महाशिवरात्रि विशेष: डॉक्टर वंदना शर्मा ‘दीया’ का सावन और शिव पर आत्मचिंतन
मेघा राजपूत, संवाददाता, टेन न्यूज नेटवर्क
New Delhi News (25/07/2025): हमारे सनातन धर्म में सावन का महीना अति पवित्र और प्रांजल माना गया है। इस माह काँवर यात्रा शुरू होती है और जिसमें लाखों शिवभक्त भगवान शिव की पूजा अर्चना करने के लिए और गंगाजल लाने के लिए सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा तय करते हैं ताकि भगवान शिव का जलाभिषेक कर सकें। इस माह हर ओर “हर हर महादेव” की गूंज होती है, सड़कें भक्तिमय हो जाती हैं, और मंदिरों में जल की धाराएं शिवलिंग पर अर्पित होती रहती हैं। लेकिन क्या यही है शिव की सच्ची भक्ति? क्या सिर्फ काँवर लाना और जल चढ़ाना ही, शिव को प्रसन्न कर देता है? या फिर वह शिव की पूजा है, जो हमारे जीवन और समाज को भी शुद्ध कर सके? इन्हीं सवालों के उत्तर जानने के लिए टेन न्यूज नेटवर्क की टीम ने भारत की प्रख्यात आध्यात्मिक विदुषी, डॉ. वंदना शर्मा ‘दीया’ ( Dr. Vandana Sharma ‘Diya’) से बातचीत की।
वंदना शर्मा ‘दीया’ अद्वैत वेदांत दर्शन की प्रख्यात विद्वान हैं। उन्हें 2020 के एशियाई-अफ्रीकी दार्शनिक सम्मेलन में आदि शंकराचार्य की महान कृति “प्रश्नोत्तर रत्नमालिका” के अनुवाद और भाष्य के लिए “स्वामी प्रणवानंद दर्शन पुस्तक पुरस्कार 2020” से सम्मानित किया गया। उन्होंने केदारनाथ धाम पर संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत स्वतंत्र शोध किया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने बीजिंग, चीन में आयोजित “विश्व दर्शन सम्मेलन 2018” में भारत का प्रतिनिधित्व किया। टेन न्यूज़ की टीम ने महाशिवरात्रि के पवित्र एवं प्रांजल अवसर पर डॉ. वंदना शर्मा ‘दीया’ से विशेष वार्तालाप की।
महाशिवरात्रि के पवित्र एवं प्रांजल अवसर पर हमारे दर्शकों को शिव-भक्ति एवं शिव-शक्ति की महिमा के विषय में बताएं। हम महाशिवरात्रि क्यों मनाते हैं?
इस पर डॉ. वंदना शर्मा ‘दीया’ ने कहा कि शिव पुराण जब हम पढ़ते हैं, तो ज्ञात होता है कि उस समय ना दिन था, ना रात। वह रात, रात से भी गहरी थी। उसी समय ब्रह्मा और विष्णु के बीच विवाद होता है कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। तभी उनके बीच से एक ज्योतिर्मय स्तंभ प्रकट होता है, और उसमें से यह आवाज आती है-जो इस स्तंभ के आदि और अंत को जान लेगा, वही सर्वश्रेष्ठ है। ब्रह्मा इस स्तंभ के ऊपरी छोर को खोजने निकलते हैं। रास्ते में उन्हें एक गुरुकुल दिखाई देता है, जहाँ एक स्त्री से वे झूठी गवाही देने का अनुरोध करते हैं। वे कहते हैं कि अगर तुम यह कह दो कि मुझे इस स्तंभ का अंत मिल गया है, तो मैं तुम्हें वरदान दूँगा कि तुम्हारी पूजा श्रेष्ठ मानी जाएगी। वहीं विष्णु भी खोज के लिए जाते हैं, पर वे समझ जाते हैं कि इस स्तंभ का ना आदि है, ना अंत। वे लौटकर सत्य बता देते हैं। जब यह होता है, तब महादेव उस ज्योतिर्लिंग से प्रकट होते हैं। वे ब्रह्मा को श्राप देते हैं—‘तव पूजनं लोके न भविष्यति।’ अर्थात, ब्रह्मा! तुम्हारी पूजा इस संसार में नहीं होगी। वहीं विष्णु को आशीर्वाद देते हैं—‘तव दशावतारा पूज्यं भविष्यति।’ अर्थात, तुम्हारे दसों अवतारों की पूजन स्थापन होगी और तुम धर्म की पुनः पुनः स्थापना करोगे।
कुछ नास्तिक लोग इस कथा को मिथक मानते हैं। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
डॉ. वंदना शर्मा ने उत्तर दिया कि मान्यता किसी की भी कुछ भी हो सकती है। यदि कोई मनुष्य यह माने कि गुरुत्वाकर्षण जैसी कोई चीज़ ही नहीं है, तो क्या उसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा? नहीं। गुरुत्वाकर्षण सभी को अपनी ओर खींचता है-मानो या ना मानो। उसी प्रकार, आप ईश्वर को माने या ना माने, लेकिन वह है।
सावन मास की जल परंपरा और कांवड़ यात्रा के महत्व पर आपकी दृष्टि क्या है?
