिलाफ प्रभावी इलाज की उम्मीदें बढ़ गई हैं।

एम्स के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के अडिशनल प्रोफेसर डॉ. भुपेंद्र वर्मा की अगुवाई में यह रिसर्च की गई। टीम में पीएचडी स्कॉलर अंजलि सिंह और एमएससी स्टूडेंट सौम्या सिन्हा शामिल रहीं। डॉ. वर्मा के मुताबिक, डेंगू एक RNA वायरस है, जो शरीर में संक्रमण के दौरान RBMX नामक RNA-बाइंडिंग प्रोटीन की मात्रा बढ़ा देता है। यह प्रोटीन वायरस के Replication यानी कॉपी बनाने की प्रक्रिया को तेज करता है। इसके विपरीत, miR-133a का नेचर RBMX को नियंत्रित करना है, जिससे वायरस की बढ़ोतरी रुक सकती है।

रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया कि जब लैब में RBMX प्रोटीन को बढ़ाया गया, तो डेंगू वायरस की संख्या भी बढ़ गई—even तब, जब संक्रमित कोशिकाओं को पहले से एंटीवायरल दवा दी गई थी। इसका मतलब है कि वायरस के फैलाव को रोकने के लिए RBMX प्रोटीन को टारगेट करना जरूरी है। इस स्थिति में miR-133a एक मजबूत जैविक हथियार साबित हो सकता है, क्योंकि यह RBMX की मात्रा कम करके वायरस के बढ़ने पर रोक लगाता है।

स्टडी के दौरान जब लैब में miR-133a को आर्टिफिशियल तरीके से बढ़ाया गया, तो उसने न केवल RBMX प्रोटीन के स्तर को घटा दिया, बल्कि डेंगू वायरस के RNA लेवल को भी कम कर दिया। इससे यह संकेत मिला कि miR-133a एक प्रभावी एंटीवायरल के रूप में काम कर सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में RNA थेरेपी के जरिये miR-133a को आर्टिफिशियली बढ़ाकर डेंगू के इलाज में इस्तेमाल किया जा सकता है।

डॉ. वर्मा के अनुसार, डेंगू के खिलाफ सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इसके चार अलग-अलग टाइप हैं। यदि किसी व्यक्ति को एक टाइप का संक्रमण हो चुका है और भविष्य में दूसरा टाइप हो जाता है, तो यह अधिक खतरनाक हो सकता है। इस स्थिति को एंटीबॉडी-डिपेंडेंट एनहांसमेंट कहा जाता है, जो बीमारी को गंभीर बना देता है। यही वजह है कि डेंगू के लिए कोई सार्वभौमिक वैक्सीन अब तक उपलब्ध नहीं है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में दुनियाभर में डेंगू के 1.4 करोड़ मामले दर्ज हुए, जिनमें 9 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई। इस साल जून तक 30 लाख मामले सामने आ चुके हैं। ऐसे में AIIMS की यह खोज न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि बन सकती है और डेंगू के खिलाफ लड़ाई में एक मजबूत हथियार साबित हो सकती है।


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