डॉ. वंदना शर्मा ‘दीया’ ने कहा कि आज लोगों ने महादेव के नाम पर इतना आडंबर बना दिया है कि गंगाजल लेने के नाम पर रास्ते ब्लॉक कर देते हैं। यदि किसी मरीज़ को अस्पताल समय पर नहीं पहुँचाया जा सका, तो उसका पाप आप पर लगेगा। आप शिव पर जल चढ़ाते हैं, लेकिन पशुओं को मारते हैं तो फिर आपने पशुपतिनाथ का क्या सम्मान किया? शिव को जल चढ़ाइए, लेकिन साथ ही अपने व्यवहार और व्यक्तित्व को इतना निर्मल बनाइए कि लोग आपको शिव का नंदी कहें।
आगे उन्होंने हमारे सनातन धर्म में कांवड़ यात्रा का बड़ा महत्व है, लेकिन यदि आपको शिव अपने भीतर नहीं मिले, तो बाहर कहीं नहीं मिलेंगे। शिव कण-कण में हैं, तभी तो ‘हर हर महादेव’ कहा जाता है। आप शिव को जिस रूप में पूजेंगे, वे उसी रूप में मिलेंगे।
कैलाश मानसरोवर यात्रा को लेकर आपकी शोध आधारित धारणा क्या है?
डॉ. दीया कहती हैं कि बहुत सी चीजें हमारे शोध और विज्ञान से परे हैं। मनुष्य एवरेस्ट पर चढ़ सकता है, लेकिन कैलाश पर नहीं। जो भी वहाँ पहुँचे, वे पूर्णतः नहीं लौट सके। चीन ने भी कई प्रयास किए, लेकिन असफल रहा और उसने प्रतिबंध लगा दिया। स्विट्जरलैंड से आए पर्वतारोहियों ने बताया कि कैलाश पर पहुँचते ही दिशा भ्रम हो गया और हृदयगति तेज हो गई। हमारे ऋषि-मुनियों ने पहले ही वहाँ जाने का निषेध किया है, तो हमें उनका अनुसरण करना चाहिए।
अमरनाथ शिवलिंग का उल्लेख हमारे शास्त्रों में क्यों नहीं है?
डॉ. वंदना शर्मा ‘दीया’ ने स्पष्ट किया कि अमरनाथ शिवलिंग की कथा हमारे किसी भी शास्त्र में नहीं है। उसकी खोज एक मुस्लिम चरवाहे ने की थी। वह शिवलिंग की परिभाषा में फिट नहीं होता, क्योंकि उस पर काल का प्रभाव पड़ता है। वह बनता, बढ़ता, घटता और पिघलता है। शिवलिंग वह होता है जिस पर काल का प्रभाव ना हो। लेकिन लोगों ने उसे आस्था से जोड़कर एक पर्यटन स्थल बना दिया है।
ज्योतिर्लिंग 12 ही हैं या इनकी कोई और व्यापक परिभाषा है?
डॉ. वंदना शर्मा ‘दीया’ कहती हैं कि ज्योतिर्लिंग केवल 12 नहीं, अनंत हैं। जो आत्मस्वरूप ज्योति आपके भीतर जल रही है, वह भी एक ज्योतिर्लिंग है। जितने भी जीव-जंतु, पशु, पक्षी, मानव हैं-उन सभी में वही ज्योति विद्यमान है। हर आत्मा में शिवत्व है।
सावन महादेव का महीना है, पर क्या महादेव उनसे प्रसन्न होते हैं,जो कांवर लाते हुए सड़कें जाम कर दें? जो तेज़ डीजे और हुड़दंग को भक्ति समझ बैठें?
डॉ. वंदना शर्मा ‘दीया’ के शब्दों में “सच्ची भक्ति वही है जो शांति दे, व्यवस्था बनाए और दूसरों के लिए सहूलियत छोड़े।
काँवर लाना, जल चढ़ाना ये सब प्रतीक हैं हमारे भीतर की भक्ति के। लेकिन क्या महादेव सिर्फ उसी से प्रसन्न होंगे,
अगर हम दूसरों की तकलीफ़ बन जाएं? शिव को प्रसन्न करने का रास्ता पूजा पाठ और मंदिर के साथ मानवता का हर मार्ग हो सकता है? तो इस सावन, भक्ति में भाव हो,
बोल में संयम हो, और आचरण में अनुशासन हो। क्योंकि शिव स्वयं “संयम” हैं,“शांति” हैं, और “सहयोग” शिव शक्ति है शिव आदि हैं और अनंत भी हैं।
आपका क्या मानना है? क्या कांवर की भक्ति व्यवस्था के साथ भी निभाई जा सकती है? अपने विचार हमारे कमेंट बॉक्स में ज़रूर साझा करें।।
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